बिरजू महाराज से साक्षत्कार
परिचय
यह अध्याय पंडित बिरजू महाराज के जीवन और कथक नृत्य के बारे में एक साक्षात्कार है। बिरजू महाराज एक प्रसिद्ध कथक नर्तक थे, जिन्हें भारत और विदेशों में उनकी शानदार प्रस्तुतियों के लिए जाना जाता है। इस साक्षात्कार में कुछ बच्चे उनसे उनके जीवन, कथक नृत्य, और संगीत के बारे में सवाल पूछते हैं। यहाँ उनके जवाबों को सरल भाषा में समझाया गया है।
मुख्य बिंदु
1. बिरजू महाराज का बचपन
- बिरजू महाराज का बचपन मुश्किलों से भरा था। उनके पिता के देहांत के बाद परिवार को आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ा।
- पहले उनके परिवार के पास बहुत संपत्ति थी, लेकिन बाद में हालात बदल गए। उनके माँ ने उनकी बहुत मदद की।
- माँ ने सलाह दी कि भले ही खाना कम मिले, लेकिन नृत्य का अभ्यास बंद नहीं करना चाहिए।
- नृत्य के कार्यक्रमों से थोड़ा-बहुत पैसा मिलता था, जिससे परिवार का गुजारा होता था।
2. कथक की शिक्षा
- बिरजू महाराज ने कथक अपने पिता अच्छन महाराज, चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज से सीखा।
- उनके घर में कथक का माहौल था, इसलिए बचपन में ही वे देखकर कथक सीख गए और नवाब के दरबार में नाचने लगे।
- कथक की औपचारिक शिक्षा शुरू होने से पहले उनके पिता ने कहा कि जब तक वे मेहनत से सीखेंगे, तभी उन्हें गंडा (ताबीज) बांधा जाएगा।
3. गंडा बांधने की परंपरा
- परंपरागत रूप से, गुरु शिष्य को गंडा बांधता है और शिष्य गुरु को कुछ देता है।
- बिरजू महाराज ने इस परंपरा को बदल दिया। वे पहले शिष्य की लगन और मेहनत देखते हैं, फिर गंडा बांधते हैं।
4. नृत्य और पढ़ाई का संतुलन
- बिरजू महाराज का मानना है कि मेहनत और लगन से पढ़ाई और नृत्य दोनों एक साथ किए जा सकते हैं।
- उनकी शिष्या शोभना नारायण IAS अधिकारी हैं और एक अच्छी नर्तकी भी।
- उन्होंने खुद नृत्य के साथ-साथ गाना, बजाना, और नृत्य-नाटिकाओं की रचना भी की।
5. कथक की उत्पत्ति
- कथक बहुत पुरानी नृत्य शैली है। इसका उल्लेख महाभारत और रामायण में मिलता है।
- पहले कथक मंदिरों में कथा कहने का तरीका था। बाद में यह लखनऊ, जयपुर, और बनारस घरानों में विकसित हुआ।
- एक कहानी के अनुसार, हरिया गांव के कथकों ने अपनी कला से डाकुओं को भी मंत्रमुग्ध कर दिया था।
6. संगीत और नृत्य का महत्व
- बिरजू महाराज के अनुसार, नृत्य के लिए संगीत और लय की समझ जरूरी है।
- लय नृत्य को सुंदर बनाती है और जीवन में संतुलन लाती है।
- नृत्य में शरीर, ध्यान, और तपस्या का मेल होता है। यह एक तरह से ईश्वर को निमंत्रण देने जैसा है।
7. कथक में बदलाव
- बिरजू महाराज ने कथक की पुरानी परंपरा को बनाए रखा, लेकिन प्रस्तुति में नए प्रयोग किए।
- उन्होंने अपने पिता और चाचाओं की भाव-भंगिमाओं को कथक में शामिल किया।
- आधुनिक कवियों की रचनाओं को भी कथक में जोड़ा।
8. लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य में अंतर
- लोक नृत्य: सामूहिक होता है, लोग थकान मिटाने और मनोरंजन के लिए नाचते हैं। यह क्षेत्रीय संस्कृति को दर्शाता है।
