परिचय
यह अध्याय 18वीं सदी के कवि गिरिधर कविराय की दो प्रसिद्ध कुंडलियों पर आधारित है। उनकी रचनाएँ सरल और नीतिपरक हैं, जिन्हें लोग कहावतों की तरह उपयोग करते हैं। उनकी कविताएँ जीवन के सामान्य व्यवहार और नैतिकता की सीख देती हैं। इस अध्याय में हम उनकी दो कुंडलियों को समझेंगे और उनसे मिलने वाली सीख को जानेंगे।
कुंडलियाँ और उनका अर्थ
पहली कुंडलिया
पंक्तियाँ:
“बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछिताय।
काम बिगारे आपनो जग में होत हैंसाय ॥
जग में होत हैंसाय चित में चैन न पावे।
खान पान सन्मान राग रंग मनहिं न भावे॥
कह गिरिरर कविराय दुःख कुरत न रारे।
खटकत है जिय माहिं कियो जो बिना बिचारे॥”
अर्थ:
- अगर कोई व्यक्ति बिना सोचे-समझे कोई काम करता है, तो उसे बाद में पछताना पड़ता है।
- ऐसा काम करने से उसका काम बिगड़ जाता है और लोग उसका मजाक उड़ाते हैं।
- मजाक उड़ने से मन में शांति नहीं रहती, और अच्छा खाना-पीना, सम्मान, या जीवन के सुख भी अच्छे नहीं लगते।
- कवि कहते हैं कि बिना सोचे किया गया काम लंबे समय तक मन में खटकता रहता है और दुख देता है।
सीख:
- कोई भी काम करने से पहले अच्छे से सोच-विचार करना चाहिए।
- जल्दबाजी में लिए गए निर्णय हमें परेशानी में डाल सकते हैं।
उदाहरण:
- अगर कोई बच्चा बिना पढ़ाई की योजना बनाए परीक्षा देता है, तो वह असफल हो सकता है और बाद में पछताएगा।
दूसरी कुंडलिया
पंक्तियाँ:
“बीती ताहिं बिसारि दे आगे की सुधि लेइ।
जो बनि आवे सहज में ताही में चित देइ॥
ताही में चित देइ बात जोई बनि आवे।
दुर्जन हैंसे न कोइ चित में खता न पावे॥
कह गिरिरर कविराय यहै करु मन परतीती।
आगे को सुख होइ समुझि बीती सो बीती॥”
अर्थ:
- बीते हुए समय की गलतियों को भूल जाओ और भविष्य की योजना बनाओ।
- जो काम आसानी से हो सकता है, उसी पर ध्यान दो।
- ऐसे काम करो कि बुरे लोग तुम्हारा मजाक न उड़ाएँ और तुम्हें अपने मन में कोई गलती का पछतावा न हो।
- कवि कहते हैं कि बीते हुए दुखों को भूलकर भविष्य में सुख की उम्मीद रखो।
सीख:
- अतीत की गलतियों से सीख लो, लेकिन उनमें उलझे मत। भविष्य पर ध्यान दो।
- सरल और सही काम करने की कोशिश करो ताकि मन में शांति रहे।
उदाहरण:
- अगर कोई बच्चा पिछले साल परीक्षा में कम अंक लाया, तो उसे उसका दुख भूलकर इस साल मेहनत करनी चाहिए।
कवि का परिचय
नाम: गिरिधर कविराय
जन्म: 18वीं सदी
विशेषता: उनकी रचनाएँ नीतिपरक और सरल हैं। उनकी कुंडलियाँ कहावतों की तरह लोकप्रिय हैं।
उद्देश्य: उन्होंने अपनी कविताओं में नैतिकता, धन का सही उपयोग, और जीवन के सामान्य व्यवहार की बातें सरल शब्दों में कही हैं।
उदाहरण कहावतें:
“बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछिताय।”
“बीती ताहिं बिसारि दे आगे की सुधि लेइ।”
कुंडलियों की विशेषताएँ
- लयबद्धता: दोनों कुंडलियों को पढ़ने में एक समान समय लगता है, जिससे उनकी सुंदरता बढ़ती है।
- दोहराव: प्रत्येक कुंडलिया की पहली पंक्ति का अंतिम शब्द दूसरी पंक्ति में दोहराया गया है।
- संवाद शैली: कुंडलियाँ पढ़ते समय ऐसा लगता है जैसे कवि हमसे बात कर रहा हो।
- नीतिपरक संदेश: दोनों कुंडलियाँ जीवन के लिए उपयोगी नैतिक सीख देती हैं।
- समान ध्वनि: कुछ पंक्तियों के अंतिम शब्दों की ध्वनि मिलती-जुलती है, जैसे “पछिताय” और “हैंसाय”।
- कवि का नाम: दोनों कुंडलियों में कवि ने अपना नाम “गिरिरर कविराय” शामिल किया है।
निष्कर्ष
- गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ हमें सिखाती हैं कि हमें सोच-समझकर काम करना चाहिए और अतीत की गलतियों को भूलकर भविष्य पर ध्यान देना चाहिए।
- उनकी रचनाएँ सरल और लयबद्ध हैं, जो हमें नैतिकता और जीवन के सही तरीके सिखाती हैं।
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