सूक्तिमौक्तिकम् (सुविचारों या अच्छी बातों रूपी मोती)
1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(एक शब्द में उत्तर लिखें)
(क) वित्ततः क्षीणः कीदृशः भवति ? (धन से हीन व्यक्ति कैसा होता है?)
उत्तर: दरिद्रः (दरिद्र)
(ख) कस्य प्रतिकूलानि कार्याणि परेषां न समाचरेत् ? (किनके प्रतिकूल कार्य दूसरों के लिए नहीं करने चाहिए?)
उत्तर: खलानाम् (दुष्टों के)
(ग) कुत्र दरिद्रता न भवेत् ? (कहाँ दरिद्रता नहीं होनी चाहिए?)
उत्तर: वचने (वाणी में)
(घ) वृक्षाः स्वयं कानि न खादन्ति ? (वृक्ष स्वयं क्या नहीं खाते?)
उत्तर: फलानि (फल)
(ङ) का पुरा लघ्वी भवति ? (क्या पहले हल्की होती है?)
उत्तर: मैत्री (मैत्री)
2. अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखें)
(क) यत्नेन किं रक्षेत् वित्तं वृत्तं वा ? (प्रयास से क्या रक्षित करना चाहिए, धन या चरित्र?)
उत्तर: यत्नेन वृत्तं रक्षेत्, न वित्तम्। (प्रयास से चरित्र को रक्षित करना चाहिए, न कि धन को।)
(ख) अस्माभिः कीदृशम् आचरणं न कर्तव्यम् ? (हमें कैसा आचरण नहीं करना चाहिए?)
उत्तर: अस्माभिः परेषां प्रतिकूलं आचरणं न कर्तव्यम्। (हमें दूसरों के लिए प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिए।)
(ग) जन्तवः केन तुष्यन्ति ? (प्राणी किससे संतुष्ट होते हैं?)
उत्तर: जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति। (प्राणी प्रिय वचन देने से संतुष्ट होते हैं।)
(घ) सज्जनानां मैत्री कीदृशी भवति ? (सज्जनों की मित्रता कैसी होती है?)
उत्तर: सज्जनानां मैत्री पुरा लघ्वी पश्चात् वृद्धिमती भवति। (सज्जनों की मित्रता पहले हल्की और बाद में बढ़ने वाली होती है।)
(ङ) सरोवराणां हानिः कदा भवति ? (सरोवरों की हानि कब होती है?)
उत्तर: सरोवराणां हानिः यदा नद्यः आस्वाद्यतोया न भवन्ति तदा भवति। (सरोवरों की हानि तब होती है जब नदियाँ स्वादिष्ट जल वाली नहीं रहतीं।)
3. ‘क’ स्तम्भे विशेषणानि ‘ख’ स्तम्भे च विशेष्याणि दत्तानि तानि यथोचितं योजयत-
(स्तंभ ‘क’ के विशेषणों को स्तंभ ‘ख’ के विशेष्यों के साथ यथोचित मिलाएँ)
| ‘क’ स्तम्भः (विशेषण) | ‘ख’ स्तम्भः (विशेष्य) |
|---|---|
| (क) आस्वाद्यतोयाः (स्वाद योग्य जल) | (3) नद्यः (नदियाँ) |
| (ख) गुणयुक्तः (गुणयुक्त) | (4) दरिद्रः (गरीब) |
| (ग) दिनस्य पूर्वार्द्धभिन्ना (दिन के पूर्वार्ध का भिन्न) | (1) खलानां मैत्री (दुष्टों की मित्रता) |
| (घ) दिनस्य परार्द्धभिन्ना (दिन के उत्तरार्ध का भिन्न) | (2) सज्जनानां मैत्री (सज्जनों की मित्रता) |
4. अधोलिखितयोः श्लोकयोः आशयं हिन्दीभाषया लिखत-
(निम्नलिखित श्लोकों का आशय हिन्दी में लिखें)
(क)
आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण
लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना
छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥
हिंदी अनुवाद
इस श्लोक में खल (दुष्ट) और सज्जन (सत्पुरुष) की मित्रता की तुलना दिन की छाया से की गई है। खल की मित्रता शुरू में भारी (महत्वपूर्ण) लगती है, पर धीरे-धीरे कम होती जाती है, जबकि सज्जन की मित्रता पहले हल्की होती है, पर बाद में बढ़ती जाती है, जैसे दिन के पहले भाग में छाया लंबी और बाद में छोटी होती है।
(ख)
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥
हिंदी अनुवाद
इस श्लोक में कहा गया है कि प्रिय वचन बोलने से सभी प्राणी संतुष्ट होते हैं। इसलिए हमेशा प्रिय वचन ही बोलने चाहिए, क्योंकि वाणी में दरिद्रता कैसी? अर्थात्, प्रिय बोलने में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।
