बिरजू महाराज से साक्षत्कार
परिचय
- जब भी हम कथक नृत्य के बारे में सोचते हैं, तो हमें बिरजू महाराज का नाम याद आता है।
- कथक नृत्य की कला उन्हें विरासत में मिली थी।
- बिरजू महाराज को भारत और विदेशों में उनकी सुंदर नृत्य प्रस्तुतियों के लिए जाना जाता है।
- उनका जीवन शास्त्रीय संगीत की तरह उतार-चढ़ाव से भरा था, और उन्होंने सफलता पाने के लिए बहुत मेहनत की।
बचपन और संघर्ष
- एक समय था जब वे छोटे नवाब कहलाते थे, और उनकी हवेली के दरवाजे पर सिपाही पहरा देते थे।
- उनके पिता की मृत्यु के बाद, उनका परिवार आर्थिक रूप से कमजोर हो गया।
- कभी जिन डिब्बों में लाखों के हार होते थे, वे खाली हो गए थे।
- उनकी माँ ने संघर्ष के समय में उनका बहुत साथ दिया।
- उनकी माँ कहती थीं कि खाना मिले या नहीं, लेकिन रियाज़ जरूर करो।
कथक सीखना
- बिरजू महाराज ने कथक अपने पिता अच्छन महाराज और चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज से सीखा।
- घर में कथक का माहौल होने के कारण, उन्होंने औपचारिक प्रशिक्षण शुरू होने से पहले ही देखकर कथक सीख लिया था।
- कथक की शिक्षा शुरू करते समय गुरु शिष्य को ‘गंडा’ (ताबीज) बाँधते हैं और शिष्य गुरु को भेंट देता है।
- बिरजू महाराज ने इस रस्म को बदल दिया और शिष्य में सच्ची लगन देखने के बाद ही ‘गंडा’ बाँधते हैं।
शिक्षा और नृत्य
- बिरजू महाराज कहते हैं कि पढ़ाई और दूसरे कामों के साथ संगीत और नृत्य जारी रखना व्यक्ति की क्षमता पर निर्भर करता है।
कथक की शुरुआत
- कथक की परंपरा बहुत पुरानी है, और इसका जिक्र महाभारत और रामायण में भी मिलता है।
- पहले कथक अनौपचारिक रूप से कहानी कहने का एक तरीका था, और यह मंदिरों तक ही सीमित था।
संगीत और नृत्य का महत्व
- गाना, बजाना और नाचना संगीत का हिस्सा हैं, और संगीत में लय का ज्ञान आवश्यक है।
- नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है, और यह एक तरह से अदृश्य शक्ति को आमंत्रित करने जैसा है।
- लय हर काम, नृत्य और जीवन में संतुलन बनाए रखती है।
कथक में बदलाव
- बिरजू महाराज ने कथक की पुरानी परंपरा को कायम रखा है, लेकिन उन्होंने इसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए हैं।
कथक में बदलाव
- पहले मंच नहीं होते थे, और नर्तक फर्श पर चादर बिछाकर नृत्य करते थे, और दर्शक चारों ओर बैठते थे।
गाना, बजाना और नाचना कब शुरू किया
- बिरजू महाराज ने बचपन से ही तबला बजाना शुरू कर दिया था, और पाँच साल की उम्र तक वे हारमोनियम पर भी बजाने लगे थे।
शास्त्रीय और लोक नृत्य में अंतर
- लोक नृत्य सामूहिक होता है, और यह थकान दूर करने और मनोरंजन के लिए किया जाता है।
- शास्त्रीय नृत्य में एक नर्तक ही काफी होता है, और यह दर्शकों के लिए होता है।
शास्त्रीय नृत्य की स्थिति
- कुछ साल पहले तक भारत में शास्त्रीय नृत्य की स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन अब इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है।
खाली समय में क्या करते हैं
- बिरजू महाराज कहते हैं कि वे खाली नहीं होते, और वे नींद में भी हाथ चलाते रहते हैं।
- उन्हें मशीनों में बहुत रुचि है, और वे चित्रकला भी करते हैं।
बच्चों के लिए संदेश
- बिरजू महाराज आजकल के माता-पिता से विनती करते हैं कि यदि बच्चे की रुचि है तो उसे संगीत और नृत्य सीखने दें।
- यह भी एक खेल है जिससे बच्चों को संतुलन, समय का महत्व और अनुशासन सीखने को मिलता है।
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