भारत अंटार्कटिका में अपने वैज्ञानिक उपस्थिति का विस्तार करने जा रहा है। इसके लिए सरकार ने मैत्री II नामक एक नए अनुसंधान केंद्र को मंजूरी दी है, जो पूर्वी अंटार्कटिका में स्थापित किया जाएगा। वित्त मंत्रालय ने इस परियोजना के लिए लगभग ₹2,000 करोड़ का बजट स्वीकृत किया है। यह स्टेशन जनवरी 2029 तक चालू होने की उम्मीद है और अंटार्कटिका में भारत का चौथा अनुसंधान केंद्र होगा। इस परियोजना का नेतृत्व पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) के अधीन राष्ट्रीय ध्रुवीय और समुद्री अनुसंधान केंद्र (NCPOR) द्वारा किया जाएगा।
पृष्ठभूमि और मौजूदा भारतीय अंटार्कटिक केंद्र
भारत का अंटार्कटिक अनुसंधान 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था। पहला केंद्र दक्षिण गंगोत्री कुछ समय के लिए ही संचालित रहा। मैत्री की स्थापना 1989 में हुई और भारती 2012 से संचालित है। वर्तमान में ये दोनों केंद्र वैज्ञानिक अभियानों में सहायक हैं। मैत्री स्टेशन पूर्वी अंटार्कटिका के शिर्माकर ओएसिस क्षेत्र में स्थित है, जो बर्फ से घिरे हुए एक बर्फ-मुक्त क्षेत्र में बना है। यह केंद्र 25 से 40 वैज्ञानिकों को ठहरने की सुविधा देता है तथा इसमें प्रयोगशालाएँ, आवास, और विद्युत आपूर्ति जैसी सुविधाएँ शामिल हैं।
अनुसंधान के लिए अंटार्कटिका का महत्व
अंटार्कटिका पृथ्वी का पाँचवाँ सबसे बड़ा महाद्वीप है, जो लगभग 2.5 करोड़ वर्ष पहले बने बर्फ की परतों से ढका हुआ है। यहाँ पृथ्वी के लगभग 75% मीठे पानी का भंडार है। यह महाद्वीप अत्यधिक ठंड, सूखेपन और तीव्र हवाओं के लिए प्रसिद्ध है। अंटार्कटिका वैज्ञानिकों को जलवायु परिवर्तन, हिमनद विज्ञान (glaciology), वायुमंडलीय विज्ञान, और चरम परिस्थितियों में जैव विविधता के अध्ययन के लिए अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।
मैत्री II की आवश्यकता
मैत्री स्टेशन की पुरानी संरचना अब जर्जर हो चुकी है और वहाँ कचरा प्रबंधन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। इस कारण मैत्री II को एक बड़े, आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसमें सौर और पवन ऊर्जा जैसी नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग किया जाएगा। नया केंद्र बेहतर रहने की सुविधाएँ और उन्नत स्वचालित उपकरणों से लैस होगा, जो दूरस्थ डेटा संचरण में सक्षम होंगे तथा बिना मानव उपस्थिति के भी कुछ समय तक संचालित हो सकेंगे।
योजना और निर्माण से जुड़ी चुनौतियाँ
साइट चयन और क्षेत्रीय मानचित्रण का कार्य 2023 से जारी है। एक जर्मन कंपनी ने डिजाइन प्रतियोगिता जीती है और वही विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तथा पर्यावरण मूल्यांकन तैयार करेगी। निर्माण कार्य पर्यावरणीय स्वीकृति मिलने के बाद शुरू होगा। अंटार्कटिका में निर्माण कार्य अत्यंत जटिल है क्योंकि वहाँ का मौसम अत्यधिक कठोर है और पर्यावरणीय संवेदनशीलता भी अधिक है। निर्माण सामग्री भारत में पूर्वनिर्मित (prefabricated) की जाएगी और दक्षिण अफ्रीका के माध्यम से भेजी जाएगी। निर्माण कार्य केवल अक्तूबर से मार्च के बीच की छोटी गर्मी के मौसम में ही संभव होगा।
समय-सीमा और लॉजिस्टिक व्यवस्था
पूर्व तैयारी के अंतर्गत अनुबंध, सर्वेक्षण और सड़क निर्माण जैसे कार्यों में लगभग 18 महीने लगेंगे। इसके बाद सामग्री की खरीद और परिवहन में 18 महीने और लगेंगे। अंतिम चरण में स्थल पर स्टेशन को जोड़ा जाएगा। संपूर्ण परियोजना जनवरी 2029 तक पूरी करने का लक्ष्य है। दक्षिण अफ्रीका से अंटार्कटिका की समुद्री यात्रा मौसम और मार्ग के अनुसार 1 से 3 सप्ताह तक चल सकती है।

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