दादी माँ MCQ Hindi Chapter 2 Class 7 Vasant हिंदी 2023 MCQ’s For All Chapters – Hindi Class 7th 1. इस पाठ के लेखक का नाम बताएँ-शिवमंगल सिंह ‘सुमन’शिवप्रसाद सिंहयतीश अग्रवालनागार्जुनQuestion 1 of 282. लेखक की कमज़ोरी क्या थी?घर न जाने कीघर में लड़ाई-झगड़े करने कीघर की याद सताने कीघर पर सोते रहने कीQuestion 2 of 283. दादी माँ का व्यक्तित्व कैसा था?स्नेह और ममता भराक्रोधपूर्णझगड़ालुचिढ़चिढ़ाQuestion 3 of 284. दादी माँ क्यों उदास रहती थी?पड़ोसियों से झगड़ा होने के कारणअपने पुत्र द्वारा अपमानित करने के कारणदादा जी की मृत्यु हो जाने के कारणपुत्र की मृत्यु हो जाने के कारणQuestion 4 of 285. पाठ में बच्चे किस महीने में झागदार पानी में नहाते थे?आषाढ़माघक्वारभादोQuestion 5 of 286. विवाह से चार-पाँच दिन पहले औरतें क्या करती थीं?भजनभोजनअभिनयरात भर गीत गाती थीQuestion 6 of 287. कौआ पहले कहाँ बैठा था?खजूर के पेड़ परखिड़की परछत परदरवाज़े परQuestion 7 of 288. नहाकर लौटने पर दादी माँ लेखक के लिए क्या लेकर आई थी?मिठाईफलकिसी अदृश्य शक्तिधारी के चबूतरे की मिट्टीनए कपड़ेQuestion 8 of 289. कमज़ोरी ही है अपनी, पर सच तो यह है कि ज़रा-सी कठिनाई पड़ते; बीसों गरमी, बरसात और वसंत देखने के बाद भी, मेरा मन सदा नहीं तो प्रायः अनमना-सा हो जाता है। मेरे शुभचिंतक मित्र मुँह पर मुझे प्रसन्न करने के लिए आनेवाली छुट्टियों की सूचना देते हैं और पीठ पीछे मुझे कमज़ोर और ज़रा-सी प्रतिकूलता से घबरानेवाला कहकर मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। उपरोक्त गद्यांश के पाठ का नाम एवं लेखक हैं-माँ-नागार्जुनदादी माँ-शिवप्रसाद सिंहनानी माँ-शिवमंगल सिंहनानी माँ-शिवप्रसाद सिंहQuestion 9 of 2810. कमज़ोरी ही है अपनी, पर सच तो यह है कि ज़रा-सी कठिनाई पड़ते; बीसों गरमी, बरसात और वसंत देखने के बाद भी, मेरा मन सदा नहीं तो प्रायः अनमना-सा हो जाता है। मेरे शुभचिंतक मित्र मुँह पर मुझे प्रसन्न करने के लिए आनेवाली छुट्टियों की सूचना देते हैं और पीठ पीछे मुझे कमज़ोर और ज़रा-सी प्रतिकूलता से घबरानेवाला कहकर मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। लेखक की कमज़ोरी थी-खाने कीघर जाने कीघर की याद सताने कीघर को भूल जाने कीQuestion 10 of 2811. कमज़ोरी ही है अपनी, पर सच तो यह है कि ज़रा-सी कठिनाई पड़ते; बीसों गरमी, बरसात और वसंत देखने के बाद भी, मेरा मन सदा नहीं तो प्रायः अनमना-सा हो जाता है। मेरे शुभचिंतक मित्र मुँह पर मुझे प्रसन्न करने के लिए आनेवाली छुट्टियों की सूचना देते हैं और पीठ पीछे मुझे कमज़ोर और ज़रा-सी प्रतिकूलता से घबरानेवाला कहकर मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। बीसों गरमी, बरसात और वसंत का अभिप्राय है-बीस साल का मौसमबीस वर्ष का होनालेखक की उम्र बीस साल होनाएक लंबा समय का व्यतीत होनाQuestion 11 of 2812. कमज़ोरी ही है अपनी, पर सच तो यह है कि ज़रा-सी कठिनाई पड़ते; बीसों गरमी, बरसात और वसंत देखने के बाद भी, मेरा मन सदा नहीं तो प्रायः अनमना-सा हो जाता है। मेरे शुभचिंतक मित्र मुँह पर मुझे प्रसन्न करने के लिए आनेवाली छुट्टियों की सूचना देते हैं और पीठ पीछे मुझे कमज़ोर और ज़रा-सी प्रतिकूलता से घबरानेवाला कहकर मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। शुभचिंतक शब्द का अभिप्राय हैआनंददायकभला सोचने वालेचिंतन करने वालेअशुभ सोचने वालेQuestion 12 of 2813. कमज़ोरी ही है अपनी, पर सच तो यह है कि ज़रा-सी कठिनाई पड़ते; बीसों गरमी, बरसात और वसंत देखने के बाद भी, मेरा मन सदा नहीं तो प्रायः अनमना-सा हो जाता है। मेरे शुभचिंतक मित्र मुँह पर मुझे प्रसन्न करने के लिए आनेवाली छुट्टियों की सूचना देते हैं और पीठ पीछे मुझे कमज़ोर और ज़रा-सी प्रतिकूलता से घबरानेवाला कहकर मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। लेखक को खुश करने के लिए उनके मित्र क्या करते थे-उनकी बातें सुनते थेउनको हँसाते थेछुट्टियों के बारे में बातें करते थेछुट्टियों में घूमने जाते थेQuestion 13 of 2814. कमज़ोरी ही है अपनी, पर सच तो यह है कि ज़रा-सी कठिनाई पड़ते; बीसों गरमी, बरसात और वसंत देखने के बाद भी, मेरा मन सदा नहीं तो प्रायः अनमना-सा हो जाता है। मेरे शुभचिंतक मित्र मुँह पर मुझे प्रसन्न करने के लिए आनेवाली छुट्टियों की सूचना देते हैं और पीठ पीछे मुझे कमज़ोर और ज़रा-सी प्रतिकूलता से घबरानेवाला कहकर मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। प्रतिकूलता का विलोम होता है-अनुकूलताविकलताव्याकुलताविपरीत स्थितिQuestion 14 of 2815. दिन में मैं चादर लपेटे सोया था। दादी माँ आईं, शायद नहाकर आई थीं, उसी झागवाले जल में। पतले-दुबले स्नेह-सने शरीर पर सफ़ेद किनारीहीन धोती, सन-से सफ़ेद बालों के सिरों पर सद्यः टपके हुए जल की शीतलता। आते ही उन्होंने सर, पेट छुए। आँचल की गाँठ खोल किसी अदृश्य शक्तिधारी के चबूतरे की मिट्टी मुँह में डाली, माथे पर लगाई। दिन-रात चारपाई के पास बैठी रहतीं, कभी पंखा झलतीं, कभी जलते हुए हाथ-पैर कपड़े से सहलाती, सर पर दालचीनी का लेप करतीं और बीसों बार छू-छूकर ज्वर का अनुमान करतीं। दिन में बाहर चादर लपेटे कौन सोया था? दादी माँलेखक का मित्रलेखकलेखक का बड़ा भाई किशनQuestion 15 of 2816. दिन में मैं चादर लपेटे सोया था। दादी माँ आईं, शायद नहाकर आई थीं, उसी झागवाले जल में। पतले-दुबले स्नेह-सने शरीर पर सफ़ेद किनारीहीन धोती, सन-से सफ़ेद बालों के सिरों पर सद्यः टपके हुए जल की शीतलता। आते ही उन्होंने सर, पेट छुए। आँचल की गाँठ खोल किसी अदृश्य शक्तिधारी के चबूतरे की मिट्टी मुँह में डाली, माथे पर लगाई। दिन-रात चारपाई के पास बैठी रहतीं, कभी पंखा झलतीं, कभी जलते हुए हाथ-पैर कपड़े से सहलाती, सर पर दालचीनी का लेप करतीं और बीसों बार छू-छूकर ज्वर का अनुमान करतीं। दादी माँ कैसे पानी में नहा कर आई थी?गरम पानी सेठंडा पानी सेझाग वाले पानी सेगुनगुना पानी सेQuestion 16 of 2817. दिन में मैं चादर लपेटे सोया था। दादी माँ आईं, शायद नहाकर आई थीं, उसी झागवाले जल में। पतले-दुबले स्नेह-सने शरीर पर सफ़ेद किनारीहीन धोती, सन-से सफ़ेद बालों के सिरों पर सद्यः टपके हुए जल की शीतलता। आते ही उन्होंने सर, पेट छुए। आँचल की गाँठ खोल किसी अदृश्य शक्तिधारी के चबूतरे की मिट्टी मुँह में डाली, माथे पर लगाई। दिन-रात चारपाई के पास बैठी रहतीं, कभी पंखा झलतीं, कभी जलते हुए हाथ-पैर कपड़े से सहलाती, सर पर दालचीनी का लेप करतीं और बीसों बार छू-छूकर ज्वर का अनुमान करतीं। दादी माँ की धोती कैसी थी?