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Revision Notes for Class 11 Hindi “Aroh” Chapter 16 Champa Kale Kale

पाठ का सारांश

‘चपा काल-काल अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता धरती संग्रह में संकलित है। यह पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त करती है। इसमें ‘अक्षरों’ के लिए ‘काले-काले’ विशेषण का प्रयोग किया गया है जो एक ओर शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोधों को उजागर करता है तो दूसरी ओर उस दारुण यथार्थ से भी हमारा परिचय कराता है जहाँ आर्थिक मजबूरियों के चलते घर टूटते हैं। काव्य नायिका चंपा अनजाने ही उस शोषक व्यवस्था के प्रतिपक्ष में खड़ी हो जाती है जहाँ भविष्य को लेकर उसके मन में अनजान खतरा है। वह कहती है ‘कलकत्ते पर बजर गिरे।” कलकत्ते पर वज़ गिरने की कामना, जीवन के खुरदरे यथार्थ के प्रति चंपा के संघर्ष और जीवन को प्रकट करती है।

काव्य की नायिका चंपा अक्षरों को नहीं पहचानती। जब वह पढ़ता है तो चुपचाप पास खड़ी होकर आश्चर्य से सुनती है। वह सुंदर ग्वाले की एक लड़की है तथा गाएँ-भैसें चराने का काम करती है। वह अच्छी व चंचल है। कभी वह कवि की कलम चुरा लेती है तो कभी कागज। इससे कवि परेशान हो जाता है। चंपा कहती है कि दिन भर कागज लिखते रहते हो। क्या यह काम अच्छा है? कवि हँस देता है। एक दिन कवि ने चंपा से पढ़ने-लिखने के लिए कहा। उन्होंने इसे गाँधी बाबा की इच्छा बताया। चंपा ने कहा कि वह नहीं पढ़ेगी।

गाँधी जी को बहुत अच्छे बताते हो, फिर वे पढ़ाई की बात कैसे कहेंगे? कवि ने कहा कि पढ़ना अच्छा है। शादी के बाद तुम ससुराल जाओगी। तुम्हारा पति कलकत्ता काम के लिए जाएगा। अगर तुम नहीं पढ़ी तो उसके पत्र कैसे पढ़ोगी या अपना संदेशा कैसे दोगी? इस पर चंपा ने कहा कि तुम पढ़े-लिखे झूठे हो। वह शादी नहीं करेगी। यदि शादी करेगी तो अपने पति को कभी कलकत्ता नहीं जाने देगी। कलकत्ता पर भारी विपत्ति आ जाए, ऐसी कामना वह करती है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. चंपा काल-काल अच्छर नहीं चन्हती
में जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है

उसे बड़ा अचरज होता हैं:
इन काले चीन्हीं से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं।

शब्दार्थ
अच्छर-अक्षर। चीन्हती-पहचानती। अचरज-हैरानी। चीन्हों-अक्षरों।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि चंपा नामक लड़की की निरक्षरता के बारे में बताते हुए कहता है कि चंपा काले-काले अक्षरों को नहीं पहचानती। उसे अक्षर ज्ञान नहीं है। जब कवि पढ़ने लगता है तो वह वहाँ आ जाती है। वह उसके द्वारा बोले गए अक्षरों को चुपचाप खड़ी-खड़ी सुना करती है। उसे इस बात की बड़ी हैरानी होती है कि इन काले अक्षरों से ये सभी ध्वनियाँ कैसे निकलती हैं? वह अक्षरों के अर्थ से हैरान होती है।

विशेष–
1. निरक्षर व्यक्ति की हैरानी का बिंब सुंदर है।
2. ‘काले काले’, ‘खड़ी खड़ी’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
3. ग्राम्य-भाषा का सुंदर प्रयोग है।
4. सरल व सुबोध खड़ी बोली है।
5. मुक्त छंद होते हुए भी लय है।
6. अनुप्रास अलंकार है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. चंपा कौन है? उसे किस चीज का ज्ञान नहीं है?
2. चंपा चुपचाप क्या करती है?
3. चंपा की हैरानी का कारण बताइए।
4. आप चांपा को किसका/किनका प्रतीक मान सकते हैं? यहाँ कवि ने किस सामाजिक समस्या की ओर हमारा ध्यान खींचा है?

