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रसायन विज्ञान Class 11 || Menu
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Rasayan Vigyan Class 11 Chapter 4 रसायन विज्ञान Important Questions

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रासायनिक आबंधन तथा आण्विक संरचना

प्रश्न 1: केमिकल बॉन्डिंग क्या है, और इसके विभिन्न प्रकारों की व्याख्या करें।

उत्तर:

केमिकल बॉन्डिंग वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विभिन्न तत्वों के परमाणु एक दूसरे के साथ जुड़ते हैं और रासायनिक यौगिक बनाते हैं। इसे विभिन्न प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है, जैसे कि:

आयोनिक बॉन्ड (इलेक्ट्रोवैलेंट बॉन्ड):

आयोनिक बॉन्ड का निर्माण तब होता है जब एक परमाणु अपना इलेक्ट्रॉन दूसरे परमाणु को दे देता है। इस प्रकार के बॉन्ड में धातु और अधातु के बीच इलेक्ट्रॉनों का आदान-प्रदान होता है। उदाहरण के लिए, NaCl में, सोडियम (Na) क्लोरीन (Cl) को एक इलेक्ट्रॉन देता है और Na⁺ तथा Cl⁻ आयन बनाता है। ये आयन इलेक्ट्रोस्टैटिक आकर्षण के कारण एक दूसरे के साथ जुड़ते हैं।

कोवैलेंट बॉन्ड:

कोवैलेंट बॉन्ड में, दो परमाणु एक या अधिक इलेक्ट्रॉन जोड़े साझा करते हैं। यह बॉन्ड गैर-धातुओं के बीच होता है। उदाहरण के लिए, H₂ में दो हाइड्रोजन परमाणु एक इलेक्ट्रॉन जोड़ा साझा करते हैं और एक स्थिर यौगिक बनाते हैं।

हाइड्रोजन बॉन्ड:

हाइड्रोजन बॉन्ड एक विशेष प्रकार का आकर्षण बल है जो तब उत्पन्न होता है जब हाइड्रोजन किसी उच्च इलेक्ट्रोनगेटिव तत्व (जैसे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, या फ्लोरीन) से जुड़ा होता है। यह बॉन्ड पानी (H₂O) के अणुओं के बीच में पाया जाता है, जहाँ एक अणु का हाइड्रोजन दूसरे अणु के ऑक्सीजन से आकर्षित होता है।

मेटालिक बॉन्ड:

मेटालिक बॉन्ड धातुओं में पाया जाने वाला एक प्रकार का बॉन्ड है, जहाँ धातु के परमाणु अपने बाहरी इलेक्ट्रॉनों को ढीला छोड़ देते हैं और ये इलेक्ट्रॉन एक “इलेक्ट्रॉन सागर” में स्वतंत्र रूप से बहते हैं। यह बॉन्ड धातुओं को उनकी विशेषताएँ, जैसे विद्युत चालकता और लचीलेपन, प्रदान करता है।

प्रश्न 2: वैलेन्स शेल इलेक्ट्रॉन पेयर रिपल्शन (VSEPR) सिद्धांत क्या है? इसके मुख्य सिद्धांतों की व्याख्या करें।

उत्तर:

VSEPR सिद्धांत, जिसे वैलेन्स शेल इलेक्ट्रॉन पेयर रिपल्शन सिद्धांत भी कहा जाता है, का उपयोग अणुओं की ज्यामिति की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है। यह सिद्धांत यह मानता है कि एक अणु के केंद्रीय परमाणु के चारों ओर स्थित इलेक्ट्रॉन पेयर एक-दूसरे को विकर्षित करते हैं और इस विकर्षण को कम से कम करने के लिए वे यथासंभव दूर रहना चाहते हैं।

VSEPR सिद्धांत के मुख्य सिद्धांत:

परमाणु के चारों ओर स्थित इलेक्ट्रॉन जोड़े विकर्षण करते हैं: केंद्रीय परमाणु के चारों ओर स्थित बॉन्डेड और नॉन-बॉन्डेड इलेक्ट्रॉन पेयर एक-दूसरे को विकर्षित करते हैं, जिससे वे स्थान घेरते हैं ताकि विकर्षण न्यूनतम हो।

