सूक्तिमौक्तिकम् (सुविचारों या अच्छी बातों रूपी मोती)
स्रोत: प्रस्तुतः पाठः नैतिकशिक्षाणां प्रदायकरूपेण विन्यस्तः। अस्मिन् विविधग्रन्थेभ्यः नानानैतिकशिक्षाप्रदानिपद्यानि संनादति।
(यह पाठ नैतिक शिक्षाओं को देने के रूप में प्रस्तुत है। इसमें विभिन्न ग्रंथों से नैतिक शिक्षा देने वाले अनेक पद्य संकलित हैं।)
विषय: अस्मिन् पाठे सदाचरणस्य महिमा, प्रियवाण्याः आवश्यकता, परोपकारिणां स्वभावः, गुणार्जनस्य प्रेरणा, मित्रतायाः स्वरूपम्, श्रेष्ठसङ्गतेः प्रशंसा, सत्सङ्गतेः प्रभावः च निरूपितः।
(इस पाठ में सदाचार की महिमा, प्रिय वाणी की आवश्यकता, परोपकारी स्वभाव, गुण अर्जन की प्रेरणा, मित्रता का स्वरूप, अच्छी संगति की प्रशंसा और सत्संगति के प्रभाव का वर्णन है।)
महत्त्वम्: संस्कृतसाहित्ये नीतिग्रन्थानां समृद्धा परम्परा। तत्र प्रतिपादितशिक्षाणाम् अनुपालनं कृत्वा वयं स्वजीवनं सफलीकर्तुं शक्नुमः।
(संस्कृत साहित्य में नीति ग्रंथों की समृद्ध परंपरा है। इन शिक्षाओं का पालन कर हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं।)
श्लोकानि च अन्वयः
(श्लोक और उनके अर्थ)
वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः।
(मनुस्मृतिः)
अन्वय: वृत्तं यत्नेन संरक्षेत्, वित्तम् एति च याति च। वित्ततः क्षीणः अक्षीणः (भवति), वृत्ततः (क्षीणः) तु हतः हतः। (चरित्र को प्रयत्नपूर्वक बचाना चाहिए, धन तो आता-जाता है। धन से क्षीण व्यक्ति अक्षीण रहता है, परंतु चरित्र से क्षीण व्यक्ति पूरी तरह नष्ट हो जाता है।)
हिन्दी अर्थ: चरित्र की रक्षा बड़े प्रयास से करनी चाहिए, क्योंकि धन तो आता-जाता रहता है। धन खोने वाला व्यक्ति फिर भी जीवित रहता है, लेकिन चरित्र खोने वाला पूरी तरह नष्ट हो जाता है।
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्।
(विदुरनीति:)
अन्वय: धर्मसर्वस्वं श्रूयतां, श्रुत्वा च एव अवधार्यताम्, आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। (धर्म का सार सुनें और सुनकर समझें। जो कार्य स्वयं को प्रतिकूल लगे, उसे दूसरों के साथ न करें।)
हिन्दी अर्थ: धर्म का सार सुनें और समझें। जो कार्य आपको अप्रिय लगे, उसे दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।
(चाणक्यनीति:)
अन्वय: सर्वे जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति। तस्मात् तत् एव वक्तव्यम्, वचने दरिद्रता का? (सभी प्राणी प्रिय वचन देने से प्रसन्न होते हैं। इसलिए वही बोलना चाहिए, वचन में कंजूसी कैसी?)
हिन्दी अर्थ: सभी प्राणी मीठे वचनों से खुश होते हैं। इसलिए हमेशा प्रिय वचन बोलने चाहिए, बोलने में कंजूसी क्यों?