उत्तर –
1. चंपा गाँव की अनपढ़ बालिका है। उसे अक्षर ज्ञान नहीं है।
2. जब कवि पढ़ने लगता है तब वह वहाँ आकर चुपचाप खड़ी-खड़ी सुनती रहती है।
3. चंपा कवि द्वारा बोले गए अक्षरों को सुनती है। उसे आश्चर्य होता है इन काले अक्षरों से कवि ध्वनियाँ कैसे बोल लेता है। वह ध्वनियों व अक्षरों के संबंध को नहीं समझ पाती।
4. चंपा गाँव की उन निरक्षर लड़कियों की प्रतीक है जिन्हें पढ़ने-लिखने का अवसर नहीं मिल पाता है। चंपा के माध्यम से कवि ने समाज में फैली निरक्षरता की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।

2. चंपा सुंदर की लड़की है
सुंदर ग्वाला है: गाएँ-भैंसे रखता है
चंपा चौपायों को लकर
चरवाही करने जाती है
चंपा अच्छी हैं
चंचल हैं

नटखट भी है
कभी-कभी ऊधम करती हैं
कभी-कभी वह कलम चुरा देती है
जैसे तैसे उसे ढूँढ़ कर जब लाता हूँ
पाता हूँ-अब कागज गायब
परेशान फिर हो जाता हूँ

शब्दार्थ-
ग्वाला-गाय चराने वाला। चौपाया-चार पैरों वाले पशु यानी गाय, भैंस, आदि। चरवाही-पशु चराने का काम। चंचल-चुलबुला। नटखट-शरारती। ऊधम-तंग करने वाली हरकतें। गायब-गुम हो जाना।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि चंपा के विषय में बताता है कि वह सुंदर नामक ग्वाले की लड़की है। वह गाएँ-भैंसें रखता है। चंपा उन सभी पशुओं को प्रतिदिन चराने के लिए लेकर जाती है। वह बहुत अच्छी है तथा चंचल है। वह शरारतें भी करती है। कभी वह कवि की कलम चुरा लेती है। कवि किसी तरह उस कलम को ढूँढ़कर लाता है तो उसे पता चलता है कि अब कागज गायब हो गया है। कवि इन शरारतों से परेशान हो जाता है।

विशेष-
1. चंपा के परिवार व उसकी शरारतों के बारे में बताया गया है।
2. ग्रामीण जीवन का चित्रण है।
3. सहज व सरल खड़ी बोली है।
4. मुक्त छंद है।
5. ‘कभी-कभी’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
6. अनुप्रास अलंकार है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. चंपा के पिता के विषय में बताइए।
2. चंपा क्या करने जाती है?
3. चंपा का व्यवहार कैसा है?
4. कवि की परेशानी का क्या कारण है?

उत्तर –
1. चंपा के पिता का नाम सुंदर है। वह ग्वाला है तथा गाएँ-भैंसें रखता है।
2. चंपा प्रतिदिन पशुओं को चराने के लिए लेकर जाती है।
3. चंपा का व्यवहार अच्छा है। वह चंचल है तथा नटखट भी है। कभी-कभी वह बहुत शरारतें करती है।
4. चंपा कवि की कलम चुरा लेती है। किसी तरीके से कवि उसे ढूँढ़कर लाता है तो उसके कागज गायब मिलते हैं। चंपा की इन हरकतों से कवि परेशान होता है।

3. चंपा कहती है:
तुम कागद ही गोदा करते ही दिन भर
क्या यह काम बहुत अच्छा है
यह सुनकर मैं हँस देता हूँ
फिर चंपा चुप हो जाती है
चंपा ने यह कहा कि
मैं तो नहीं पढूँगी
तुम तो कहते थे गाँधी बाबा अच्छे हैं

उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि
चंपा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़ काम सरेगा
गाँधी बाबा की इच्छा है
सब जन पढ़ना-लिखना सीखें
वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढूँगी

शब्दार्थ
कागद-कागज। गोदना-लिखते रहना। हारे गाढ़े काम सरेगा-कठिनाई में काम आएगा। जन-आंदमी।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि चंपा को काले अक्षरों से कोई संबंध नहीं है। वह कवि से पूछती है कि तुम दिन-भर कागज पर लिखते रहते हो। क्या यह काम तुम्हें बहुत अच्छा लगता है। उसकी नजर में लिखने के काम की कोई महत्ता नहीं है। उसकी बात सुनकर कवि हँसने लगता है और चंपा चुप हो जाती है। एक दिन चंपा आई तो कवि ने उससे कहा कि तुम्हें भी पढ़ना सीखना चाहिए। मुसीबत के समय तुम्हारे काम आएगा। वह महात्मा गाँधी की इच्छा को भी बताता है। गाँधी जी की इच्छा थी कि सभी आदमी पढ़ना-लिखना सीखें। चंपा कवि की बात का उत्तर देती है कि वह नहीं पढ़ेगी। आगे कहती है कि तुम तो कहते थे कि गाँधी जी बहुत अच्छे हैं। फिर वे पढ़ाई की बात क्यों करते हैं? चंपा महात्मा गाँधी की अच्छाई या बुराई का मापदंड पढ़ने की सीख से लेती है। वह न पढ़ने का निश्चय दोहराती है।

विशेष–

1. निरक्षर व्यक्ति की मनोदशा का सुंदर चित्रण है।
2. शिक्षा के प्रति समाज का उपेक्षा भाव स्पष्ट है।
3. संवाद शैली है।
4. ग्रामीण जीवन का सटीक वर्णन है।
5. देशज शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
6. अनुप्रास अलंकार है।
7. मुक्त छंद है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

चंपा कवि से क्या प्रश्न करती है?
2. कवि ने चंपा को क्या सीख दी तथा क्यों?
3. कवि ने गाँधी का नाम क्यों लिया?
4. चंपा कवि से गाँधी जी के बारे में क्या तर्क देती है?

उत्तर –
1. चंपा कवि से प्रश्न करती है कि वह दिनभर कागज को काला करते हैं। क्या उन्हें यह कार्य बहुत अच्छा लगता है।
2. कवि चंपा को पढ़ने-लिखने की सीख देता है ताकि कष्ट के समय उसे कोई परेशानी न हो।
3. कवि का मानना है कि ग्रामीण भी गाँधी जी का बहुत सम्मान करते हैं तथा उनकी बात मानते हैं। उन्हें लगा कि शिक्षा के बारे में गाँधी जी की इच्छा जानने के बाद चंपा पढ़ना सीखेगी।
4. चंपा कवि से कहती है कि अगर गाँधी जी अच्छे हैं तो वे कभी पढ़ने-लिखने के लिए नहीं कहेंगे।

4. मैंने कहा कि चंपा, पढ़ लेना अच्छा है
ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी,
कुछ दिन बालम सग साथ रह चंपा जाएगा जब कलकत्ता
बड़ी दूर हैं वह कलकत्ता

केस उसे संदेसा दोगी
कैसे उसके पत्र पढ़ोगी।
चंपा पढ़ लेना अच्छा है।

शब्दार्थ–
ब्याह-शादी। गौने जाना-ससुराल जाना। बालम-पति। संग-साथ। संदेसा-संदेश।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि चंपा को पढ़ने की सलाह देता है तो वह स्पष्ट तौर पर मना कर देती है। कवि शिक्षा के लाभ गिनाता है। वह उसे कहता है कि तुम्हारे लिए पढ़ाई-लिखाई जरूरी है। एक दिन तुम्हारी शादी भी होगी और तुम अपने पति के साथ ससुराल जाओगी। वहाँ तुम्हारा पति कुछ दिन साथ रहकर नौकरी के लिए कलकत्ता चला जाएगा। कलकत्ता यहाँ से बहुत दूर है। ऐसे में तुम उसे अपने विषय में कैसे बताओगी? तुम उसके पत्रों को किस प्रकार पढ़ पाओगी? इसलिए तुम्हें पढ़ना चाहिए।

