जटायोः शौर्यम् (जटायु की वीरता)
🌸 संस्कृत में सारांशः —
प्रस्तुतः अष्टमः पाठः “जटायोः शौर्यम्” महर्षिवाल्मीकिविरचितस्य “रामायणम्” इति महाकाव्यस्य अरण्यकाण्डात् समुद्धृतः अस्ति। अस्मिन् पाठे पक्षिराजस्य जटायोः रावणेन सह युद्धस्य शौर्यपूर्णं वर्णनं कृतम्, यत् कर्तव्यनिष्ठायाः आदर्शं प्रदर्शति। पञ्चवटीकानने सीतायाः करुणं क्रन्दनं श्रुत्वा जटायुः, यः वनस्पतिगतः अवसुप्तः आसीत्, तत्क्षणं जागति। श्लोकेन वर्णितम्: “सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदुःखिता। वनस्पतिगतं गृध्रं ददर्शायतलोचना॥” अर्थात् दुखिता सीता वृक्षस्थितं गृध्रं जटायुं दृष्टवती। सीता प्रार्थति: “जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत्। अनेन राक्षसेन्द्रेणाकरुणं पापकर्मणा॥” अर्थात् हे जटायो! मां राक्षस राजा रावणेन क्रूरतापूर्वक ह्रियमाणां पश्य। जटायुः रावणं नीचकर्मतः निवृत्त्यर्थं प्रबोधति। सः श्लोकेन कथति: “निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्। न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत्॥” अर्थात् परस्त्री के स्पर्शरूपी नीच कर्म से अपनी बुद्धि हटाओ, धीर पुरुष वह कार्य न करे जिसकी निन्दा हो। सः पुनः वदति: “वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी। न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि॥” अर्थात् मैं वृद्ध हूँ, तु युवा, सशस्त्र, रथ और कवचधारी च, तथापि मेरे जीवित रहते सीतां न ले जा सकेगा। परन्तु रावणः तं न मानति। ततः जटायुः तीक्ष्णतुण्डेन, नखाभ्यां चरणाभ्याञ्च रावणस्य गात्रं विदारति। श्लोकेन: “तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबलः। चकार बहुधा गात्रे व्रणान् पतगसत्तमः॥” अर्थात् जटायुः नखैः चरणैः रावणस्य शरीरं क्षतविक्षतं चकार। सः रावणस्य मणिविभूषितं धनुः चरणाभ्यां बभञ्ज। रावणः भग्नधन्वा, हताश्वः, हतसारथिः, विरथः च अभवत्। क्रोधमूर्च्छितः रावणः जटायुं तलेन प्रहरति, किन्तु जटायुः तस्य दश वामबाहून् व्यपाहरति। श्लोकेन: “जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिपः। वामबाहून् दश तदा व्यपाहरदरिन्दमः॥” अन्ते रावणः प्रहारैः मूर्च्छितः भवति। पाठस्य अन्ते अन्वयः, अभ्यासप्रश्नाः यथा एकपदोत्तरं, पूर्णवाक्योत्तरं, णिनिप्रत्ययप्रयोगः, विशेषणविश्लेषणं, पर्यायविलोमशब्दाः, वाक्यरचना, समस्तपदरचना च दत्तं यत् पाठस्य बोधं संनादति। एषा कथा जटायोः शौर्यं, धर्मनिष्ठां, कर्तव्यपरायणतां च प्रदर्शति।
🌼 हिन्दी में सारांश —
यह संस्कृत कक्षा 9 का आठवाँ पाठ “जटायोः शौर्यम्” है, जो वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड से लिया गया है। इस पाठ में जटायु और रावण के बीच हुए युद्ध का वीरतापूर्ण वर्णन है, जो कर्तव्य के प्रति निष्ठा का उदाहरण देता है। पंचवटी वन में सीता का दुख भरा रोना सुनकर जटायु, जो एक पेड़ पर सो रहा था, तुरंत जाग जाता है। श्लोक में लिखा है: “दुखी सीता ने पेड़ पर बैठे गृध्र जटायु को देखा।” सीता प्रार्थना करती है: “हे जटायु! इस पापी राक्षस राजा रावण द्वारा मुझे क्रूरता से हरते हुए देखो।” जटायु रावण को गलत काम छोड़ने के लिए समझाता है। वह श्लोक में कहता है: “परस्त्री को छूने की नीच बुद्धि छोड़ दो, समझदार व्यक्ति वह काम नहीं करता जिसकी लोग निंदा करें।” वह आगे कहता है: “मैं बूढ़ा हूँ, तुम युवा हो, हथियारों, रथ और कवच से लैस हो, फिर भी मेरे जीवित रहते तुम सीता को नहीं ले जा सकते।” लेकिन रावण नहीं मानता और जटायु को हटने को कहता है। तब जटायु अपनी तेज चोंच, नाखूनों और पंजों से रावण के शरीर को कई जगह घायल कर देता है। श्लोक में कहा गया: “जटायु ने अपने नाखूनों और पंजों से रावण के शरीर पर कई घाव किए।” जटायु रावण का मणियों से सजा धनुष तोड़ देता है। रावण का धनुष टूट जाता है, उसके घोड़े, सारथी और रथ नष्ट हो जाते हैं। गुस्से में रावण जटायु पर तलवार से हमला करता है, लेकिन जटायु रावण की दस बायीं भुजाएँ काट देता है। श्लोक में लिखा है: “जटायु ने रावण की दस बायीं भुजाएँ अपनी चोंच से काट दीं।” अंत में रावण बार-बार के हमलों से बेहोश हो जाता है। पाठ के अंत में अन्वय और अभ्यास प्रश्न दिए गए हैं, जैसे एक शब्द में उत्तर, पूर्ण वाक्य में उत्तर, णिनि प्रत्यय का प्रयोग, विशेषणों का विश्लेषण, पर्याय और विलोम शब्द, वाक्य रचना, और समस्त पदों की रचना, जो पाठ को समझने में मदद करते हैं। यह कहानी जटायु के शौर्य, धर्म के प्रति निष्ठा और कर्तव्य के महत्व को दर्शाती है।
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