सफ़ेदबिना किनारी कीनीला1 और 2 दोनों Question 17 of 2818. दिन में मैं चादर लपेटे सोया था। दादी माँ आईं, शायद नहाकर आई थीं, उसी झागवाले जल में। पतले-दुबले स्नेह-सने शरीर पर सफ़ेद किनारीहीन धोती, सन-से सफ़ेद बालों के सिरों पर सद्यः टपके हुए जल की शीतलता। आते ही उन्होंने सर, पेट छुए। आँचल की गाँठ खोल किसी अदृश्य शक्तिधारी के चबूतरे की मिट्टी मुँह में डाली, माथे पर लगाई। दिन-रात चारपाई के पास बैठी रहतीं, कभी पंखा झलतीं, कभी जलते हुए हाथ-पैर कपड़े से सहलाती, सर पर दालचीनी का लेप करतीं और बीसों बार छू-छूकर ज्वर का अनुमान करतीं। दादी माँ के बाल किसके समान थे?सन केकपड़े केधूप केसाबुन केQuestion 18 of 2819. दिन में मैं चादर लपेटे सोया था। दादी माँ आईं, शायद नहाकर आई थीं, उसी झागवाले जल में। पतले-दुबले स्नेह-सने शरीर पर सफ़ेद किनारीहीन धोती, सन-से सफ़ेद बालों के सिरों पर सद्यः टपके हुए जल की शीतलता। आते ही उन्होंने सर, पेट छुए। आँचल की गाँठ खोल किसी अदृश्य शक्तिधारी के चबूतरे की मिट्टी मुँह में डाली, माथे पर लगाई। दिन-रात चारपाई के पास बैठी रहतीं, कभी पंखा झलतीं, कभी जलते हुए हाथ-पैर कपड़े से सहलाती, सर पर दालचीनी का लेप करतीं और बीसों बार छू-छूकर ज्वर का अनुमान करतीं। दादी माँ की क्रियाकलापों से उसका क्या भाव झलकता था?क्रूरता काचिंता का भावस्नेह का भावपाखंडी का भावQuestion 19 of 2820. किशन के विवाह के दिनों की बात है। विवाह के चार-पाँच रोज़ पहले से ही औरतें रात-रातभर गीत गाती हैं। विवाह की रात को अभिनय भी होता है। यह प्रायः एक ही कथा का हुआ करता है, उसमें विवाह से लेकर पुत्रोत्पत्ति तक के सभी दृश्य दिखाए जाते हैं-सभी पार्ट औरतें ही करती हैं। मैं बीमार होने के कारण बारात में न जा सका। किसके विवाह के दिनों की बात है?लेखक के मित्र केलेखक के चचेरे भाई केलेखक के बड़े भाई किशन केलेखक केQuestion 20 of 2821. किशन के विवाह के दिनों की बात है। विवाह के चार-पाँच रोज़ पहले से ही औरतें रात-रातभर गीत गाती हैं। विवाह की रात को अभिनय भी होता है। यह प्रायः एक ही कथा का हुआ करता है, उसमें विवाह से लेकर पुत्रोत्पत्ति तक के सभी दृश्य दिखाए जाते हैं-सभी पार्ट औरतें ही करती हैं। मैं बीमार होने के कारण बारात में न जा सका। विवाह से चार-पाँच दिन पहले औरतें क्या करती हैं?मिठाई बनाती हैंमेहँदी लगाती हैंरातभर गीत गाती हैंखाना पकाती हैंQuestion 21 of 2822. किशन के विवाह के दिनों की बात है। विवाह के चार-पाँच रोज़ पहले से ही औरतें रात-रातभर गीत गाती हैं। विवाह की रात को अभिनय भी होता है। यह प्रायः एक ही कथा का हुआ करता है, उसमें विवाह से लेकर पुत्रोत्पत्ति तक के सभी दृश्य दिखाए जाते हैं-सभी पार्ट औरतें ही करती हैं। मैं बीमार होने के कारण बारात में न जा सका। विवाह की रात को औरतें क्या करती हैं?