विशेष-
1. शिक्षा के महत्व को सहज तरीके से समझाया गया है।
2. गाँवों से महानगरों की तरफ पलायनवादी प्रवृत्ति को बताया गया है।
3. ग्रामीण जीवन का चित्रण है।
4. संवाद शैली है।
5. अनुप्रास अलंकार है।
6. खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
7. मुक्त छंद है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. कवि ने चंपा को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हुए क्या तर्क दिया?
2. कलकत्ता जाने की बात से कथा पता चलता है?
3. बड़ी दूर है वह कलकत्ता, फिर भी लोग कलकत्ता क्यों जाते हैं?
4. कवि ने नारी मनोविज्ञान का सहारा लिया है-स्पष्ट करें।

उत्तर –

1. कवि ने चंपा को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हुए तर्क दिया है कि शादी के बाद जब तुम्हारा पति कलकत्ता काम के लिए जाएगा तो तुम उसके पास कैसे अपना संदेश भेजोगी तथा कैसे उसके पत्र पढ़ोगी? इसलिए तुम्हें पढ़ना चाहिए।
2. कलकत्ता जाने की बात से पता चलता है कि महानगरों की तरफ ग्रामीणों की पलावनवादी प्रवृत्ति है। इससे परिवार बिखर जाते हैं।
3. कलकत्ता बहुत दूर तो है, किंतु महानगर है जहाँ रोजगार के अनेक साधन उपलब्ध हैं। वहाँ रोजी-रोटी के साधन सुलभ हैं। रोजगार पाने की आशा में ही लोग कलकत्ता जाते होंगे।
4. कवि ने नारी मनोविज्ञान का सहारा लिया है, क्योंकि नारी को सर्वाधिक खुशी अपने पति के नाम व उसके संदेश से मिलती है।

5. चंपा बोली; तुम कितने झूठे हो, देखा,
हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो
में तो ब्याह कभी न करूंगी
और कहीं जो ब्याह हो गया

तो मैं अपने बालम को सँग साथ रखूँगी
कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी
कलकत्ते पर बजर गिरे।

शब्दार्थ–
बजर गिरे-वज़ गिरे, भारी विपत्ति आए।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काल-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि द्वारा चंपा को पढ़ने की सलाह पर वह उखड़ जाती है। वह कहती है कि तुम बहुत झूठ बोलते हो। तुम पढ़-लिखकर भी झूठ बोलते हो। जहाँ तक शादी की बात है, तो मैं शादी ही कभी नहीं करूंगी। दूसरे, यदि कहीं शादी भी हो गई तो मैं पति को अपने साथ रखेंगी। उसे कभी कलकत्ता नहीं जाने दूँगी। दूसरे शब्दों में, वह अपने पति का शोषण नहीं होने देगी। परिवारों को दूर करने वाले शहर कलकत्ते पर वज़ गिरे। वह अपने पति को उससे दूर रखेगी।

विशेष–
1. चंपा की दृष्टि में शिक्षित समाज शोषक है।
2. चंपा का भोलापन प्रकट हुआ है।
3. ग्रामीण परिवेश का सजीव चित्रण हुआ है।
4. मुक्त छद है।
5. खड़ी बोली है।
6. ‘बजर गिरे’ से शोषक वर्ग के प्रति आक्रोश जताया गया है।
7. संवाद शैली है।
8. अनुप्रास अलंकार है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. चंपा कवि पर क्या आरोप लगाती है तथा क्यों?
2. चंपा की अपने पति के बारे में क्या कल्पना है?
3. चंपा कलकत्ते के बारे में क्या कहती है?
4. शिक्षा के प्रति चंपा की क्या सोच है? उसकी यह सोच कितनी उपयुक्त है?

