लौहतुला (लोहे का तराजू)
1. एकपदेन उत्तरं लिखत-
(एक शब्द में उत्तर लिखें)
(क) वणिक्पुत्रस्य किं नाम आसीत् ? (वणिक पुत्र का क्या नाम था?)
उत्तर: जीर्णधनः (जीर्णधन)
(ख) तुला कैः भक्षिता आसीत् ? (तुला किसके द्वारा खाई गई थी?)
उत्तर: मूषकैः (चूहों द्वारा)
(ग) तुला कीदृशी आसीत् ? (तुला कैसी थी?)
उत्तर: लौहघटिता (लोहे से बनी)
(घ) पुत्रः केन हृतः इति जीर्णधनः वदति ? (पुत्र किसके द्वारा अपहृत हुआ, यह जीर्णधन कहता है?)
उत्तर: श्येनेन (बाज द्वारा)
(ङ) विवदमानौ तौ द्वावपि कुत्र गतौ ? (विवाद करते हुए दोनों कहाँ गए?)
उत्तर: राजकुलम् (राजदरबार)
2. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संस्कृत भाषा में लिखें)
(क) देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः किं व्यचिन्तयत् ? (दूसरे देश में जाना चाहने वाले व्यापारी के पुत्र ने क्या सोचा?)
उत्तरम् – देशान्तरं गन्तुमिच्छन् वणिक्पुत्रः व्यचिन्तयत् – “यत्र स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः तस्मिन् स्थाने विभवहीनः वसेत् सः पुरुषाधमः।”
( दूसरे देश में जाना चाहने वाले व्यापारी के पुत्र ने यह सोचा – “जहाँ अपने परिश्रम से सुख (भोग) भोगे जा चुके हों, उसी स्थान पर जो व्यक्ति निर्धन होकर रहता है, वह मनुष्यों में अधम (सबसे नीच) कहलाता है।”)
(ख) स्वतुला याचमानं जीर्णधनं श्रेष्ठी किम् अकथयत् ? (अपनी तुला माँगने वाले जीर्णधन से श्रेष्ठी ने क्या कहा?)
उत्तरम् – श्रेष्ठी अकथयत् – “भोः! त्वदीया तुला मूषकैः भक्षिता” इति। (श्रेष्ठी ने कहा – “अरे! तुम्हारी तुला चूहों ने खा ली है।”)
(ग) जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं कया आच्छाद्य गृहमागतः ? (जीर्णधन गुफा का द्वार किससे ढककर घर आया?)
उत्तरम् – जीर्णधनः गिरिगुहाद्वारं बहुच्छिलया आच्छाद्य गृहमागतः। (जीर्णधन बड़ी चट्टान से गुफा का द्वार ढककर घर आया।)
(घ) स्नानानन्तरं पुत्रविषये पृष्टः वणिक्पुत्रः श्रेष्ठिनं किम् उवाच ? (स्नान के बाद पुत्र के विषय में पूछे जाने पर व्यापारी पुत्र ने श्रेष्ठी से क्या कहा?)
उत्तरम् – वणिक्पुत्रः उवाच – “नदीतटात् सः बालः श्येनेन हृतः” इति। (व्यापारी पुत्र ने कहा – “नदी किनारे से बालक को बाज उठा ले गया।”)
(ङ) धर्माधिकारिभिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ कथं सन्तोषितौ ? (धर्माधिकारियों ने जीर्णधन और श्रेष्ठी दोनों को कैसे संतुष्ट किया?)
उत्तरम् – धर्माधिकारिभिः जीर्णधनश्रेष्ठिनौ परस्परं संबोध्य तुला–शिशु–प्रदानेन सन्तोषितौ। (धर्माधिकारियों ने तराजू और बालक लौटाकर दोनों को संतुष्ट किया।)
3. स्थूलपदान्यधिकृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(मोटे शब्दों के आधार पर प्रश्न बनाएँ)
(क) जीर्णधनः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत्। (जीर्णधन ने धन नष्ट हो जाने के कारण दूसरे देश जाने की इच्छा करते हुए विचार किया।)
उत्तर: कः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् ? (किसने धन के नष्ट हो जाने के कारण दूसरे देश जाने की इच्छा करते हुए विचार किया?)
