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Revision Notes for Class 11 Hindi “Aroh” Chapter 12 Meera ke pad

पाठ का सारांश

पहले पद में मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी अनन्यता व्यक्त की है तथा व्यर्थ के कार्यों में व्यस्त लोगों के प्रति दुख प्रकट किया है। वे कहती हैं कि मोर मुकुटधारी गिरिधर कृष्ण ही उसके स्वामी हैं। कृष्ण-भक्ति में उसने अपने कुल की मर्यादा भी भुला दी है। संतों के पास बैठकर उसने लोकलाज खो दी है। आँसुओं से सींचकर उसने कृष्ण प्रेम रूपी बेल बोयी है। अब इसमें आनंद के फल लगने लगे हैं। उसने दही से घी निकालकर छाछ छोड़ दिया। संसार की लोलुपता देखकर मीरा रो पड़ती हैं और कृष्ण से अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।
दूसरे पद में प्रेम रस में डूबी हुई मीरा सभी रीति-रिवाजों और बंधनों से मुक्त होने और गिरिधर के स्नेह के कारण अमर होने की बात कर रही हैं।
मीरा पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के सामने नाचती हैं। लोग इस हरकत पर उन्हें बावली कहते हैं तथा कुल के लोग कुलनाशिनी कहते हैं। राणा ने उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा जिसे उन्होंने हँसते हुए पी लिया। मीरा कहती हैं कि उसके प्रभु कृष्ण सहज भक्ति से भक्तों को मिल जाते हैं।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. मरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरों न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बेठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम-बलि बोयी

अब त बेलि फॅलि गायी, आणद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही (पृष्ठ-137)

शब्दार्थ-

गिरधर-पर्वत को धारण करने वाला यानी कृष्ण। गोपाल-गाएँ पालने वाला, कृष्ण। मोर मुकुट-मोर के पंखों का बना मुकुट। सोई-वही। जा के-जिसके। छाँड़ि दयी-छोड़ दी। कुल की कानि-परिवार की मर्यादा। करिहै-करेगा। कहा-क्या। ढिग-पास। लोक-लाज-समाज की मर्यादा। असुवन-आँसू। सींचि-सींचकर। मथनियाँ-मथानी। विलायी-मथी। दधि-दही। घृत-घी। काढ़ि लियो-निकाल लिया। डारि दयी-डाल दी। जगत-संसार। तारो-उद्धार। छोयी-छाछ, सारहीन अंश। मोहि-मुझे।

प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित मीराबाई के पदों से लिया गया है। इस पद में उन्होंने भगवान कृष्ण को पति के रूप में माना है तथा अपने उद्धार की प्रार्थना की है।

व्याख्या-मीराबाई कहती हैं कि मेरे तो गिरधर गोपाल अर्थात् कृष्ण ही सब कुछ हैं। दूसरे से मेरा कोई संबंध नहीं है। जिसके सिर पर मोर का मुकुट है, वही मेरा पति है। उनके लिए मैंने परिवार की मर्यादा भी छोड़ दी है। अब मेरा कोई क्या कर सकता है? अर्थात् मुझे किसी की परवाह नहीं है। मैं संतों के पास बैठकर ज्ञान प्राप्त करती हूँ और इस प्रकार लोक-लाज भी खो दी है। मैंने अपने आँसुओं के जल से सींच-सींचकर प्रेम की बेल बोई है। अब यह बेल फैल गई है और इस पर आनंद रूपी फल लगने लगे हैं। वे कहती हैं कि मैंने कृष्ण के प्रेम रूप दूध को भक्ति रूपी मथानी में बड़े प्रेम से बिलोया है। मैंने दही से सार तत्व अर्थात् घी को निकाल लिया और छाछ रूपी सारहीन अंशों को छोड़ दिया। वे प्रभु के भक्त को देखकर बहुत प्रसन्न होती हैं और संसार के लोगों को मोह-माया में लिप्त देखकर रोती हैं। वे स्वयं को गिरधर की दासी बताती हैं और अपने उद्धार के लिए प्रार्थना करती हैं।

