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रसायन विज्ञान Class 11 || Menu
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Rasayan Vigyan Class 11 Chapter 5 रसायन विज्ञान Important Questions

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ऊष्मागतिकी

प्रश्न 1: ऊष्मागतिकी में ‘तंत्र’ और ‘परिस्थिति’ क्या होते हैं? तंत्र के विभिन्न प्रकारों को समझाइए।

उत्तर:

ऊष्मागतिकी में ‘तंत्र’ (System) उस ब्रह्मांड का वह हिस्सा होता है जिसमें अवलोकन किया जाता है, और शेष ब्रह्मांड को ‘परिस्थिति’ (Surroundings) कहा जाता है। तंत्र और परिस्थिति मिलकर ब्रह्मांड का निर्माण करते हैं। तंत्र को निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है:

खुला तंत्र (Open System): इसमें ऊर्जा और पदार्थ का आदान-प्रदान तंत्र और परिस्थिति के बीच होता है। उदाहरण के लिए, एक खुले बीकर में रखे गए रसायन।

बंद तंत्र (Closed System): इसमें केवल ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है, पदार्थ का नहीं। जैसे कि एक धातु के पात्र में रखे गए रसायन।

अलग-थलग तंत्र (Isolated System): इसमें न तो ऊर्जा का और न ही पदार्थ का आदान-प्रदान तंत्र और परिस्थिति के बीच होता है। उदाहरण के लिए, एक थर्मस फ्लास्क में रखे गए पदार्थ।

प्रश्न 2: ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम को समझाइए। इसे गणितीय रूप में कैसे व्यक्त किया जा सकता है?

उत्तर:

ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊर्जा संरक्षण का नियम है, जो कहता है कि “ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है।” इसे गणितीय रूप में निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है:

ΔU = q + w

यहाँ, ΔU तंत्र की आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन है, q वह ऊष्मा है जो तंत्र में डाली जाती है, और w वह कार्य है जो तंत्र पर किया जाता है। इस नियम के अनुसार, तंत्र की आंतरिक ऊर्जा का परिवर्तन, उसमें डाली गई ऊष्मा और किए गए कार्य के योग के बराबर होता है।

प्रश्न 3: एंथैल्पी (H) क्या है? इसे कैसे परिभाषित किया जा सकता है? एंथैल्पी और आंतरिक ऊर्जा (U) के बीच संबंध को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

एंथैल्पी (H) एक ऊष्मागतिक गुण है जो तंत्र की कुल ऊष्मीय ऊर्जा को दर्शाता है। इसे निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है:

H = U + pV

यहाँ, U तंत्र की आंतरिक ऊर्जा है, p तंत्र का दाब है, और V तंत्र का आयतन है। जब किसी प्रक्रिया में एंथैल्पी का परिवर्तन होता है, तो इसे निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है:

ΔH = ΔU + pΔV

एंथैल्पी परिवर्तन (ΔH) वह ऊष्मा है जो एक तंत्र द्वारा निरंतर दाब पर अवशोषित या उत्सर्जित की जाती है।

प्रश्न 4: किसी रासायनिक प्रतिक्रिया के लिए हेस का नियम क्या है? इसका महत्व क्या है?

उत्तर:

हेस का नियम ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम का अनुप्रयोग है, जो कहता है कि किसी रासायनिक प्रतिक्रिया के लिए एंथैल्पी परिवर्तन उस प्रतिक्रिया के मार्ग पर निर्भर नहीं करता है। इसे निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है:

यदि कोई प्रतिक्रिया कई चरणों में होती है, तो प्रतिक्रिया की कुल एंथैल्पी परिवर्तन, उन सभी मध्यवर्ती प्रतिक्रियाओं की एंथैल्पी परिवर्तनों के योग के बराबर होती है।

इसका महत्व इस तथ्य में है कि यह हमें जटिल रासायनिक प्रतिक्रियाओं की एंथैल्पी परिवर्तनों को सरल प्रक्रियाओं के माध्यम से गणना करने की अनुमति देता है।

प्रश्न 5: बॉन्ड एंथैल्पी क्या होती है? पॉलीएटॉमिक अणुओं में औसत बॉन्ड एंथैल्पी की अवधारणा को समझाइए।

उत्तर:

बॉन्ड एंथैल्पी वह ऊर्जा है जो एक मोल गैसीय अणु में एक रासायनिक बंधन को तोड़ने के लिए आवश्यक होती है। इसे इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:

A-B (g) → A (g) + B (g); ΔH bond

जहाँ, ΔH bond उस बंधन की बॉन्ड एंथैल्पी है। पॉलीएटॉमिक अणुओं में, बंधनों की बॉन्ड एंथैल्पी एक समान नहीं होती है। इस स्थिति में, औसत बॉन्ड एंथैल्पी का उपयोग किया जाता है, जो कि एक विशेष बंधन के सभी संभव अलग-अलग बंधनों की बॉन्ड एंथैल्पी का औसत होता है। उदाहरण के लिए, मिथेन (\(CH_4\)) अणु में चार C-H बंधनों की औसत बॉन्ड एंथैल्पी का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 6: एंट्रॉपी (Entropy) क्या है? किसी तंत्र की सहजता (Spontaneity) में इसका क्या योगदान होता है?

उत्तर:

एंट्रॉपी (S) एक थर्मोडायनामिक मात्रा है जो किसी तंत्र में अव्यवस्था या विकार के माप को दर्शाती है। इसे निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है:

\(ΔS = \frac{ΔQrev}{T}\)

जहाँ, ΔS एंट्रॉपी में परिवर्तन है, ΔQ rev वह ऊष्मा है जो तंत्र में एक प्रतिवर्ती प्रक्रिया में प्रवेश करती है, और T तापमान है।

तंत्र की सहजता और एंट्रॉपी का योगदान:

किसी भी तंत्र की सहजता को एंट्रॉपी में परिवर्तन से मापा जा सकता है। यदि किसी प्रक्रिया में तंत्र की एंट्रॉपी बढ़ती है (ΔS > 0), तो वह प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से होती है। दूसरी ओर, यदि एंट्रॉपी घटती है (ΔS<0), तो प्रक्रिया स्वाभाविक नहीं होती, और इसे घटित होने के लिए बाहरी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।

इसके अतिरिक्त, तंत्र और परिस्थिति की संयुक्त एंट्रॉपी के आधार पर, किसी भी प्रक्रिया की कुल एंट्रॉपी (ΔS total = ΔS system + ΔS surroundings) को भी मापा जा सकता है, जो यह निर्धारित करती है कि प्रक्रिया सहज है या नहीं।

प्रश्न 7: गिब्स मुक्त ऊर्जा (Gibbs Free Energy) क्या होती है? इसका समीकरण लिखिए और इसे सहजता के माप के रूप में कैसे उपयोग किया जा सकता है?

उत्तर:

गिब्स मुक्त ऊर्जा (G) एक थर्मोडायनामिक अवस्था फलन है जो यह बताती है कि किसी तंत्र में कितनी ऊर्जा कार्य के रूप में उपलब्ध है। इसे निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त किया जाता है:

G = H − TS

यहाँ, G गिब्स मुक्त ऊर्जा है, H एंथैल्पी है, T तापमान है, और S एंट्रॉपी है।

सहजता और गिब्स मुक्त ऊर्जा:

किसी भी रासायनिक या भौतिक प्रक्रिया की सहजता को गिब्स मुक्त ऊर्जा के परिवर्तन (ΔG) के माध्यम से निर्धारित किया जा सकता है:
यदि ΔG < 0, तो प्रक्रिया सहज होती है। यदि ΔG > 0, तो प्रक्रिया सहज नहीं होती और इसे घटित होने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
यदि ΔG = 0, तो तंत्र संतुलन की स्थिति में होता है और कोई शुद्ध परिवर्तन नहीं होता।
इस प्रकार, गिब्स मुक्त ऊर्जा एक महत्वपूर्ण थर्मोडायनामिक गुण है जो किसी भी प्रक्रिया की संभावना और दिशा को निर्धारित करने में सहायक है।

प्रश्न 8: ऊष्मागतिकी में ‘कार्य’ (Work) और ‘ऊष्मा’ (Heat) के बीच क्या अंतर है? इनका उपयोग आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन को मापने के लिए कैसे किया जाता है?