इलेक्ट्रॉन पेयर विकर्षण का क्रम: विकर्षण की तीव्रता नॉन-बॉन्डेड इलेक्ट्रॉन पेयर (लोन पेयर) और बॉन्डेड इलेक्ट्रॉन पेयर के बीच सबसे अधिक होती है। यह क्रम इस प्रकार है: लोन पेयर-लोन पेयर > लोन पेयर-बॉन्ड पेयर > बॉन्ड पेयर-बॉन्ड पेयर।

अणु की ज्यामिति का निर्धारण: अणु की ज्यामिति इस बात पर निर्भर करती है कि उसके केंद्रीय परमाणु के चारों ओर कितने इलेक्ट्रॉन पेयर होते हैं। उदाहरण के लिए, CH₄ में चार बॉन्ड पेयर होते हैं, जो इसे एक टेट्राहेड्रल संरचना प्रदान करते हैं।

लोन पेयर का प्रभाव: लोन पेयर के कारण अणु की संरचना विकृत हो सकती है। उदाहरण के लिए, NH₃ में एक लोन पेयर होता है, जो अणु की संरचना को ट्रिगोनल पिरामिडल बनाता है, जबकि H₂O में दो लोन पेयर होते हैं, जिससे इसकी संरचना वक्राकार हो जाती है।

प्रश्न 3: ‘आयनिक बंध’ क्या है? इस बंध की स्थिरता को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें।

उत्तर:

आयनों के बीच इलेक्ट्रोस्टैटिक आकर्षण बल द्वारा बनने वाले रासायनिक बंध को आयनिक बंध या इलेक्ट्रोवलेंट बंध कहा जाता है। यह बंध उन तत्वों के बीच बनता है जिनकी इलेक्ट्रोनगेटिविटी में बड़ा अंतर होता है।

आयनिक बंध की स्थिरता को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:

आयनन ऊर्जा (Ionization Energy): जब किसी तत्व के परमाणु से इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा को आयनन ऊर्जा कहा जाता है। निम्न आयनन ऊर्जा वाले तत्व आसानी से सकारात्मक आयन (cation) बनाते हैं और आयनिक बंध बनाने में सक्षम होते हैं।

इलेक्ट्रॉन गेन एन्थैल्पी (Electron Gain Enthalpy): यह वह ऊर्जा है जो किसी परमाणु को इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने पर मुक्त होती है। यह ऊर्जा जितनी अधिक नकारात्मक होती है, उतनी ही आसानी से तत्व नकारात्मक आयन (anion) बनाते हैं और आयनिक बंध स्थिर होता है।

लैटिस एन्थैल्पी (Lattice Enthalpy): जब आयन ठोस अवस्था में तीन-आयामी संरचना बनाते हैं, तो उनसे संबंधित लैटिस एन्थैल्पी उत्पन्न होती है। यह वह ऊर्जा है जो एक मोल ठोस आयनिक यौगिक को उसके गैसीय आयनों में विभाजित करने के लिए आवश्यक होती है। लैटिस एन्थैल्पी जितनी अधिक होती है, बंध उतना ही स्थिर होता है।

आयन का आकार (Size of Ions): छोटे कटीआन और बड़े एनीआन का संयोजन आयनिक बंध की स्थिरता को बढ़ाता है, क्योंकि इसमें आकर्षण बल अधिक होता है।

प्रश्न 4: लुईस संरचना (Lewis Structure) क्या है? लुईस डॉट संरचना बनाने के लिए कदमों का वर्णन करें।

उत्तर:

लुईस संरचना एक रासायनिक यौगिक में बंधन और असबंधित इलेक्ट्रॉनों की व्यवस्था को दर्शाने का तरीका है। इस संरचना में इलेक्ट्रॉनों को डॉट्स के रूप में दिखाया जाता है।

लुईस डॉट संरचना बनाने के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन किया जाता है:

मूल तत्वों के संयोजन के लिए कुल वैलेन्स इलेक्ट्रॉनों की गणना करें। जैसे कि \(CH_4\) (मीथेन) में कुल 8 वैलेन्स इलेक्ट्रॉन होते हैं (कार्बन से 4 और चार हाइड्रोजन से 1-1)।

आयन में किसी भी ऋणात्मक या धनात्मक चार्ज के अनुसार इलेक्ट्रॉनों को जोड़ें या घटाएं। उदाहरण के लिए, \(CO_3^{2-}\) आयन में दो अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं।

संयुक्त तत्वों के प्रतीकों को ध्यान में रखते हुए, कुल इलेक्ट्रॉनों को बंधनों के रूप में विभाजित करें। यह ध्यान रखें कि सबसे कम इलेक्ट्रोनेगेटिव तत्व को केंद्रीय परमाणु के रूप में चुना जाए।

एकल बंधों के रूप में इलेक्ट्रॉनों को जोड़ने के बाद, बचे हुए इलेक्ट्रॉनों का उपयोग बहुबंध बनाने या अकेले जोड़े के रूप में करने के लिए किया जाता है। प्रत्येक संयोजक परमाणु के लिए ऑक्टेट नियम का पालन करें।

उदाहरण के लिए, \(CH_4\) में चार बंध बनाने के बाद कोई भी अकेला जोड़ा नहीं बचता है, जबकि \(CO_3^{2-}\) आयन में प्रत्येक ऑक्सीजन परमाणु में एकल इलेक्ट्रॉन जोड़ने के बाद बहुबंध की आवश्यकता हो सकती है।

प्रश्न 5: वीएसईपीआर सिद्धांत (VSEPR Theory) क्या है? इस सिद्धांत का उपयोग करते हुए, NH₃ और H₂O अणुओं की संरचना और आकृति का वर्णन करें।

उत्तर:

वीएसईपीआर (Valence Shell Electron Pair Repulsion) सिद्धांत के अनुसार, अणुओं की आकृति केंद्रक परमाणु के चारों ओर उपस्थित इलेक्ट्रॉनों के जोड़ों के बीच प्रतिकर्षण पर निर्भर करती है। यह सिद्धांत कहता है कि इलेक्ट्रॉन जोड़े एक दूसरे से अधिकतम दूरी पर व्यवस्थित होते हैं ताकि उनके बीच न्यूनतम प्रतिकर्षण हो।

\(NH_3\) (अमोनिया):

संरचना: नाइट्रोजन के चारों ओर तीन बंध जोड़े (N-H) और एक अकेला जोड़ा (lone pair) उपस्थित होते हैं।

आकृति: तीन बंध जोड़े और एक अकेला जोड़ा होने के कारण अणु की संरचना त्रिकोणीय पिरामिडल (Trigonal Pyramidal) होती है। बंध कोण लगभग 107° होता है।

\(H_2O\) (जल):

संरचना: ऑक्सीजन के चारों ओर दो बंध जोड़े (O-H) और दो अकेले जोड़े (lone pairs) होते हैं।

आकृति: दो अकेले जोड़े के कारण \(H_2O\) की संरचना वक्रित (Bent) या V-आकार की होती है। बंध कोण लगभग 104.5° होता है।

प्रश्न 6: रेजोनेंस (Resonance) क्या है? \(CO_3^{2-}\) आयन के उदाहरण के साथ समझाएं।

उत्तर:

जब किसी अणु के एकल लुईस संरचना द्वारा उसका सटीक वर्णन नहीं किया जा सकता, तो ऐसे मामलों में रेजोनेंस अवधारणा का उपयोग किया जाता है। रेजोनेंस के अनुसार, अणु की सटीक संरचना के लिए समान ऊर्जा, परमाणुओं की स्थिति, बंधन और गैर-बंधन इलेक्ट्रॉन जोड़ों वाली कई संरचनाओं को सम्मिलित किया जाता है।

\(CO_3^{2-}\) आयन का उदाहरण:

\(CO_3^{2-}\) आयन के लिए केवल एक लुईस संरचना में कार्बन और ऑक्सीजन के बीच दो एकल बंध और एक दोहरा बंध दिखाया जाता है। लेकिन प्रयोगिक रूप से सभी C-O बंध की लंबाई समान होती है। इस प्रकार, \(CO_3^{2-}\) आयन की वास्तविक संरचना तीन रेजोनेंस संरचनाओं का संयोजन है, जहाँ सभी C-O बंध एक समान होते हैं।

प्रश्न 7: हाइब्रिडाइजेशन (Hybridization) क्या है? \(sp^3\) हाइब्रिडाइजेशन के उदाहरण के साथ विस्तार से समझाएं।

उत्तर:

हाइब्रिडाइजेशन वह प्रक्रिया है जिसमें एक ही परमाणु के विभिन्न उर्जा स्तरों की ऑर्बिटल्स मिश्रित होकर नई ऑर्बिटल्स बनाती हैं, जो समान उर्जा और आकार की होती हैं। इन हाइब्रिड ऑर्बिटल्स का उपयोग बंध बनाने में होता है।

\(sp^3\) हाइब्रिडाइजेशन

उदाहरण: मीथेन (\(CH_4\)) अणु में एक 2s और तीन 2p ऑर्बिटल्स के संलयन से चार sp³ हाइब्रिड ऑर्बिटल्स बनते हैं। ये ऑर्बिटल्स एक टेट्राहेड्रल संरचना बनाते हैं जिसमें सभी C-H बंध 109.5° के कोण पर होते हैं।

संरचना: चारों हाइड्रोजन परमाणु कार्बन के साथ एक ही प्रकार के बंधन (sigma bonds) बनाते हैं, जिससे मीथेन अणु की आकृति टेट्राहेड्रल होती है।

प्रश्न 8: ‘बॉन्ड एन्थैल्पी’ (Bond Enthalpy) क्या है? बॉन्ड एन्थैल्पी के आधार पर विभिन्न बॉन्डों की मजबूती की तुलना करें।

उत्तर:

बॉन्ड एन्थैल्पी उस ऊर्जा की मात्रा है जो गैसीय अवस्था में एक मोल बंध को तोड़ने के लिए आवश्यक होती है। इसे kJ/mol में मापा जाता है। यह किसी अणु में बंध की मजबूती का मापदंड है।

बॉन्ड एन्थैल्पी के आधार पर बंधों की मजबूती की तुलना:

सिंगल बंध (Single Bond): उदाहरण के लिए, H-H बंध में बॉन्ड एन्थैल्पी 435.8 kJ/mol है, जो बताता है कि इस बंध को तोड़ने के लिए उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस प्रकार, H-H बंध मजबूत होता है।

डबल बंध (Double Bond): O=O बंध (ऑक्सीजन अणु) की बॉन्ड एन्थैल्पी 498 kJ/mol है। यह दर्शाता है कि डबल बंध सिंगल बंध से अधिक मजबूत होता है।

ट्रिपल बंध (Triple Bond): N≡N बंध (नाइट्रोजन अणु) की बॉन्ड एन्थैल्पी 946 kJ/mol है, जो बताता है कि ट्रिपल बंध सबसे मजबूत होता है।

प्रश्न 9: ‘रेजोनेंस स्ट्रक्चर’ (Resonance Structure) और उसकी स्थिरता पर इसके प्रभाव को समझाएं। ओजोन (O₃) अणु के उदाहरण के साथ वर्णन करें।

उत्तर:

रेजोनेंस स्ट्रक्चर का तात्पर्य एक से अधिक लुईस संरचनाओं से है जो किसी अणु की सटीक संरचना को दर्शाने में सक्षम नहीं होती हैं। इन संरचनाओं का संयोजन वास्तविक संरचना को दर्शाता है, जिसे रेजोनेंस हाइब्रिड कहा जाता है।

रेजोनेंस का स्थिरता पर प्रभाव:

रेजोनेंस के कारण अणु की स्थिरता बढ़ जाती है क्योंकि हाइब्रिड संरचना की ऊर्जा व्यक्तिगत रेजोनेंस संरचनाओं की तुलना में कम होती है। यह अणु को अधिक स्थिर बनाता है।

ओजोन (O₃) अणु का उदाहरण:

ओजोन अणु में तीन ऑक्सीजन परमाणु होते हैं। इसकी रेजोनेंस संरचना में एक O-O सिंगल बंध और एक O=O डबल बंध होता है, लेकिन वास्तविकता में दोनों बंध समान होते हैं। इसका कारण यह है कि रेजोनेंस के कारण बंध की लंबाई और ऊर्जा समान हो जाती है, जिससे अणु की स्थिरता बढ़ जाती है।

प्रश्न 10: ऑक्टेट नियम (Octet Rule) क्या है? इस नियम की सीमाओं का वर्णन करें।

उत्तर:

ऑक्टेट नियम के अनुसार, परमाणु रासायनिक बंध बनाने के लिए इलेक्ट्रॉन प्राप्त करते हैं, खोते हैं, या साझा करते हैं ताकि उनकी बाहरी शेल में कुल आठ इलेक्ट्रॉन हो जाएं, जो उन्हें एक स्थिर इलेक्ट्रॉनिक संरचना प्रदान करता है। यह नियम विशेष रूप से दूसरी अवधि के तत्वों पर लागू होता है।

ऑक्टेट नियम की सीमाएँ:

अधूरी ऑक्टेट: कुछ अणुओं में केंद्रीय परमाणु के चारों ओर आठ से कम इलेक्ट्रॉन होते हैं, जैसे BeCl₂ और BF₃ में।

विषम इलेक्ट्रॉन वाले अणु: कुछ अणुओं में विषम संख्या में इलेक्ट्रॉन होते हैं, जैसे NO और NO₂, जो ऑक्टेट नियम का पालन नहीं करते।

विस्तारित ऑक्टेट: तीसरी अवधि और उसके बाद के तत्वों में d-ऑर्बिटल्स होते हैं, जिससे वे आठ से अधिक इलेक्ट्रॉन को समायोजित कर सकते हैं, जैसे SF₆ और PF₅ में।

प्रश्न 11: वैलेंस बांड सिद्धांत (Valence Bond Theory) क्या है? इसे हाइड्रोजन अणु के गठन में कैसे लागू किया जाता है?

उत्तर:

वैलेंस बांड सिद्धांत के अनुसार, एक रासायनिक बंध उस समय बनता है जब दो परमाणु अपनी वैलेंस शेल इलेक्ट्रॉनों को जोड़ते हैं और उनके ऑर्बिटल्स ओवरलैप करते हैं। इस ओवरलैप के परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉन के जोड़े का निर्माण होता है, जो बंध के रूप में परिणत होता है।

हाइड्रोजन अणु में वैलेंस बांड सिद्धांत का उपयोग:

हाइड्रोजन अणु (\(H_2\)) का निर्माण दो हाइड्रोजन परमाणुओं के बीच होता है। प्रत्येक हाइड्रोजन परमाणु के पास एक-एक इलेक्ट्रॉन होता है। जब ये दो परमाणु पास आते हैं, तो उनके 1s ऑर्बिटल्स ओवरलैप करते हैं, जिससे एक बंध बनता है। इस बंध को सिग्मा (σ) बंध कहा जाता है, और यह अणु को स्थिरता प्रदान करता है।

प्रश्न 12: ‘विकिरण और अपवर्तक बल’ (Attractive and Repulsive Forces) के बीच संतुलन का महत्व हाइड्रोजन अणु के निर्माण में क्या है?

