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रसायन विज्ञान Class 11 || Menu
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Rasayan Vigyan Class 11 Chapter 8 रसायन विज्ञान Important Questions

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कार्बनिक रसायन : कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें

प्रश्न 1: कार्बन की चतुष्फलता (Tetravalency) और कार्बनिक यौगिकों के आकार को समझाएं।

उत्तर:

कार्बन की चतुष्फलता का तात्पर्य यह है कि एक कार्बन परमाणु चार अन्य परमाणुओं से संयोजक बंधन बनाकर संयुक्त हो सकता है। यह गुण उसकी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास और संकरण (Hybridization) के कारण होता है।

कार्बन परमाणु की संकरण अवस्था निम्नलिखित हो सकती है:

\(sp^3\) संकरण: इसमें चार σ-बंधन बनते हैं, और यह टेट्राहेड्रल (Tetrahedral) आकार में होते हैं, जैसे कि मीथेन (\(CH_4\))

\(sp^2\)संकरण: इसमें एक π-बंधन और तीन σ-बंधन बनते हैं, और यह त्रिकोणीय समतलीय (Trigonal Planar) आकार में होता है, जैसे कि एथीन(\(C_2H_4\))

sp संकरण: इसमें दो π-बंधन और दो σ-बंधन बनते हैं, और यह रेखीय (Linear) आकार में होता है, जैसे कि एथाइन (\(C_2H_2\))

कार्बन की संकरण स्थिति बंध लंबाई और बंध एंथैल्पी को प्रभावित करती है, जिससे यह विभिन्न रासायनिक और भौतिक गुणों को प्रभावित करता है।

प्रश्न 2: कार्बनिक यौगिकों के वर्गीकरण का वर्णन करें।

उत्तर:

कार्बनिक यौगिकों को उनके ढांचे के आधार पर मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

1. ऐसाइक्लिक या मुक्त श्रृंखला यौगिक (Acyclic or Open Chain Compounds):

ये यौगिक सीधे या शाखित श्रृंखलाओं वाले होते हैं, जैसे कि एथेन (\(C_2H_6\)), प्रोपेन (\(C_3H_8\))

2. चक्रबद्ध या बंद श्रृंखला यौगिक (Cyclic or Closed Chain Compounds):

ये यौगिक एक वलय संरचना में होते हैं, जैसे कि साइक्लोहेक्सेन (\(C_6H_{12}\))और बेंजीन (\(C_6H_6\))

साथ ही, इन यौगिकों को उनके कार्यात्मक समूह के आधार पर भी वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे कि अल्कोहल (–OH), एल्डीहाइड (–CHO), और कार्बोक्जिलिक एसिड (–COOH) समूह।

प्रश्न 3: संरचनात्मक समावयवता (Structural Isomerism) क्या है? उदाहरण सहित समझाएं।

उत्तर:

संरचनात्मक समावयवता का अर्थ है कि एक ही आणविक सूत्र वाले यौगिकों की संरचना में विभिन्नता होती है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी रासायनिक और भौतिक गुणों में भिन्नता होती है। संरचनात्मक समावयवता के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं:

श्रृंखला समावयवता (Chain Isomerism): जब यौगिकों की कार्बन श्रृंखला अलग-अलग होती है, जैसे कि \(C_5H_{12}\) के लिए पेंटेन और आइसोपेंटेन।

स्थिति समावयवता (Position Isomerism): जब यौगिकों में कार्यात्मक समूह या प्रतिस्थापक की स्थिति बदलती है, जैसे कि \(C_3H_8O\) के लिए प्रोपान-1-ओल और प्रोपान-2-ओल।

कार्यात्मक समूह समावयवता (Functional Group Isomerism): जब यौगिकों में कार्यात्मक समूह अलग होते हैं, जैसे कि \(C_3H_6O\) के लिए प्रोपैनल और प्रोपेनोन।

प्रश्न 4: कार्बन के संकरण (Hybridization) का कार्बनिक अणुओं की संरचना और गुणधर्मों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर:

संकरण (Hybridization) वह प्रक्रिया है जिसमें एक परमाणु के विभिन्न कक्षाओं (orbitals) का मिश्रण होता है, जिससे नए संकरित कक्षाओं का निर्माण होता है। कार्बन के संकरण का अणुओं की संरचना और गुणधर्मों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है:

1. \(sp^3\)संकरण: यह संकरण एक s और तीन p कक्षाओं का मिश्रण होता है, जिससे चार समान ऊर्जा वाले संकरित कक्षाओं का निर्माण होता है। इसका परिणाम त्रिकोणीय आकार का अणु होता है, जैसे मिथेन (\(CH_4\)) में \(sp^3\) संकरण वाले बंध अपेक्षाकृत लंबे और कमजोर होते हैं।

2. \(sp^2\) संकरण: इसमें एक s और दो p कक्षाओं का संकरण होता है, जिससे त्रिकोणीय समतलीय (trigonal planar) संरचना बनती है, जैसे एथिलीन (\(C_2H_4\)) में \(sp^2\) संकरण से बने बंध \(sp^3\) से छोटे और मजबूत होते हैं।