5. अधोलिखितपदेभ्यः भिन्नप्रकृतिकं पदं चित्वा लिखत-
(निम्नलिखित शब्दों में से भिन्न प्रकृति वाला शब्द चुनकर लिखें)
(क) वक्तव्यम्, कर्त्तव्यम्, सर्वस्वम्, हन्तव्यम्।
वक्तव्यम् – कहा जाना चाहिए / बताना चाहिए
कर्त्तव्यम् – किया जाना चाहिए / कर्तव्य
सर्वस्वम् – सबकुछ / सम्पूर्ण धन
हन्तव्यम् – मारा जाना चाहिए
उत्तर: सर्वस्वम् – क्योंकि यह अन्य तीनों की तरह क्रियापद-भाव (कर्तव्यम्, वक्तव्यम्, हन्तव्यम्) नहीं है, यह संज्ञा है।
(ख) यत्नेन, वचने, प्रियवाक्यप्रदानेन, मरालेन।
यत्नेन – प्रयास करके
वचने – वचन / बोलकर
प्रियवाक्यप्रदानेन – प्रिय वाक्य देने द्वारा
मरालेन – कीचड़ / मिट्टी में
उत्तर: मरालेन – क्योंकि अन्य तीन क्रिया-निर्देशक/अभिप्राय सूचक हैं, जबकि यह एक पदार्थ-संबंधी शब्द है।
(ग) श्रूयताम्, अवधार्यताम्, धनवताम्, क्षम्यताम्।
श्रूयताम् – सुना जाना चाहिए
अवधार्यताम् – स्वीकार किया जाना चाहिए
धनवताम् – धन रखने योग्य / धनवंत होना
क्षम्यताम् – क्षमा किया जाना चाहिए
उत्तर: धनवताम् – क्योंकि अन्य तीनों क्रिया-भाव सूचक (श्रूयताम्, अवधार्यताम्, क्षम्यताम्) हैं, जबकि यह विशेषण/संज्ञा है।
(घ) जन्तवः, नद्यः, विभूतयः, परितः।
जन्तवः – जीव / प्राणी
नद्यः – नदियाँ
विभूतयः – संपत्ति / शक्ति
परितः – चारों ओर
उत्तर: परितः – क्योंकि अन्य तीन संज्ञा/संपत्ति-संबंधी हैं, जबकि यह स्थान-सूचक विशेषण है।
6. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्नवाक्यनिर्माणं कुरुत-
(मोटे शब्दों के आधार पर प्रश्न वाक्य बनाएँ)
(क) वृत्ततः क्षीणः हतः भवति। (वृत्त से कमजोर मार दिया जाता है।)
उत्तर: कस्मात् क्षीणः हतः भवति? (क्यों कमजोर मार दिया गया?)
(ख) धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा अवधार्यताम्। (धर्म का सब कुछ सुनकर ग्रहण किया गया।)
उत्तर: किं श्रुत्वा अवधार्यताम्? (क्या सुनकर ग्रहण किया गया?)
(ग) वृक्षाः फलं न खादन्ति। (वृक्ष फल नहीं खाते।)
उत्तर: के फलं न खादन्ति? (कौन फल नहीं खाते?)
(घ) खलानाम् मैत्री आरम्भगुर्वी भवति। (दुष्टों के साथ मित्रता शुरू करना कठिन है।)
उत्तर: केषाम् मैत्री आरम्भगुर्वी भवति? (किनके साथ मित्रता शुरू करना कठिन है?)
7. अधोलिखितानि वाक्यानि लोट्लकारे परिवर्तयत-
(निम्नलिखित वाक्यों को लोट् लकार में बदलें)
यथा: – सः पाठं पठति। (वह पाठ पढ़ता है।)
→ सः पाठं पठतु। (उसे पाठ पढ़ने दें ।)
(क) नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्ति। (नदियाँ स्वादिष्ट जल वाली हैं।)
उत्तर: नद्यः आस्वाद्यतोयाः सन्तु। (नदियाँ स्वादिष्ट जल वाली हों।)
(ख) सः सदैव प्रियवाक्यं वदति। (वह सदा प्रिय वचन बोलता है।)
उत्तर: सः सदैव प्रियवाक्यं वदतु। (वह सदा प्रिय वचन बोले।)
(ग) त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचरसि। (तुम दूसरों के लिए प्रतिकूल कार्य नहीं करते।)
उत्तर: त्वं परेषां प्रतिकूलानि न समाचर। (तुम दूसरों के लिए प्रतिकूल कार्य न करो।)
(घ) ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्ति। (वे चरित्र को प्रयास से रक्षित करते हैं।)
उत्तर: ते वृत्तं यत्नेन संरक्षन्तु। (वे चरित्र को प्रयास से रक्षित करें।)
(ङ) अहं परोपकाराय कार्यं करोमि। (मैं परोपकार के लिए कार्य करता हूँ।)
उत्तर: अहं परोपकाराय कार्यं करोतु। (मैं परोपकार के लिए कार्य करूँ।)

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