विशेष-

1. मीरा कृष्ण-प्रेम के लिए परिवार व समाज की परवाह नहीं करतीं।
2. मीरा की कृष्ण के प्रति अनन्यता व समर्पण भाव व्यक्त हुआ है।
3. अनुप्रास अलंकार की छटा है।
4. ‘बैठि-बैठि’, ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
5. माधुर्य गुण है।
6. राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा का सुंदर रूप है।
7. ‘मोर-मुकुट’, ‘प्रेम-बेलि’, ‘आणद-फल’ में रूपक अलंकार है।
8. संगीतात्मकता व गेयता है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. मीरा किसको अपना सर्वस्व मानती हैं तथा क्यों?
2. मीरा कृष्ण-प्रेम के विषय में क्या बताती हैं?
3. मीरा के रोने और खुश होने का क्या कारण है?
4. कृष्ण को अपनाने के लिए मीरा ने क्या-क्या खोया?

उत्तर-
1. मीरा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं; क्योंकि उन्होंने कृष्ण बड़े प्रयत्नों से पाया है। वे उन्हें अपना पति मानती हैं।
2. कृष्ण-प्रेम के विषय में मीरा बताती है कि उसने अपने आँसुओं से कृष्ण प्रेम रूपी बेल को सींचा अब वह बेल बड़ी हो गई है और उसमें आनंद-फल लगने लगे हैं।
3. मीरा भक्तों को देखकर प्रसन्न होती हैं तथा संसार के अज्ञान व दुर्दशा को देखकर रोती हैं।
4. कृष्ण को अपनाने के लिए मीरा ने अपने परिवार की मर्यादा व समाज की लाज को खोया है।

2. पग घुँघरू बांधि मीरां नाची,
मैं तो मेरे नारायण सूं, आपहि हो गई साची
लोग कहँ, मीरा भई बावरी, न्यात कहैं कुल-नासी
विस का प्याला राणी भेज्या, पवित मीरा हॉर्सी
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिले अविनासी (पृष्ठ-137)

शब्दार्थ

पग-पैर। नारायण-ईश्वर। आपहि-स्वयं ही। साची-सच्ची। भई-होना। बावरी-पागल। न्यात-परिवार के लोग, बिरादरी। कुल-नासी-कुल का नाश करने वाली। विस-जहर। पीवत-पीती हुई। हाँसी-हँस दी। गिरधर-पर्वत उठाने वाले। नागर-चतुर। अविनासी-अमर।

प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित प्रसिद्ध कृष्णभक्त कवयित्री मीराबाई के पदों से लिया गया है। इस पद में, उन्होंने कृष्ण प्रेम की अनन्यता व सांसारिक तानों का वर्णन किया है।

व्याख्या-मीराबाई कहती हैं कि वह पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के समक्ष नाचने लगी है। इस कार्य से यह बात सच हो गई कि मैं अपने कृष्ण की हूँ। उसके इस आचरण के कारण लोग उसे पागल कहते हैं। परिवार और बिरादरी वाले कहते हैं कि वह कुल का नाश करने वाली है। मीरा विवाहिता है। उसका यह कार्य कुल की मान-मर्यादा के विरुद्ध है। कृष्ण के प्रति उसके प्रेम के कारण राणा ने उसे मारने के लिए विष का प्याला भेजा। उस प्याले को मीरा ने हँसते हुए पी लिया। मीरा कहती हैं कि उसका प्रभु गिरधर बहुत चतुर है। मुझे सहज ही उसके दर्शन सुलभ हो गए हैं।

विशेष-

कृष्ण के प्रति मीरा का अटूट प्रेम व्यक्त हुआ है।
मीरा पर हुए अत्याचारों का आभास होता है।
अनुप्रास अलंकार की छटा है।
संगीतात्मकता है।
राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
भक्ति रस की अभिव्यक्ति हुई है।
‘बावरी’ शब्द से बिंब उभरता है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. मीरा कृष्ण-भक्ति में क्या करने लगीं?
2. लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?
3. राणा ने मीरा के लिए क्या भेजा तथा क्यों?
4. ‘सहज मिले अविनासी’-आशय स्पष्ट करें।