3. sp संकरण: यह एक s और एक p कक्षाओं के संकरण से बनता है, जिससे रेखीय संरचना (linear structure) उत्पन्न होती है, जैसे एथाइन (\(C_2H_2\)) में। sp संकरण वाले बंध सबसे छोटे और सबसे मजबूत होते हैं।

संकरण का अणुओं की संरचना पर प्रभाव न केवल बंध की लंबाई और शक्ति को प्रभावित करता है, बल्कि यह अणुओं की विद्युतीय गुणधर्मों (electronegativity) और प्रतिक्रिया क्षमता (reactivity) को भी प्रभावित करता है।

प्रश्न 5: कार्बनिक अणुओं में नाभिक-प्रेमी (Nucleophile) और विद्युत-प्रेमी (Electrophile) क्या होते हैं? इनके बीच के अंतर को समझाएं।

उत्तर:

कार्बनिक रसायन में नाभिक-प्रेमी (Nucleophile) और विद्युत-प्रेमी (Electrophile) वे कण होते हैं जो कार्बनिक प्रतिक्रियाओं में भाग लेते हैं:

नाभिक-प्रेमी (Nucleophile): यह एक ऐसा कण होता है जिसमें इलेक्ट्रॉनों की अधिकता होती है, अर्थात यह इलेक्ट्रॉनों का दान कर सकता है। यह उन स्थलों पर प्रतिक्रिया करता है जहाँ इलेक्ट्रॉनों की कमी होती है।

उदाहरण: हाइड्रॉक्साइड आयन (\(OH^-\)), साइनाइड आयन (\(CN^-\)), आदि।

विद्युत-प्रेमी (Electrophile): यह एक ऐसा कण होता है जिसमें इलेक्ट्रॉनों की कमी होती है, अर्थात यह इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करने की क्षमता रखता है। यह उन स्थलों पर प्रतिक्रिया करता है जहाँ इलेक्ट्रॉनों की अधिकता होती है।

उदाहरण: कार्बोकैटायन (\(C^+H_3\)), कार्बोनिल यौगिक (>C=O),आदि।

नाभिक-प्रेमी और विद्युत-प्रेमी के बीच का मुख्य अंतर यह है कि नाभिक-प्रेमी इलेक्ट्रॉनों का दान करते हैं, जबकि विद्युत-प्रेमी इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण करते हैं। दोनों कार्बनिक प्रतिक्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण हैं और उनके मध्य प्रतिक्रिया से अणु की संरचना में परिवर्तन होता है।

प्रश्न 6: कार्बनिक यौगिकों में ‘संवेग प्रभाव’ (Inductive Effect) क्या है? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।

उत्तर:

संवेग प्रभाव (Inductive Effect) वह प्रभाव है जिसमें एक सहसंयोजक बंध (Covalent Bond) में एक परमाणु की इलेक्ट्रोनविग्रहण क्षमता (Electronegativity) के कारण इलेक्ट्रॉन घनत्व दूसरे परमाणु की ओर खिंचता है। इस प्रभाव का स्थानांतरित इलेक्ट्रॉनों की दिशा पर पड़ने वाला प्रभाव आसपास के बंधों पर भी पड़ता है।

ऋणात्मक संवेग प्रभाव (Negative Inductive Effect, -I): इसमें वह समूह जो इलेक्ट्रॉन घनत्व को अपनी ओर खींचता है, जैसे कि \(-NO_2, -CN, -COOH,\) आदि। यह प्रभाव बंध की विद्युत ऋणात्मकता को बढ़ाता है।

धनात्मक संवेग प्रभाव (Positive Inductive Effect, +I): इसमें वह समूह जो इलेक्ट्रॉन घनत्व को छोड़ता है, जैसे कि \(-CH_3, -C_2H_5,\) आदि। यह प्रभाव बंध की विद्युत ऋणात्मकता को कम करता है।

संवेग प्रभाव बंधों की ध्रुवीयता (polarity) और यौगिकों की रासायनिक प्रतिक्रिया (chemical reactivity) को प्रभावित करता है। इस प्रभाव का संचरण संबंधित बंधों के माध्यम से होता है, लेकिन इसकी तीव्रता दूरी के साथ घटती जाती है।

प्रश्न 7: कार्बनिक यौगिकों में इलेक्ट्रॉन विस्थापन प्रभाव (Electron Displacement Effects) क्या होते हैं? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।

उत्तर:

कार्बनिक यौगिकों में इलेक्ट्रॉन विस्थापन प्रभाव वे प्रभाव होते हैं जो अणुओं के इलेक्ट्रॉन घनत्व में स्थायी या अस्थायी परिवर्तन के कारण उत्पन्न होते हैं। मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं:

