सूक्तिमौक्तिकम् (सुविचारों या अच्छी बातों रूपी मोती)
प्रस्तुतः पाठः नैतिकशिक्षाणां प्रदायकरूपेण विन्यस्तोवर्तते । अस्मिन् पाठे विविधग्रन्थेभ्यः नानानैतिकशिक्षाप्रदानिपद्यानि सं गृहीतानि सन्ति । अत्र सदाचरणस्य महिमा, प्रियवाण्याः आवश्यकता, परोपकारिणां स्वभावः, गुणार्जनस्य प्रेरणा, मित्रतायाः स्वरूपम्, श्रेष्ठसङ्गतेः प्रशंसा तथा च सत्सङ्गतेः प्रभावः इत्यादीनां विषयाणां निरूपणम् अस्ति। संस्कृतसाहित्ये नीतिग्रन्थानां समृद्धा परम्परा दृश्यते । तत्र प्रतिपादितशिक्षाणाम् अनुपालनं कृत्वा वयं स्व जीवनसफली कर्तुं शक्नुमः ।
हिन्दी अनुवाद:
प्रस्तुत पाठ नैतिक शिक्षाओं को प्रदान करने के रूप में व्यवस्थित है। इसमें विभिन्न ग्रंथों से अनेक नैतिक शिक्षा देने वाले पद्य संकलित किए गए हैं। इस पाठ में सदाचार की महिमा, प्रिय वाणी की आवश्यकता, परोपकारियों के स्वभाव, गुणों के अर्जन की प्रेरणा, मित्रता का स्वरूप, श्रेष्ठ संगति की प्रशंसा तथा सत्संगति के प्रभाव आदि विषयों का निरूपण किया गया है। संस्कृत साहित्य में नीति ग्रंथों की समृद्ध परंपरा दिखाई देती है। वहाँ प्रतिपादित शिक्षाओं का पालन करके हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।
वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः।।१।।
मनुस्मृति:
हिन्दी अनुवाद:
सदाचार को यत्नपूर्वक संरक्षित करना चाहिए। धन तो आता-जाता रहता है।
धन से हीन होने पर भी व्यक्ति जीवित रहता है, परन्तु सदाचार से हीन होने पर वह पूर्णतः नष्ट हो जाता है।
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।।२।।
विदुरनीति:
हिन्दी अनुवाद:
धर्म का सार सुनो और सुनकर उसे भली-भाँति समझो।
जो कार्य स्वयं को अप्रिय लगे, उसे दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।३।।
चाणक्यनीति:
हिन्दी अनुवाद:
प्रिय वचनों से सभी प्राणी संतुष्ट होते हैं।
इसलिए वही बोलना चाहिए। वचनों में कंजूसी कैसी?
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः
परोपकाराय सतां विभूतयः।।४।।
सुभाषितरत्नभाण्डागारम्
हिन्दी अनुवाद:
नदियाँ स्वयं अपना जल नहीं पीतीं। वृक्ष स्वयं अपने फल नहीं खाते।
मेघ निश्चय ही अन्न नहीं खाते। सज्जनों की समृद्धि केवल परोपकार के लिए होती है।
गुणेष्वेव हि कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा।
गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः।।५।।
मृच्छकटिकम्
हिन्दी अनुवाद:
पुरुषों को सदा गुणों को प्राप्त करने का ही प्रयास करना चाहिए।
गुणवान दरिद्र भी अगुणवान धनवान के समान नहीं होता।
आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण
लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्।।६।।
नीतिशतकम्
हिन्दी अनुवाद:
दुष्टों की मित्रता पहले गहरी होती है, फिर क्रमशः क्षीण हो जाती है। सज्जनों की मित्रता पहले हल्की होती है, पर बाद में बढ़ती है,
जैसे दिन के पूर्वार्द्ध और उत्तरार्द्ध में छाया भिन्न होती है।
यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु-
हँसा महीमण्डलमण्डनाय।
हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां
येषां मरालैः सह विप्रयोगः।।७।।
भामिनीविलास:
हिन्दी अनुवाद:
हंस कहीं भी चले जाएँ, वे पृथ्वी को सुशोभित करते हैं।
परन्तु उन सरोवरों की हानि होती है, जिनका हंसों से वियोग हो जाता है।
गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः।।८।।
हितोपदेश:
हिन्दी अनुवाद:
गुणों को जानने वालों के बीच गुण ही गुण माने जाते हैं। वही गुण गुणहीनों के बीच दोष बन जाते हैं।
स्वादिष्ट जल वाली नदियाँ बहती हैं, पर समुद्र में मिलकर वह जल पीने योग्य नहीं रहता।

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