लौहतुला (लोहे का तराजू)
🌸 संस्कृत में सारांशः —
षष्ठः पाठः “लौहतुला” विष्णुशर्मविरचितस्य “पञ्चतन्त्रम्” इति कथाग्रन्थस्य मित्रभेदतन्त्रात् सम्पादितः गृहीतः, अस्मिन् कथायाम् जीर्णधननामकः वणिक्पुत्रः विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् पूर्वपुरुषोपार्जितां लौहघटितां तुलां श्रेष्ठिनो निक्षेपभूतां कृत्वा गच्छति, सुचिरं देशान्तरे भ्रान्त्वा स्वपुरं प्रत्यागत्य तुलां याचति, श्रेष्ठी “मूषकैः भक्षिता” इति वदति, जीर्णधनः “नास्ति दोषः, ईदृशः संसारः, न किञ्चित् शाश्वतं” इति वदित्वा श्रेष्ठिपुत्रं धनदेवं स्नानार्थं नदीं प्रति स्नानोपकरणहस्तं प्रेषयितुं याचति, श्रेष्ठी पुत्रं “पितृव्योऽयं तव, अनेन साकं गच्छ” इति प्रेषयति, जीर्णधनः स्नात्वा धनदेवं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य बृहच्छिलया द्वारं पिधाय गृहं प्रत्यागच्छति, श्रेष्ठी “मम शिशुः कुत्र” इति पृच्छति, जीर्णधनः “नदीतटात् श्येनेन हृतः” इति वदति, श्रेष्ठी मिथ्यावादिन् इति कथति, “किं श्येनः शिशुं हरति?”, जीर्णधनः प्रत्युत्तरति “यथा श्येनः शिशुं न नयति, तथा मूषकाः लौहतुलां न भक्षन्ति, तुलां देहि यदि पुत्रेण प्रयोजनं”, उभौ विवदमानौ राजकुलं गच्छतः, श्रेष्ठी तारस्वरेण “मम शिशुः अपहृतः” इति कथति, जीर्णधनः “यत्र मूषकाः लौहसहस्रस्य तुलां खादन्ति, तत्र श्येनः बालकं हरति” इति श्लोकेन वदति, सभ्याः विहस्य तुला-शिशुप्रदानेन उभौ तोषितवन्तः। कथा नैतिकं ददाति यत् सत्यं रक्षति, मिथ्यावादेन विश्वासः नष्टति। पाठे एकपदेन, पूर्णवाक्येन उत्तराणि, स्थूलपदाधारितप्रश्ननिर्माणं, श्लोकान्वयपूर्तिः, पदरेखांकनं, सन्धिविच्छेदं, समस्तपदविग्रहं, कथासारांशं च अभ्यासाः विद्यन्ते, यैः संस्कृतभाषायाः कौशलं वर्धति।
🌼 हिन्दी में सारांश —
(यह पाठ “लौहतुला” विष्णु शर्मा द्वारा रचित “पञ्चतंत्र” के मित्रभेद तंत्र से संपादित कर लिया गया है, इस कहानी में जीर्णधन नाम का व्यापारी पुत्र धन की कमी से विदेश जाने की सोचकर पूर्वजों द्वारा कमाई लोहे की तुला धनिक को न्यास के रूप में देकर जाता है, लंबे समय तक विदेश में भटककर अपने शहर लौटकर तुला माँगता है, धनिक कहता है “चूहों ने खा ली”, जीर्णधन कहता है “कोई दोष नहीं, ऐसा ही संसार है, कुछ शाश्वत नहीं”, फिर धनिक के पुत्र धनदेव को स्नान के लिए स्नान सामग्री के साथ भेजने को कहता है, धनिक पुत्र को “यह तुम्हारा चाचा है, उसके साथ जाओ” कहकर भेजता है, जीर्णधन स्नान कर धनदेव को गुफा में डालकर बड़ी शिला से द्वार बंद कर घर लौटता है, धनिक “मेरा बेटा कहाँ” पूछता है, जीर्णधन कहता है “नदी के तट से बाज ने हर लिया”, धनिक झूठा कहता है, “क्या बाज बच्चे को ले जा सकता है?”, जीर्णधन जवाब देता है “जैसे बाज बच्चे को नहीं ले जा सकता, वैसे ही चूहे लोहे की तुला नहीं खा सकते, यदि बेटा चाहिए तो तुला दो”, दोनों झगड़ते हुए न्यायालय जाते हैं, धनिक जोर से कहता है “मेरा बेटा चुराया गया”, जीर्णधन श्लोक में कहता है “जहाँ चूहे हजार लोहे की तुला खा जाते हैं, वहाँ बाज बच्चे को ले जाता है”, सभ्य लोग हँसकर तुला और बच्चे के आदान-प्रदान से दोनों को संतुष्ट करते हैं। कहानी सिखाती है कि सत्य रक्षा करता है, झूठ से विश्वास नष्ट होता है। पाठ में एक पद में, पूर्ण वाक्य में उत्तर, स्थूल पद पर प्रश्न निर्माण, श्लोक अन्वय पूर्ति, पद रेखांकन, संधि-विच्छेद, समस्त पद विग्रह, कहानी सारांश आदि अभ्यास हैं, जो संस्कृत भाषा का कौशल बढ़ाते हैं।)
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