पर्यावरणम् (पर्यावरण)
🌸 संस्कृत में सारांशः —
नवमः पाठः “पर्यावरणम्” पर्यावरणविषयकः लघुनिबन्धः अस्ति, यः प्रकृतेः संरक्षणस्य महत्त्वं प्रदर्शति। आधुनिकजीवनशैल्या प्रदूषणं प्राणिनां पुरतः अभिशापरूपेण समायाति। नदीनां जलं मलिनं भवति, धरा निर्वना जायति, यन्त्रेभ्यः निःसृतवायुना वातावरणं विषाक्तं रुजाकारकं च भवति। वृक्षाभावात् पशुपक्षिणां जीवनं सङ्कटापन्नं दृश्यते। श्लोकेन न कथितं, किन्तु पाठः स्पष्टति यत् वनस्पतीनाम् अभावे न केवलं वन्यप्राणिनः, अपितु सर्वं मानवजातं जीवनं स्थातुं न शक्नोति। पादपाः शुद्धवायुं, पत्रं, पुष्पं, फलं, काष्ठं, औषधिं, छायां च यच्छन्ति। अतः वृक्षारोपणं, तेषां संरक्षणं, जलशुचिता, ऊर्जासंरक्षणं, उद्यान-तडागादीनां शुचिता च पर्यावरणरक्षणाय आवश्यकं। प्रकृतिः सर्वं पुष्णाति, पृथिवी, जलं, तेजः, वायुः, आकाशः च अस्याः तत्त्वानि मिलित्वा पर्यावरणं रचन्ति। शुद्धं पर्यावरणं जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं च ददाति। परन्तु प्रकृतिकोपेन जलप्लावनं, अग्निभयं, भूकम्पः, वात्याचक्रं च जनं सन्तपति। प्राचीनकाले ऋषयः वने निवसन्ति स्म, यत्र शुद्धं पर्यावरणं, विहगकूजनं, निर्मलं जलं, फलपुष्पं, शीतलवायुः च लभ्यते स्म। किन्तु स्वार्थान्धः मानवः अद्य वृक्षान् छिन्दति, यन्त्रविषाक्तजलं नदीषु पातति, येन जलचराः नश्यन्ति, जलं अपेयं च भवति। अवृष्टिः, वन्यप्राणिनां उपद्रवः, शुद्धवायोः सङ्कटं च वृक्षकर्तनात् सम्भवति। विकृतपर्यावरणेन रोगाः समस्याः च जायन्ते। धर्मो रक्षति रक्षितः इति वचनानुसारं पर्यावरणरक्षणं धर्मस्य अङ्गम्। अतः वापीकूपतडागादिनिर्माणं, स्थलजलचरसंरक्षणं च आवश्यकं। पाठस्य अन्ते अभ्यासप्रश्नाः यथा एकपदोत्तरं, पूर्णवाक्योत्तरं, प्रश्ननिर्माणं, पदरचना, उपसर्गविश्लेषणं, समासविग्रहः, परियोजनाकार्यं च दत्तं, यत् पर्यावरणसंरक्षणस्य बोधं दृढति।
🌼 हिन्दी में सारांश —
यह कक्षा 9 का नवाँ पाठ “पर्यावरणम्” है, जो पर्यावरण के महत्व और उसकी रक्षा पर एक छोटा निबंध है। आज की आधुनिक जीवनशैली में प्रदूषण जीवों के लिए अभिशाप बन गया है। नदियों का पानी गंदा हो गया है, धीरे-धीरे धरती बंजर हो रही है, और मशीनों से निकलने वाली हवा वातावरण को जहरीला और बीमारियों का कारण बना रही है। पेड़ों की कमी और प्रदूषण के कारण कई पशु-पक्षियों का जीवन खतरे में है। पाठ बताता है कि पेड़ों के बिना न केवल जंगली जीव, बल्कि हम सभी का जीवन असंभव है। पेड़ हमें शुद्ध हवा, पत्ते, फूल, फल, लकड़ी, औषधियाँ और छाया देते हैं। इसलिए हमें पेड़ लगाने, उनकी रक्षा करने, पानी को साफ रखने, ऊर्जा बचाने, और उद्यान-तालाबों को स्वच्छ रखने जैसे प्रयास करने चाहिए। प्रकृति सभी जीवों की रक्षा करती है और पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश इसके मुख्य तत्व हैं, जो मिलकर पर्यावरण बनाते हैं। शुद्ध पर्यावरण हमें सुखी जीवन, अच्छे विचार और सच्चे संकल्प देता है। लेकिन प्रकृति के प्रकोप जैसे बाढ़, आग, भूकंप, तूफान आदि से लोग भयभीत होते हैं। प्राचीन समय में ऋषि जंगलों में रहते थे, जहाँ शुद्ध पर्यावरण, पक्षियों की मधुर आवाज़, निर्मल जल, फल-फूल और ठंडी हवा मिलती थी। लेकिन आज स्वार्थी मनुष्य पेड़ काट रहा है, कारखानों का जहरीला पानी नदियों में डाल रहा है, जिससे मछलियाँ और जलचर नष्ट हो रहे हैं, और पानी पीने लायक नहीं रहता। पेड़ काटने से बारिश कम होती है, जंगली जानवर गाँवों में उपद्रव करते हैं, और शुद्ध हवा का संकट बढ़ता है। प्रदूषित पर्यावरण से बीमारियाँ और समस्याएँ पैदा होती हैं। “धर्मो रक्षति रक्षितः” के अनुसार पर्यावरण की रक्षा धर्म का हिस्सा है। इसलिए कुएँ, तालाब, मंदिर, विश्रामगृह बनाना और स्थलीय-जलचर जीवों की रक्षा करना ज़रूरी है। पाठ के अंत में अभ्यास प्रश्न जैसे एक शब्द में उत्तर, पूर्ण वाक्य में उत्तर, प्रश्न निर्माण, शब्द रचना, उपसर्ग विश्लेषण, समास विग्रह और परियोजना कार्य दिए गए हैं, जो पर्यावरण संरक्षण की समझ को मजबूत करते हैं।
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