भारत में उपभोग मापने के दो तरीकों में अंतर
हालिया आँकड़े बताते हैं कि भारत में घरेलू उपभोग को मापने के दो प्रमुख तरीकों – प्राइवेट फाइनल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर (PFCE) और हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे (HCES) – के बीच का अंतर लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2022-23 में दोनों के अनुमान लगभग 45% तक अलग थे। यह अंतर आर्थिक विश्लेषण और नीतिगत निर्णय लेने में बड़ी चुनौती पैदा करता है, क्योंकि उपभोग, गरीबी और कल्याण को सही तरह से मापना ज़रूरी है।
PFCE और HCES के बारे में
PFCE एक व्यापक आर्थिक आँकड़ा है, जो यह अनुमान लगाता है कि परिवारों और परिवारों की सेवा करने वाले गैर-लाभकारी संगठनों द्वारा कुल कितने वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग किया गया। इसे कमोडिटी फ्लो मेथड से निकाला जाता है, जिसमें उत्पादन, व्यापार, कीमतों और प्रशासनिक स्रोतों के आँकड़े शामिल होते हैं। इसमें वे वस्तुएँ और सेवाएँ भी गिनी जाती हैं जो मुफ्त या रियायती दरों पर मिलती हैं, जैसे सरकारी स्वास्थ्य सेवाएँ या NGO की सहायता।
HCES इसके विपरीत एक सर्वेक्षण है, जिसमें परिवार खुद अपने खर्च का विवरण बताते हैं। यह केवल उन खर्चों को दर्ज करता है जो जेब से किए गए हों। गरीबी, असमानता और खाद्य सुरक्षा का आकलन करने में यह अहम होता है, लेकिन इसमें मुफ्त या रियायती सुविधाओं को अक्सर शामिल नहीं किया जाता और कुछ खर्च कम दर्ज हो जाते हैं।
उपभोग में अंतर के कारण
1. पद्धतिगत अंतर – PFCE सभी वस्तुओं और सेवाओं (मुफ्त वाली भी) को जोड़ता है, जबकि HCES केवल भुगतान किए गए खर्चों को गिनता है।
2.कीमतों का फर्क – PFCE में प्रशासनिक स्रोतों से बाजार कीमतें ली जाती हैं, जबकि HCES परिवारों द्वारा बताए गए दामों पर आधारित होता है, जो सटीक न हों।
3.समय अवधि – HCES कृषि वर्ष पर आधारित है, जबकि PFCE वित्तीय वर्ष पर, जिससे आंकड़ों में मेल नहीं बैठता।
1972-73 में यह अंतर केवल 5% था, लेकिन अब लगभग 45% तक पहुँच गया है, जिससे नीति और योजना बनाने में उपभोग आँकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं।
बदलते उपभोग के पैटर्न
HCES के अनुसार, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खाद्य खर्च का हिस्सा घटा है और गैर-खाद्य खर्च बढ़ा है। परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा, किराया और टिकाऊ वस्तुओं पर खर्च बढ़ा है। भोजन में अनाज और दालों का हिस्सा कम हुआ है, जबकि दूध, फल, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और प्रोटीन का हिस्सा बढ़ा है। यह बढ़ती आय और बदलती जीवनशैली का संकेत है, लेकिन इससे सर्वेक्षण में सटीक आँकड़े जुटाना कठिन हो जाता है।
नीतिगत प्रभाव
अगर HCES उपभोग को कम आँकता है, तो गरीबी और अभाव को ज़रूरत से ज़्यादा दिखाया जा सकता है, जिससे योजनाओं का गलत लक्ष्य निर्धारण हो सकता है। वहीं अगर PFCE उपभोग को ज़्यादा आँकता है, तो अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति से अधिक सकारात्मक तस्वीर बन सकती है। सही आँकड़े सार्वजनिक वितरण प्रणाली और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर जैसी योजनाओं के लिए आवश्यक हैं।
अंतर को कम करने के उपाय
- HCES की सैंपलिंग में सुधार करना ज़रूरी है, क्योंकि समृद्ध परिवार अक्सर सर्वे में भाग नहीं लेते।
- HCES को आयकर रिकॉर्ड, डिजिटल भुगतान और खुदरा डेटा से मिलाकर अपूर्ण आँकड़ों को ठीक किया जा सकता है।
- HCES प्रश्नावली को आधुनिक उपभोग जैसे ऐप सेवाएँ, ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल सब्सक्रिप्शन को शामिल करने के लिए अद्यतन करना होगा।
- PFCE में पुराने अनुमान और अनुपातों की समीक्षा कर सुधार करना होगा।
- परिवारों की सेवा करने वाले गैर-लाभकारी संगठनों के नियमित सर्वेक्षण PFCE को और सटीक बना सकते हैं।
- सबसे अहम, एक औपचारिक समन्वय तंत्र बनाना होगा, जो PFCE के व्यापक आँकड़ों और HCES के सूक्ष्म स्तर के आँकड़ों को मिलाकर अधिक विश्वसनीय उपभोग अनुमान तैयार करे।

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