पेंटिंग करती हैंमेहँदी लगाती हैंअभिनय करती हैंसजावट करती हैंQuestion 22 of 2823. किशन के विवाह के दिनों की बात है। विवाह के चार-पाँच रोज़ पहले से ही औरतें रात-रातभर गीत गाती हैं। विवाह की रात को अभिनय भी होता है। यह प्रायः एक ही कथा का हुआ करता है, उसमें विवाह से लेकर पुत्रोत्पत्ति तक के सभी दृश्य दिखाए जाते हैं-सभी पार्ट औरतें ही करती हैं। मैं बीमार होने के कारण बारात में न जा सका। “पुत्रोत्पत्ति’ शब्द का सही संधि-विच्छेद हैपुत्र + उत्पतिपुत्रो + उत्तपत्तिपुत्रो + त्पतिपुत्र + उत्पत्तिQuestion 23 of 2824. स्नेह और ममता की मूर्ति दादी माँ की एक-एक बात आज कैसी-कैसी मालूम होती है। परिस्थितियों का वात्याचक्र जीवन को सूखे पत्ते-सा कैसा नचाता है, इसे दादी माँ खूब जानती थीं। दादा की मृत्यु के बाद से ही वे बहुत उदास रहतीं। संसार उन्हें धोखे की टट्टी मालूम होता। दादा ने उन्हें स्वयं जो धोखा दिया। वे सदा उन्हें आगे भेजकर अपने पीछे जाने की झूठी बात कहा करते थे। दादी माँ किसकी मूर्ति प्रतीत होती थीं?स्नेह कीदया कीस्नेह-ममता कीशांति कीQuestion 24 of 2825. स्नेह और ममता की मूर्ति दादी माँ की एक-एक बात आज कैसी-कैसी मालूम होती है। परिस्थितियों का वात्याचक्र जीवन को सूखे पत्ते-सा कैसा नचाता है, इसे दादी माँ खूब जानती थीं। दादा की मृत्यु के बाद से ही वे बहुत उदास रहतीं। संसार उन्हें धोखे की टट्टी मालूम होता। दादा ने उन्हें स्वयं जो धोखा दिया। वे सदा उन्हें आगे भेजकर अपने पीछे जाने की झूठी बात कहा करते थे। ‘परिस्थितियों का वात्याचक्र जीवन को सूखे पत्ते-सा नचाता है’-का अभिप्राय है।सूखे पत्ते नाचते हैंजीवन सूखे पत्ते जैसा हैपरिस्थितियाँ सूखे पत्ते-सी होती हैंजीवन में अच्छी और बुरी परिस्थितियाँ आती-जाती रहती हैंQuestion 25 of 2826. स्नेह और ममता की मूर्ति दादी माँ की एक-एक बात आज कैसी-कैसी मालूम होती है। परिस्थितियों का वात्याचक्र जीवन को सूखे पत्ते-सा कैसा नचाता है, इसे दादी माँ खूब जानती थीं। दादा की मृत्यु के बाद से ही वे बहुत उदास रहतीं। संसार उन्हें धोखे की टट्टी मालूम होता। दादा ने उन्हें स्वयं जो धोखा दिया। वे सदा उन्हें आगे भेजकर अपने पीछे जाने की झूठी बात कहा करते थे। दादी माँ क्यों उदास रहती थी?गरीबी के कारणआपसी लड़ाई-झगड़े के कारणबीमारी होने के कारणदादा जी की मृत्यु हो जाने के कारणQuestion 26 of 2827. स्नेह और ममता की मूर्ति दादी माँ की एक-एक बात आज कैसी-कैसी मालूम होती है। परिस्थितियों का वात्याचक्र जीवन को सूखे पत्ते-सा कैसा नचाता है, इसे दादी माँ खूब जानती थीं। दादा की मृत्यु के बाद से ही वे बहुत उदास रहतीं। संसार उन्हें धोखे की टट्टी मालूम होता। दादा ने उन्हें स्वयं जो धोखा दिया। वे सदा उन्हें आगे भेजकर अपने पीछे जाने की झूठी बात कहा करते थे। दादा ने दादी को क्या धोखा दिया?दादी माँ को बेघर करकेदादी को कर्जा में डुबाकरदादी से पहले मरकरइनमें कोई नहींQuestion 27 of 2828. स्नेह और ममता की मूर्ति दादी माँ की एक-एक बात आज कैसी-कैसी मालूम होती है। परिस्थितियों का वात्याचक्र जीवन को सूखे पत्ते-सा कैसा नचाता है, इसे दादी माँ खूब जानती थीं। दादा की मृत्यु के बाद से ही वे बहुत उदास रहतीं। संसार उन्हें धोखे की टट्टी मालूम होता। दादा ने उन्हें स्वयं जो धोखा दिया। वे सदा उन्हें आगे भेजकर अपने पीछे जाने की झूठी बात कहा करते थे। लेखक को किस बात का यकीन नहीं हो रहा था?अपनी बड़े भाई की शादी परउनकी नौकरी जाने परअपने दादी माँ की मृत्यु परदादी का कंगन बिक जाने परQuestion 28 of 28 Loading... 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