उत्तर:

ऊष्मागतिकी में, ‘कार्य’ (Work) और ‘ऊष्मा’ (Heat) दोनों ऊर्जा के रूप होते हैं, लेकिन उनका तंत्र के साथ विभिन्न तरीकों से आदान-प्रदान होता है:
कार्य (Work): यह वह ऊर्जा है जो तंत्र के द्वारा या तंत्र पर बाहरी कारकों के कारण होती है, जैसे पिस्टन का स्थानांतरण।
ऊष्मा (Heat): यह वह ऊर्जा है जो तापमान अंतर के कारण तंत्र और उसके वातावरण के बीच स्थानांतरित होती है।
आंतरिक ऊर्जा (U) का परिवर्तन कार्य और ऊष्मा दोनों के योगदान से मापा जा सकता है, और इसे निम्नलिखित समीकरण से व्यक्त किया जा सकता है:

ΔU = q + w

यहाँ, q तंत्र में डाली गई ऊष्मा है और w तंत्र द्वारा किया गया कार्य है। यह समीकरण दर्शाता है कि किसी तंत्र की आंतरिक ऊर्जा का कुल परिवर्तन, उसमें प्रविष्ट ऊष्मा और उसके द्वारा किए गए कार्य का योग है।

प्रश्न 9: विभिन्न ऊष्मागतिक प्रक्रियाओं जैसे समतापीय (Isothermal), रुद्धोष्मीय (Adiabatic), और समदाबीय (Isobaric) प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर:

समतापीय प्रक्रिया (Isothermal Process): यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तंत्र का तापमान स्थिर रहता है। इस प्रक्रिया में, ऊष्मा का स्थानांतरण तंत्र और वातावरण के बीच होता है, ताकि तापमान स्थिर रहे।

रुद्धोष्मीय प्रक्रिया (Adiabatic Process): इस प्रक्रिया में तंत्र और उसके वातावरण के बीच कोई ऊष्मा का स्थानांतरण नहीं होता है। इस कारण, तंत्र के आंतरिक ऊर्जा में होने वाला परिवर्तन केवल कार्य पर निर्भर करता है।

समदाबीय प्रक्रिया (Isobaric Process): यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तंत्र का दाब स्थिर रहता है। इस प्रक्रिया में तंत्र के आयतन में होने वाले परिवर्तन के साथ ऊष्मा का स्थानांतरण होता है।

प्रश्न 10: रासायनिक ऊष्मा (Chemical Thermodynamics) में हेस का नियम कैसे काम करता है? उदाहरण सहित समझाइए।

उत्तर:

हेस का नियम यह कहता है कि किसी रासायनिक प्रक्रिया के लिए एंथैल्पी परिवर्तन उस प्रक्रिया के मार्ग पर निर्भर नहीं करता है। इसे निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है:
“यदि किसी रासायनिक प्रक्रिया को एक से अधिक चरणों में पूरा किया जाता है, तो प्रत्येक चरण में होने वाले एंथैल्पी परिवर्तनों का योग कुल प्रक्रिया के लिए एंथैल्पी परिवर्तन के बराबर होता है।”

उदाहरण:

मान लीजिए कि हमें कार्बन (C) को कार्बन डाइऑक्साइड (\(CO_2\)) में परिवर्तित करना है। यह प्रक्रिया दो चरणों में हो सकती है:

कार्बन का कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) में परिवर्तन:

\(C (s) + \frac{1}{2}O_2(g) → CO(g);ΔH_1 = − 110.5kJ/mol\)

कार्बन मोनोऑक्साइड का कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तन:

\(CO(g) + \frac{1}{2}O_2(g) → CO_2(g);ΔH_2 = − 283.0kJ/mol\)

अब, हेस के नियम के अनुसार, कार्बन से सीधे कार्बन डाइऑक्साइड बनने पर कुल एंथैल्पी परिवर्तन होगा:

\(ΔH = ΔH_1 + ΔH_2 = − 110.5 + (−283.0) = − 393.5kJ/mol\)

यह हेस के नियम का एक सरल उदाहरण है, जो दर्शाता है कि किसी भी प्रक्रिया के लिए कुल एंथैल्पी परिवर्तन उन चरणों के एंथैल्पी परिवर्तनों के योग के बराबर होता है जिनमें प्रक्रिया पूरी होती है।

प्रश्न 11: ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम को समझाइए और इसे एंट्रॉपी के संदर्भ में कैसे व्यक्त किया जा सकता है?