उत्तर:

जब दो हाइड्रोजन परमाणु एक-दूसरे के निकट आते हैं, तो उनके बीच आकर्षक और अपवर्तक बल उत्पन्न होते हैं।

आकर्षक बल:

प्रत्येक परमाणु के नाभिक और दूसरे परमाणु के इलेक्ट्रॉन के बीच।
एक ही परमाणु के नाभिक और उसके इलेक्ट्रॉन के बीच।

अपवर्तक बल:

दोनों परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनों के बीच।
दोनों परमाणुओं के नाभिकों के बीच।
जब आकर्षक बल अपवर्तक बल से अधिक होता है, तो दोनों परमाणु पास आते हैं और उनकी संभावित ऊर्जा कम होती जाती है। इस अवस्था में, जब दोनों बलों के बीच संतुलन बन जाता है, तो बंध का निर्माण होता है और हाइड्रोजन अणु स्थिर हो जाता है।

प्रश्न 13: ‘बॉन्ड ऑर्डर’ (Bond Order) क्या है? इसे \(NO^+, O_2\) और \(N_2\) अणुओं के उदाहरण के साथ समझाएं।

उत्तर:

बॉन्ड ऑर्डर उस संख्या को दर्शाता है जो दो परमाणुओं के बीच मौजूद बंधों की संख्या होती है। इसे लुईस संरचना द्वारा गणना किया जाता है।

\(NO^+\) (नाइट्रोजन ऑक्साइड का आयन):  \(NO^+\)  में बॉन्ड ऑर्डर 3 होता है, जो यह दर्शाता है कि इसमें ट्रिपल बंध है।

\(O_2\) (ऑक्सीजन अणु): \(O_2\) में बॉन्ड ऑर्डर 2 होता है, जो यह दर्शाता है कि इसमें डबल बंध है।

\(N_2\) (नाइट्रोजन अणु): \(N_2\) में बॉन्ड ऑर्डर 3 होता है, जो इसे एक अत्यधिक स्थिर अणु बनाता है, क्योंकि इसमें ट्रिपल बंध है।

प्रश्न 14: ‘बॉन्ड एंगल’ (Bond Angle) क्या है? इसका महत्व \(H_2O\) और \(CO_2\) अणुओं के उदाहरणों के साथ स्पष्ट करें।

उत्तर:

बॉन्ड एंगल उस कोण को कहा जाता है जो केंद्रक परमाणु के चारों ओर उपस्थित बंधन इलेक्ट्रॉन जोड़ों के बीच बनता है। इसे अंशों (डिग्री) में मापा जाता है।

\(H_2O\) अणु: \(H_2O\) अणु में H-O-H बंध कोण लगभग 104.5° होता है। यह कोण lone pair-bond pair प्रतिकर्षण के कारण 109.5° से कम हो जाता है, जिससे अणु की संरचना वक्रित (bent) हो जाती है।

\(CO_2\) अणु: \(CO_2\) अणु में O=C=O बंध कोण 180° होता है, जो इसे एक रैखिक संरचना (linear structure) प्रदान करता है। इसमें कोई lone pair नहीं होने के कारण सभी बंधन इलेक्ट्रॉन जोड़े समान रूप से व्यवस्थित होते हैं।

प्रश्न 15: ‘इलेक्ट्रोनगेटिविटी’ (Electronegativity) क्या है? इसका महत्व रासायनिक बंधों के निर्माण में स्पष्ट करें।

उत्तर:

इलेक्ट्रोनगेटिविटी किसी परमाणु की वह क्षमता है जिससे वह एक बंधन में इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर खींचता है।

रासायनिक बंधों के निर्माण में इलेक्ट्रोनगेटिविटी का महत्व:

आयोनिक बंध: जब दो परमाणुओं की इलेक्ट्रोनगेटिविटी में बड़ा अंतर होता है, तो इलेक्ट्रॉनों का स्थानांतरण होता है और आयोनिक बंध बनता है, जैसे NaCl में।

कोवैलेंट बंध: जब दो परमाणुओं की इलेक्ट्रोनगेटिविटी समान या करीब होती है, तो वे इलेक्ट्रॉनों को साझा करते हैं और कोवैलेंट बंध बनता है, जैसे \(H_2\)अणु में।

पोलर कोवैलेंट बंध: जब दो परमाणुओं की इलेक्ट्रोनगेटिविटी में मध्यम अंतर होता है, तो बंध में कुछ हद तक ध्रुवीयता होती है, जैसे HCl अणु में।

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