(ख) श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय अभ्यागतेन सह प्रस्थितः। (श्रेष्ठी का पुत्र स्नान का सामान लेकर अतिथि के साथ चला गया।)
उत्तर: श्रेष्ठिनः शिशुः स्नानोपकरणमादाय केन सह प्रस्थितः? (श्रेष्ठी का पुत्र स्नान का सामान लेकर किसके साथ गया?)
(ग) वणिक् गिरिगुहां बृहच्छिलया आच्छादितवान्। (वणिक (व्यापारी) ने गुफा को बड़ी शिला से ढँका।)
उत्तर: वणिक् गिरिगुहां केन आच्छादितवान्? (वणिक ने गुफा को किससे ढँका?)
(घ) सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य तुला-शिशु-प्रदानेन सन्तोषितौ। (सभ्य लोगों ने उन्हें परस्पर संबोधित कर तराजू और बालक के लौटाने से संतुष्ट किया।)
उत्तर: सभ्यैः तौ परस्परं संबोध्य कथं सन्तोषितौ? (सभ्य लोगों ने उन्हें परस्पर संबोधित कर कैसे संतुष्ट किया?)
4. अधोलिखितानां श्लोकानाम् अपूर्णोऽन्वयः प्रदत्तः, पाठमाधृत्य तं पूरयत-
(निम्नलिखित श्लोकों का अपूर्ण अन्वय दिया गया है, पाठ के आधार पर उसे पूरा करें)
(क) यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ता —————————
उत्तर: यत्र देशे अथवा स्थाने स्ववीर्यतः भोगाः भुक्ताः । तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधमः ।
हिन्दी अनुवाद: जिस देश या स्थान में अपने परिश्रम से सुख (भोग) भोगे जा चुके हों, उस स्थान पर जो व्यक्ति धनहीन होकर रहता है, वह मनुष्यों में अधम (नीच) कहलाता है।
(ख) राजन् ! यत्र लौहसहस्त्रस्य तुलां मूषकाः खादन्ति —————————-
उत्तर: राजन् ! यत्र लौहसहस्त्रस्य तुलां मूषकाः खादन्ति । तत्र श्येनो बालकं हरेच्छ्येनो नात्र संशयः ।
हिन्दी अनुवाद: हे राजन्! जहाँ लोहे की हजारों तुलाएँ (तराजू) चूहे खा जाते हैं, वहाँ बाज बालक को उठा ले जाए — इसमें कोई संदेह नहीं है।
प्रश्न 5. तत्पदं रेखाङ्कितं कुरुत यत्र –
(वह शब्द रेखांकित कीजिए जिसमें दी गई विशेषता न हो।)
(क) ल्यप् प्रत्ययः नास्ति –
विहस्य, लौहसहस्रस्य, संबोध्य, आदाय
हिन्दी अर्थ: वह शब्द बताइए जिसमें ल्यप् प्रत्यय नहीं है।
उत्तर: लौहसहस्रस्य ✅
व्याख्या:
विहस्य (वि + हस् + ल्यप्) → ल्यप् प्रत्यय है।
संबोध्य (सम् + बुध् + ल्यप्) → ल्यप् प्रत्यय है।
आदाय (आ + दा + ल्यप्) → ल्यप् प्रत्यय है।
लौहसहस्रस्य में प्रत्यय नहीं, यह एक षष्ठी विभक्ति का रूप है।
(ख) यत्र द्वितीया विभक्तिः नास्ति –
श्रेष्ठिनम्, स्नानोपकरणम्, सत्त्वरम्, कार्यकारणम्
हिन्दी अर्थ: वह शब्द बताइए जिसमें द्वितीया विभक्ति नहीं है।
उत्तर: कार्यकारणम् ✅
व्याख्या:
श्रेष्ठिनम् → द्वितीया एकवचन (श्रेष्ठिनं)।
स्नानोपकरणम् → द्वितीया एकवचन (स्नान का सामान)।