उत्तर:

ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम कहता है कि “किसी भी स्पोंटेनियस प्रक्रिया के लिए, समग्र तंत्र और उसके वातावरण की कुल एंट्रॉपी में वृद्धि होती है।”

दूसरे शब्दों में, इस नियम के अनुसार, कोई भी स्पोंटेनियस प्रक्रिया तंत्र की अव्यवस्था को बढ़ाती है। इसे निम्नलिखित रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है:

\(ΔS_total = ΔS_system + ΔS_surroundings > 0\)

यहाँ, \(ΔS_total\) कुल एंट्रॉपी परिवर्तन है, जो तंत्र और वातावरण दोनों का संयुक्त परिणाम है।

यह नियम यह भी बताता है कि किसी भी आदर्श ऊष्मा इंजन की दक्षता सीमित होती है और कोई भी प्रक्रिया बिना ऊर्जा के पूरी तरह से कार्य में परिवर्तित नहीं हो सकती।

प्रश्न 12: किसी ऊष्मागतिक प्रणाली में कार्य और ऊष्मा के बीच संबंध का महत्व क्या है? इसे गणितीय दृष्टिकोण से समझाइए।

उत्तर:

ऊष्मागतिक प्रणाली में कार्य और ऊष्मा दोनों महत्वपूर्ण ऊर्जा के रूप होते हैं। इन दोनों के बीच का संबंध ऊष्मागतिक प्रणाली की आंतरिक ऊर्जा के परिवर्तन को परिभाषित करता है। इसे निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है:

ΔU = q + w

जहाँ, ΔU आंतरिक ऊर्जा में परिवर्तन है, q तंत्र में प्रविष्ट ऊष्मा है, और w तंत्र द्वारा किया गया कार्य है।

महत्व:

कार्य और ऊष्मा का संचय: यह समीकरण दर्शाता है कि तंत्र की कुल ऊर्जा का परिवर्तन ऊष्मा और कार्य दोनों के योग से निर्धारित होता है।

ऊष्मा और कार्य का संरक्षण: इस समीकरण के माध्यम से हम यह भी समझ सकते हैं कि ऊष्मा और कार्य दोनों ऊर्जाएं हैं जिन्हें एक दूसरे में परिवर्तित किया जा सकता है, परंतु ऊर्जा की कुल मात्रा का संरक्षण होता है।

ऊष्मागतिकीय विश्लेषण: यह समीकरण ऊष्मागतिकीय प्रक्रियाओं के विश्लेषण में महत्वपूर्ण होता है, विशेषकर जब हमें यह जानना हो कि किसी प्रक्रिया के दौरान ऊष्मा और कार्य का तंत्र की आंतरिक ऊर्जा पर क्या प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 13: समदाबीय, समतापीय, और रुद्धोष्मीय प्रक्रियाओं में कार्य का गणितीय विश्लेषण कीजिए।

उत्तर:

समदाबीय प्रक्रिया (Isobaric Process):

समदाबीय प्रक्रिया में दाब स्थिर रहता है और कार्य निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है:
w = − pΔV
जहाँ p दाब है और ΔV आयतन में परिवर्तन है।

समतापीय प्रक्रिया (Isothermal Process):

समतापीय प्रक्रिया में तापमान स्थिर रहता है और कार्य को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है:

\(w = − nRT ln \frac{V_f}{V_i}\)

जहाँ n मोलों की संख्या है, R गैस स्थिरांक है, T तापमान है, \(V_f\) अंतिम आयतन है, और \(V_i\) प्रारंभिक आयतन है।

रुद्धोष्मीय प्रक्रिया (Adiabatic Process):

रुद्धोष्मीय प्रक्रिया में कोई ऊष्मा का स्थानांतरण नहीं होता है, और कार्य निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है:

\(w = \frac{C_u(T_i − T_f)}{(1 − γ)}\)

जहाँ \(C_u\) स्थिर आयतन पर ऊष्मा धारिता है, \(T_i\) प्रारंभिक तापमान है, \(T_f\) अंतिम तापमान है, और

γ आदर्श गैस के लिए \(C_p\)/\(C_u\) का अनुपात है।

इन प्रक्रियाओं का गणितीय विश्लेषण विभिन्न ऊष्मागतिकीय प्रक्रियाओं में कार्य का सही अनुमान लगाने के लिए किया जाता है और यह तंत्र की ऊर्जा परिवर्तन को समझने में सहायक होता है।

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