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः परोपकाराय सतां विभूतयः।
(सुभाषितरत्नभाण्डागारम्)
अन्वय: नद्यः स्वयम् एव अम्भः न पिबन्ति, वृक्षाः स्वयं फलानि न खादन्ति, वारिवाहाः खलु सस्यं न अदन्ति, सतां विभूतयः परोपकाराय (एव भवन्ति)। (नदियाँ स्वयं पानी नहीं पीतीं, वृक्ष स्वयं फल नहीं खाते, मेघ खेतों को नहीं खाते, सज्जनों की संपत्ति परोपकार के लिए होती है।)
हिन्दी अर्थ: नदियाँ स्वयं पानी नहीं पीतीं, वृक्ष अपने फल नहीं खाते, मेघ फसलों को नहीं खाते। इसी तरह सज्जनों की संपत्ति दूसरों के उपकार के लिए होती है।
गुणेष्वेव हि कर्तव्यः प्रयत्नः पुरुषैः सदा।
गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणैः समः।
(मृच्छकटिकम्)
अन्वय: पुरुषैः सदा गुणेषु एव हि प्रयत्नः कर्तव्यः। गुणयुक्तः दरिद्रः अपि अगुणैः ईश्वरैः समः न (भवति)। (मनुष्यों को हमेशा गुण अर्जन के लिए प्रयास करना चाहिए। गुणी गरीब भी अगुणी धनवानों के समान नहीं होता।)
हिन्दी अर्थ: मनुष्य को हमेशा गुण प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। गुणी गरीब भी गुणहीन धनवानों के समान नहीं होता।
आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्।
(नीतिशतकम्)
अन्वय: आरम्भगुर्वी (भवति), क्रमेण क्षयिणी (भवति), पुरा लघ्वी (भवति), पश्चात् च वृद्धिमती (भवति), दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्ध-छाया इव खलसज्जनानां मैत्री भिन्ना (भवति)। (खल और सज्जनों की मित्रता दिन की छाया की तरह होती है, जो शुरू में बड़ी, फिर घटती, पहले छोटी, फिर बढ़ती है।)
हिन्दी अर्थ: दुष्ट और सज्जनों की मित्रता दिन की छाया की तरह होती है, जो शुरू में बड़ी होती है, फिर धीरे-धीरे घटती है, पहले छोटी होती है, फिर बढ़ती है।
यत्रापि कुत्रापि गता भवेयुहँसा महीमण्डलमण्डनाय।
हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां येषां मरालैः सह विप्रयोगः।
(भामिनीविलासः)
अन्वय: हंसाः यत्र अपि कुत्र अपि महीमण्डलमण्डनाय गताः भवेयुः। हानिः तु तेषां सरोवराणां हि (भवति) येषां (सरोवराणाम्) मरालैः सह विप्रयोगः भवति। (हंस कहीं भी जाएँ, वे पृथ्वी की शोभा बढ़ाते हैं। लेकिन उन सरोवरों की हानि होती है, जिनसे हंसों का वियोग होता है।)
हिन्दी अर्थ: हंस जहाँ भी जाएँ, वे पृथ्वी की शोभा बढ़ाते हैं। लेकिन उन सरोवरों का नुकसान होता है, जिनसे हंसों का बिछड़ना होता है।
गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।
आस्वाद्यतोयाः प्रवहन्ति नद्यः समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः।
(हितोपदेश:)
अन्वय: गुणज्ञेषु गुणाः गुणाः भवन्ति, ते (गुणाः) निर्गुणं प्राप्य दोषाः भवन्ति। आस्वाद्यतोयाः नद्यः प्रवहन्ति, (ताः एव नद्यः) समुद्रम् आसाद्य अपेयाः भवन्ति। (गुणों को जानने वालों में गुण, गुण ही रहते हैं, लेकिन गुणहीनों के पास वे दोष बन जाते हैं। स्वादिष्ट जल वाली नदियाँ बहती हैं, पर समुद्र में मिलकर अपेय हो जाती हैं।)
हिन्दी अर्थ: गुणों को समझने वालों के बीच गुण, गुण ही रहते हैं, लेकिन गुणहीन लोगों के पास वे दोष बन जाते हैं। जैसे स्वादिष्ट जल वाली नदियाँ समुद्र में मिलकर पीने योग्य नहीं रहतीं।
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