उत्तर –
1. चंपा कवि पर झूठ बोलने का आरोप लगाती है कि कवि पढ़ाई के चक्कर में उसकी शादी व फिर पति के कलकत्ता जाने की झूठी बात कहता है।
2. चंपा अपने पति के बारे में कल्पना करती है कि वह उसे अपने साथ रखेगी तथा कलकत्ता नहीं जाने देगी अर्थात् उसका शोषण नहीं होने देगी।
3. चंपा कलकत्ते के बारे में कहती है कि उस पर वज़पात हो जाए ताकि वह नष्ट हो जाए। इससे आसपास के लोग वहाँ जा नहीं सकेंगे।
4. शिक्षा के प्रति चंपा की सोच यह है कि इससे परिवार में बिखराव होता है, लोगों का शोषण होता है। उसकी यह सोच बिल्कुल गलत है, क्योंकि शिक्षा ज्ञान एवं विकास के नए द्वार खोलती है।

काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न

1. चंपा काल-काल अच्छर नहीं चन्हती
में जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है

उसे बड़ा अचरज होता हैं:
इन काले चीन्हीं से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं।

प्रश्न
1. इस काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. इस काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर –
1. कवि ने निरक्षर चंपा की हैरानी को स्वाभाविक तरीके से बताया है। वह कहता है कि अक्षरों व उनसे निकलने वाली ध्वनियों से चंपा आश्चर्यचकित होती है।
ग्राम्य शब्दों अच्छर, चीन्हती, चीन्हों, अचरज से ग्रामीण वातावरण का बिंब साकार हो उठता है।
2. ‘काले काले’, ‘खड़ी खड़ी’ में पुनरुक्तिप्रकाश अंलकार है।
‘सब स्वर’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रसाद गुण है।
मुक्त छद है।
उर्दू देशज शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
भाषा में सहजता व सरलता है।

2. उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि
चंपा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़ काम सरेगा
गाँधी बाबा की इच्छा है
सब जन पढ़ना-लिखना सीखें

चंपा ने यह कहा कि
मैं तो नहीं पढूँगी
तुम तो कहते थे गाँधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढूँगी

प्रश्न
1. इस काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
2. इस काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर –
1. इस काव्यांश में कवि चंपा को पढ़ने की सलाह देता है। वह गाँधी जी की भी यही इच्छा बताता है, परंतु चंपा स्पष्ट रूप से पढ़ने से इनकार कर देती है। उसे 2. शिक्षित युवकों का परदेश में नौकरी करना तनिक भी पसंद नहीं है।
3. संवादों के कारण कविता सजीव बन गई है।
4. देशज शब्दों के प्रयोग से ग्रामीण जीवन साकार हो उठता है; जैसे हारे गाढ़े सरेगा आदि।
5. गाँधी बाबा की इच्छा का अच्छा चित्रण है।
6. खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
7. मुक्त छंद होते हुए भी गतिशीलता है।
8. शांत रस है।
9. प्रसाद गुण है।

3. चंपा बोली; तुम कितने झूठे हो, देखा,
हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो
में तो ब्याह कभी न करूंगी
और कहीं जो ब्याह हो गया

तो मैं अपने बालम को सँग साथ रखूँगी
कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी
कलकत्ते पर बजर गिरे।

प्रश्न
1. काव्यांश की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
2. काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर –
1. त्रिलोचन ने ग्रामीण ठाठ को सहजता से प्रकट किया है। ब्याह, बालम, संग, बजर आदि शब्दों से अांचलिकता का पुट मिलता है। खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
2. संवाद शैली का प्रयोग है।
3. मुक्त छंद होते हुए भी काव्य में प्रवाह है।
4. ‘कलकत्ते पर बजर गिरे’ कटु यथार्थ का परिचायक है।
5. ‘हाय राम’ कहने में नाटकीयता आई है।
6. ‘संग साथ’ में अनुप्रास अलंकार है।

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