संवेग प्रभाव (Inductive Effect): यह स्थायी इलेक्ट्रॉन विस्थापन प्रभाव है, जिसमें एक ध्रुवीय बंध के कारण इलेक्ट्रॉन घनत्व का विस्थापन होता है। यह प्रभाव बंधों के माध्यम से संचरित होता है लेकिन दूरी के साथ कमजोर हो जाता है।

अनुनाद प्रभाव (Resonance Effect): यह प्रभाव तब उत्पन्न होता है जब π-बंध या अकेले इलेक्ट्रॉन युग्म एक दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते हैं। इसका परिणाम इलेक्ट्रॉन घनत्व के वितरण में होता है, जो अणु के रासायनिक गुणधर्मों को प्रभावित करता है। उदाहरण: बेंजीन में अनुनाद संरचनाएँ।

विद्युतप्रभाव (Electromeric Effect): यह अस्थायी इलेक्ट्रॉन विस्थापन प्रभाव है, जो केवल अणु पर किसी हमलावर अभिकर्मक के आक्रमण के दौरान उत्पन्न होता है। इसमें π-बंध के इलेक्ट्रॉनों का पूर्ण रूप से स्थानांतरण शामिल होता है।

हाइपरसंयुग्मन प्रभाव (Hyperconjugation): यह प्रभाव σ-बंध के इलेक्ट्रॉनों का π-सिस्टम या रिक्त p-कक्षाओं के साथ संयुग्मन के कारण उत्पन्न होता है। यह स्थायी प्रभाव है और विशेष रूप से कार्बोकैटायन और असंतृप्त प्रणालियों में स्थिरता प्रदान करता है।

प्रश्न 8: कार्बनिक अणुओं में ‘अनुनाद संरचना’ (Resonance Structures) क्या होती है? इसके सिद्धांत की व्याख्या करें।

उत्तर:

अनुनाद संरचना (Resonance Structures) वह अवधारणा है जिसमें एक अणु की वास्तविक संरचना को एक ही अणुसूत्र वाले कई संभावित संरचनाओं के रूप में दिखाया जाता है, जिनमें इलेक्ट्रॉनों का वितरण विभिन्न होता है। यह संरचनाएँ वास्तविक अणु का सटीक प्रतिनिधित्व नहीं करतीं, बल्कि यह विभिन्न संभावित इलेक्ट्रॉनिक विन्यासों का सम्मिलन होती हैं। उदाहरण के लिए:

बेंजीन (\(C_6H_6\)): बेंजीन की अनुनाद संरचनाएँ यह दिखाती हैं कि इसके सभी C-C बंध समान लंबाई के होते हैं, और यह लंबाई एकल और द्विबंधों की औसत होती है।

कार्बोक्सिलेट आयन (COO⁻): इस आयन की दो अनुनाद संरचनाएँ होती हैं, जिनमें ऑक्सीजन परमाणुओं के बीच ऋणात्मक चार्ज का वितरण होता है।

अनुनाद संरचनाओं की स्थिरता का सिद्धांत यह है कि वास्तविक अणु की ऊर्जा सबसे स्थिर संरचना की ऊर्जा से कम होती है। इस ऊर्जा में कमी को अनुनाद ऊर्जा कहते हैं। अनुनाद संरचनाएँ अणु की स्थिरता और रासायनिक गुणधर्मों को समझाने में सहायक होती हैं।

प्रश्न 9: कार्बनिक यौगिकों में ध्रुवीय और गैर-ध्रुवीय बंधों की प्रकृति की व्याख्या करें।

उत्तर:

कार्बनिक यौगिकों में बंधों की ध्रुवीयता इलेक्ट्रोनविग्रहण क्षमता के अंतर पर निर्भर करती है। बंधों की प्रकृति निम्नलिखित प्रकार की हो सकती है:

ध्रुवीय बंध (Polar Bonds): जब दो अलग-अलग परमाणुओं के बीच एक सहसंयोजक बंध बनता है, और उनके बीच इलेक्ट्रोनविग्रहण क्षमता में अंतर होता है, तो बंध ध्रुवीय बन जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि इलेक्ट्रॉन घनत्व अधिक विद्युत ऋणात्मक परमाणु की ओर खिंचता है, जिससे आंशिक रूप से धनात्मक और ऋणात्मक चार्ज उत्पन्न होते हैं। उदाहरण: H − Cl बंध में Cl पर ऋणात्मक और H पर धनात्मक चार्ज होता है।

गैर-ध्रुवीय बंध (Non-Polar Bonds): जब दो समान परमाणु आपस में बंध बनाते हैं, तो उनकी इलेक्ट्रोनविग्रहण क्षमता समान होती है, और इलेक्ट्रॉनों का वितरण समान रूप से होता है। इस प्रकार के बंध ध्रुवीय नहीं होते। उदाहरण: H − H बंध में कोई ध्रुवीयता नहीं होती।

ध्रुवीय और गैर-ध्रुवीय बंध अणुओं के रासायनिक और भौतिक गुणों को प्रभावित करते हैं, जैसे कि विलयनता, बंध लंबाई, बंध बल, और प्रतिक्रिया क्षमता।

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