- शास्त्रीय नृत्य: इसमें एक नर्तक अकेले ही प्रस्तुति देता है। यह दर्शकों के लिए होता है और नियमों पर आधारित होता है।
9. भारत में शास्त्रीय नृत्य की स्थिति
- पहले शास्त्रीय नृत्य की स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन अब इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है।
- बिरजू महाराज कहते हैं कि हमें अपनी परंपराओं को समझना और उनकी गहराई को अनुभव करना चाहिए।
10. भारत के शास्त्रीय नृत्य
- कथक: उत्तर भारत का नृत्य, जिसमें कोमल और तेज दोनों भाव होते हैं। इसमें गर्दन और उंगलियों की हल्की गति होती है।
- भरतनाट्यम: दक्षिण भारत का नृत्य, जो मूर्तिकला से प्रेरित है। इसमें भाव और अभिनय का मेल होता है।
- कथकली: केरल का नृत्य, जिसमें रामायण और महाभारत की कहानियां प्रस्तुत की जाती हैं। यह पुरुषों द्वारा किया जाता है।
- कुचिपुड़ी: आंध्र प्रदेश का नृत्य, जो प्रार्थना से शुरू होता है और कर्णाटक संगीत के साथ प्रस्तुत होता है।
- मणिपुरी: मणिपुर का नृत्य, जिसमें कोमलता और हाव-भाव महत्वपूर्ण हैं।
- ओडिसी: ओडिशा का नृत्य, जिसमें त्रिभंग मुद्रा (शरीर का तीन मोड़) खास है।
- मोहिनीअट्टम: केरल का नृत्य, जो केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है और कोमल अभिनय पर आधारित है।
11. बिरजू महाराज की अन्य रुचियां
- वे खाली समय में मशीनों को खोलकर उनके पुर्जे देखना पसंद करते हैं।
- उन्हें चित्रकला का भी शौक है। उन्होंने कई चित्र बनाए हैं।
- अगर वे नर्तक न होते, तो शायद इंजीनियर बनते।
12. महिलाओं के लिए समानता
- बिरजू महाराज ने अपनी बेटियों को कथक सिखाया, हालांकि उनकी बहनों को यह अवसर नहीं मिला।
- उनका मानना है कि लड़कियों को हुनर सीखना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
13. सुधा चंद्रन की कहानी
- सुधा चंद्रन एक प्रसिद्ध नृत्यांगना हैं, जिन्होंने एक पैर खोने के बावजूद नृत्य में सफलता हासिल की।
- एक बस दुर्घटना में उनका दायां पैर काटना पड़ा, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
- डॉ. पी.सी. सेठी ने उनके लिए विशेष कृत्रिम पैर बनाया, जिससे वे फिर से नाच सकीं।
- 1984 में उन्होंने मुंबई में शानदार प्रदर्शन दिया और रातों-रात प्रसिद्ध हो गईं।
- उनकी कहानी पर बनी फिल्म मयूरी और नाचे मयूरी को बहुत सराहना मिली।
शब्द और उनके अर्थ
- कर्णाटक संगीत शैली: दक्षिण भारत में प्रचलित संगीत, जिसमें वीणा, मृदंगम जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है।
- घराना: संगीत या नृत्य की विशिष्ट शैली, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी सिखाई जाती है।
- शास्त्रीय संगीत: नियमों पर आधारित संगीत, जिसमें सुर और लय का महत्व होता है।
- हिंदुस्तानी संगीत शैली: उत्तर भारत में प्रचलित संगीत, जिसमें तबला, सितार जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग होता है।
- कथावाचन: कहानियां सुनाने की कला, जो कथक नृत्य का आधार है।
- लोक नृत्य: क्षेत्रीय नृत्य, जो उत्सवों और खुशी के मौकों पर सामूहिक रूप से किया जाता है।
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