सत्त्वरम् → द्वितीया एकवचन (शीघ्रता से)।
कार्यकारणम् → यह समास (कार्य और कारण) है, न कि द्वितीया विभक्ति।
(ग) यत्र षष्ठी विभक्तिः नास्ति –
पश्यतः, स्ववीर्यतः, श्रेष्ठिनः, सभ्यानाम्
हिन्दी अर्थ: वह शब्द बताइए जिसमें षष्ठी विभक्ति नहीं है।
उत्तर: स्ववीर्यतः ✅
व्याख्या:
पश्यतः → षष्ठी एकवचन (पश्यन् का रूप)।
श्रेष्ठिनः → षष्ठी एकवचन (श्रेष्ठी का)।
सभ्यानाम् → षष्ठी बहुवचन (सभ्यों का)।
स्ववीर्यतः → “अपने पराक्रम से” — यह अभ्यादानार्थक (पंचमी विभक्ति) है, षष्ठी नहीं।
6. सन्धिना सन्धिविच्छेदेन वा रिक्तस्थानानि पूरयत-
(संधि या संधि-विच्छेद से रिक्त स्थान भरें)
(क) श्रेष्ठ्याह = श्रेष्ठी + आह
(श्रेष्ठी ने कहा)
(ख) द्वावपि = द्वौ + अपि
(दोनों भी)
(ग) पुरुषोपार्जिता = पुरुष + उपार्जिता
(पुरुष द्वारा अर्जित / कमाया हुआ)
(घ) यथेच्छया = यथा + इच्छया
(इच्छानुसार / जैसी इच्छा हो)
(ङ) स्नानोपकरणम् = स्नान + उपकरणम्
(स्नान का सामान / स्नान के उपकरण)
(च) स्नानार्थम् = स्नान + अर्थम्
(स्नान के लिए / स्नान हेतु)
प्रश्न 7. समस्तपदं विग्रहं वा लिखत –
(समस्त पद या विग्रह लिखें)
| विग्रहः | समस्तपदम् | हिन्दी अर्थ |
|---|---|---|
| स्नानस्य उपकरणम् | स्नानोपकरणम् | स्नान का उपकरण |
| गिरेः गुहायाम् | गिरिगुहायाम् | पर्वत की गुफा में |
| धर्मस्य अधिकारी | धर्माधिकारी | धर्म का अधिकारी / न्यायाधीश |
| विभवेन हीनाः | विभवहीनाः | धनहीन / संपत्ति विहीन |
(अ) यथापेक्षम् अधोलिखितानां शब्दानां सहायतया “लौहतुला” इति कथायाः सारांशं संस्कृतभाषया लिखत-
(उचित शब्दों की सहायता से “लौहतुला” कथा का सारांश संस्कृत में लिखें)
वणिक्पुत्र: स्नानार्थम्
लौहतुला अयाचत्
वृत्तान्तं ज्ञात्वा
श्रेष्ठिनं प्रत्यागतः
गत: प्रदानम्
संस्कृत सारांश:
वणिक्पुत्रः जीर्णधनः देशान्तरात् प्रत्यागतः श्रेष्ठिनं लौहतुला अयाचत् । श्रेष्ठी तुलां मूषकभक्षिताम् उक्त्वा न ददौ । जीर्णधनः स्नानार्थं श्रेष्ठिनः पुत्रं नीत्वा गिरिगुहायां निक्षिप्य गतः । श्रेष्ठी पुत्रं पृच्छति सत्यं च श्रुत्वा वृत्तान्तं ज्ञात्वा राजकुले गतः । तत्र धर्माधिकारिणः तुला-शिशु-प्रदानम् कृत्वा उभौ सन्तोषितवन्तः ।
हिन्दी सारांश:
वणिक पुत्र जीर्णधन देशान्तर से लौटकर श्रेष्ठी से लौहतुला माँगता है। श्रेष्ठी कहता है कि तुला चूहों ने खा ली। जीर्णधन स्नान के लिए श्रेष्ठी के पुत्र को ले जाकर गुफा में छिपा देता है। श्रेष्ठी पुत्र को पूछता है, सत्य सुनकर दोनों राजदरबार जाते हैं। वहाँ धर्माधिकारी तुला और शिशु का आदान-प्रदान कराकर दोनों को संतुष्ट करते हैं।


Leave a Reply