उत्तर-
1. मीरा कृष्ण-भक्ति में अपने पैरों में धुंघरू बाँधकर कृष्ण के सामने नाचने लगीं। वे कृष्ण प्रेम में खो गई।
2. लोग मीरा को बावरी कहते हैं, क्योंकि वे विवाहिता हैं। इसके बावजूद वे कृष्ण को अपना पति मानती हैं। वे लोक-लाज को छोड़ कर मंदिर में कृष्णमूर्ति के
सामने नाचने लगीं। तत्कालीन समाज के लिए यह कार्य मर्यादा-विरुद्ध था।
3. राणा ने मीरा के कृष्ण प्रेम को देखते हुए उन्हें मारने के लिए विष का प्याला भेजा। वह अपने परिवार का अपमान नहीं करवाना चाहता था। मीरा ने उस प्याले को पी लिया।
4. इसका अर्थ है कि जो कृष्ण से सच्चा प्रेम करता है, उसे भगवान सहजता से मिल जाते हैं।

● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न

1. मंरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोई
जा के सिर मोर-मुकुट, मरो पति सोई
छाँड़ि दयी कुल की कानि, कहा करिहैं कोई?
संतन द्विग बैठि-बैठि, लोक-लाज खोयी
असुवन जल सींचि-सीचि, प्रेम-बलि बोयी

अब त बलि फैलि गयी, आणद-फल होयी
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलायी
दधि मथि घृत काढ़ि लियों, डारि दयी छोयी
भगत देखि राजी हुयी, जगत देखि रोयी
दासि मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही

प्रश्न
1. भाव-सौदर्य बताइए।
2. शिल्प–सौदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-
1. इस पद में मीरा का कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम व्यक्त हुआ है। वे कुल की मर्यादा को भी छोड़ देती हैं तथा कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं। उन्होंने कृष्ण-प्रेम की बेल को आँसुओं से सींचकर बड़ा किया है और भक्ति रूपी मथानी से सार रूपी घी निकाला है। वे प्रभु से अपने उद्धार की प्रार्थना करती हैं और उससे विरह की पीड़ा सहती हैं।
2. ● राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में सुंदर अभिव्यक्ति है।
● भक्ति रस है।
● ‘दूध की मथनियाँ . छोयी’ में अन्योक्ति अलंकार है।
● ‘प्रेम-बेलि’, ‘आणद-फल’ में रूपक अलंकार है।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है-

– गिरधर गोपाल
– मोर-मुकुट
– कुल की कानि
– कहा करिहै कोई
– लोक-लाज
– बेलि बोयी

● ‘बैठि-बैठि’, ‘सींचि-सींचि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
● कृष्ण के अनेक नामों से काव्य की सुंदरता बढ़ी है-गिरधर, गोपाल, लाल आदि।
● संगीतात्मकता व गेयता है।

2. पग धुंधरू बाधि मीरा नाची,
मैं तो मेरे नारायण सू, आपहि हो गई साची
लोग कहैं, मीरा भई बावरी, न्यात कहै कुल-नासी
विस का प्याला राणा भंज्या, पीवत मीरा हँसी
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, सहज मिल अविनासी

प्रश्न
1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. शिल्प–सौदर्य बताइए।

उत्तर-
1. इस पद में मीरा की आनंदावस्था का प्रभावी वर्णन हुआ है। वे धुंघरू बाँधकर नाचती हैं तथा प्रिय कृष्ण को रिझाती हैं। उन्हें लोकनिंदा की परवाह नहीं है।
राणा का विष का प्याला भी उन्हें मार नहीं पाता है। वे अपनी सहज भक्ति से अपने प्रिय को पाती हैं।
2. ● राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
● संगीतात्मकता व गेयता है।
● अनुप्रास अलंकार है-कहै कुल।
● भक्ति रस की अभिव्यक्ति हुई है।
● नृत्य करने का बिंब प्रत्यक्ष हो उठता है।
● कृष्ण के कई नामों का प्रयोग किया है-नारायण, अविनासी, गिरधर, नागर।

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