पर्यावरणम् (पर्यावरण)
स्रोत: प्रस्तुतः पाठ्यांशः पर्यावरणविषयकः लघुनिबन्धः अस्ति।
(यह पाठ पर्यावरण के विषय पर एक लघु निबंध है।)
विषय: अस्मिन् पाठे पर्यावरणस्य महत्त्वं, प्रदूषणस्य दुष्परिणामाः, वृक्षारोपणस्य आवश्यकता च वर्णिता। अत्याधुनिकजीवनशैल्या प्रदूषणं प्राणिनां पुरतः अभिशापरूपेण समायाति। नद्यः मलिनाः, धरा निर्वना, वायुः विषाक्तः च जायति। वृक्षाभावात् पशुपक्षिणां जीवनं सङ्कटापन्नं भवति। वृक्षाः शुद्धवायुं, पत्रं, पुष्पं, फलं, काष्ठं, औषधिं, छायां च यच्छन्ति। अतः वृक्षारोपणं, जलशुद्धिः, ऊर्जासंरक्षणं च कर्तव्यम्।
(इस पाठ में पर्यावरण का महत्त्व, प्रदूषण के दुष्परिणाम और वृक्षारोपण की आवश्यकता का वर्णन है। आधुनिक जीवनशैली के कारण प्रदूषण प्राणियों के लिए अभिशाप बन गया है। नदियाँ गंदी हो रही हैं, धरती वनविहीन हो रही है, और हवा विषाक्त हो रही है। वृक्षों के अभाव से पशु-पक्षियों का जीवन खतरे में है। वृक्ष हमें शुद्ध हवा, पत्ते, फूल, फल, लकड़ी, औषधि और छाया देते हैं। इसलिए वृक्षारोपण, जल शुद्धिकरण और ऊर्जा संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।)
नैतिक शिक्षा: प्रकृतिरक्षा एव लोकरक्षा। (प्रकृति की रक्षा ही विश्व की रक्षा है।)
कथासारः (कहानी का सार)
प्रकृतेः महत्त्वम् (प्रकृति का महत्त्व):
प्रकृतिः सर्वं पुष्णाति, सुखसाधनैः तर्पयति। पृथिवी, जलं, तेजः, वायुः, आकाशः च तस्याः तत्त्वानि।
(प्रकृति सभी का पोषण करती है और सुख के साधनों से तृप्त करती है। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इसके प्रमुख तत्त्व हैं।)
पर्यावरणं मातृगर्भवत् मानवं रक्षति। परिष्कृतं पर्यावरणं जीवनसुखं, सद्विचारं च ददाति।
(पर्यावरण माँ के गर्भ की तरह मानव की रक्षा करता है। स्वच्छ पर्यावरण जीवन का सुख और अच्छे विचार देता है।)
प्रदूषणस्य दुष्परिणामाः (प्रदूषण के दुष्परिणाम):
यन्त्रेभ्यः निःसृतं विषाक्तं जलं नदीषु पतति, मत्स्यादीनां नाशः च भवति।
(मशीनों से निकला विषाक्त जल नदियों में गिरता है, जिससे मछलियों आदि का नाश होता है।)
वृक्षकर्तनात् अवृष्टिः, वन्यप्राणिनां सङ्कटं, शुद्धवायोः अभावः च जायति।
(वृक्षों की कटाई से सूखा, जंगली प्राणियों का संकट और शुद्ध हवा की कमी होती है।)
विकृतपर्यावरणात् रोगाः, समस्याः च सम्भवन्ति।
(प्रदूषित पर्यावरण से रोग और समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।)
पर्यावरणरक्षणस्य कर्तव्यम् (पर्यावरण रक्षा का कर्तव्य):
वृक्षारोपणं, जलशुचिता, ऊर्जासंरक्षणं च कर्तव्यम्।
(वृक्षारोपण, जल की शुद्धता और ऊर्जा संरक्षण करना चाहिए।)
धर्मो रक्षति रक्षितः इति वचनानुसारं पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम्।
(“धर्मो रक्षति रक्षितः” के अनुसार पर्यावरण रक्षा धर्म का हिस्सा है।)
कुक्कुर-सर्पादयः स्थलचराः, मत्स्य-कच्छपादयः जलचराः च रक्षणीयाः।
(कुत्ते, साँप जैसे स्थलीय प्राणी और मछली, कछुए जैसे जलचर प्राणी भी रक्षित करने योग्य हैं।)
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