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मल्हार हिन्दी Question Answer Class 7 Chapter 5 Malhar Hindi

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नहीं होना बीमार (कविता)


पाठ से

(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सही उत्तर कौन-सा है? उसके सामने तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।

(1) बच्चे के विद्यालय न जाने का मुख्य कारण क्या था?

• ★ उसका विद्यालय जाने का मन नहीं था।

• ★ उसने गृहकार्य नहीं किया था।

• उसका साबुदाने की खीर खाने का मन था।

• उसे बुखार हो गया था।

 

(2) कहानी के अंत में बच्चे ने कहा, “इसके बाद स्कूल से छुट्टी मारने के लिए मैंने बीमारी का बहाना कभी नहीं बनाया।” बच्चे ने यह निर्णय लिया क्योंकि –

• ★ घर में रहने के बजाय विद्यालय जाना अधिक रोचक है।

• ★ इस बहाने के कारण उसे दिनभर अकेले और भूखे रहना पड़ा।

• ★ झूठ बोलने से झूठ के खुलने का डर हमेशा बना रहता है।

• बीमारी का बहाना बनाने से साबुदाने की खीर नहीं मिलती।

 

(3) “लेटे-लेटे पीठ दुखने लगी” इस बात से बच्चे के बारे में क्या पता चलता है?

• ★ उसे बिस्तर पर लेटे रहने के कारण ऊब हो गई थी।

• उसे अपनी बीमारी की कोई चिंता नहीं रह गई थी।

• वह बिस्तर पर आराम करने का आनंद ले रहा था।

• बीमारी के कारण उसकी पीठ में दर्द हो रहा था।

 

(4) “क्या ठाठ हैं बीमारों के भी!” बच्चे के मन में यह बात आई क्योंकि-

• ★ बीमार व्यक्ति को बहुत आराम करने को मिलता है।

• ★ बीमार व्यक्ति को अच्छे खाने का आनंद मिलता है।

• ★ बीमार व्यक्ति को विद्यालय नहीं जाना पड़ता है।

• ★ बीमार व्यक्ति अस्पताल में शांति से लेटा रहता है।

 

(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने अलग-अलग उत्तर चुने हों। अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?

चर्चा के लिए मार्गदर्शन: अपने मित्रों के साथ चर्चा करते समय, मैं अपने उत्तरों को इस प्रकार समझाऊंगा:

प्रश्न 1 के लिए, मैंने “विद्यालय जाने का मन नहीं था” और “गृहकार्य नहीं किया था” चुना, क्योंकि पृष्ठ 2 पर स्पष्ट लिखा है कि बच्चे का स्कूल जाने का मन नहीं था और उसने होमवर्क नहीं किया था, जिसके कारण सजा का डर था। खीर और बुखार के विकल्प गलत हैं, क्योंकि बुखार एक बहाना था, और खीर बाद में उसकी इच्छा बनी, न कि स्कूल न जाने का कारण।

प्रश्न 2 के लिए, मैंने तीन विकल्प चुने: “विद्यालय जाना अधिक रोचक है” (पृष्ठ 7 पर बच्चे को घर पर ऊब और स्कूल की तुलना में बेहतर अनुभव का अहसास), “दिनभर अकेले और भूखे रहना पड़ा” (पृष्ठ 8 पर भूख और उपेक्षा का वर्णन), और “झूठ के खुलने का डर” (पृष्ठ 20 पर चुपके से झांकने का डर)। खीर वाला विकल्प गलत है, क्योंकि उसका निर्णय खीर से नहीं, बल्कि पूरे अनुभव से प्रभावित था।

प्रश्न 3 के लिए, “ऊब हो गई थी” सही है, क्योंकि पृष्ठ 5 पर बच्चा ऊब और पीठ दर्द का जिक्र करता है। अन्य विकल्प गलत हैं, क्योंकि वह बीमार नहीं था और आराम का आनंद नहीं ले रहा था।

प्रश्न 4 के लिए, सभी विकल्प सही हैं, क्योंकि बच्चे की सोच (पृष्ठ 1-2) में अस्पताल का शांत माहौल, साफ बिस्तर, खीर, और स्कूल न जाने का विचार शामिल था। मैं अपने मित्रों से उनके उत्तरों के कारण पूछूंगा और कहानी के विशिष्ट पंक्तियों के आधार पर चर्चा करूंगा, ताकि हम अलग-अलग दृष्टिकोण समझ सकें।


मिलकर करें मिलान

पाठ में से चुनकर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही अर्थों से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश,  इंटरनेट या अपने परिजनों और शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।

उत्तर:-

शब्दअर्थ
1. साबूदाना8. सागू नामक वृक्ष के तने का गूदा, सागूदाना, यह पहले आटे के रूप में होता है और फिर कूटकर दानों के रूप में सुखा लिया जाता है।
2. वार्ड1. किसी विशिष्ट कार्य के लिए घेरकर बनाया हुआ स्थान।
3. नर्स9. वह व्यक्ति जो रोगियों, घायलों या वृद्धों आदि की देखभाल करे।
4. रजाई2. एक प्रकार का जाड़े का ओढ़ना जिसका कपड़ा दोहरा होता है और जिसमें रुई भरी होती है।
5. थर्मामीटर3. शरीर का तापमान (जैसे बुखार) नापने का एक छोटा यंत्र।
6. काढ़ा4. कई तरह की जड़ी-बूटियों और औषधियों को उबालकर उनके रस से बना पेय होता है। इसे सर्दी-जुकाम, खाँसी-बुखार और पाचन से जुड़ी समस्याओं में लाभदायक माना जाता है।
7. ड्राइक्लीन5. रेशमी, ऊनी, मलमल जैसे नाजुक कपड़ों को पानी, साबुन और डिटर्जेंट के बिना मशीनों से साफ करने वाला व्यक्ति।
8. ताजमहल6. उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में स्थित 17वीं सदी में निर्मित एक विश्व-प्रसिद्ध स्मारक जो सफेद संगमरमर से बना है।
9. अरहर7. एक दाल जिसे तुअर भी कहते हैं।

पंक्तियों पर चर्चा

पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए-

(क) “मैंने सोचा बीमार पड़ने के लिए आज का दिन बिलकुल ठीक रहेगा। चलो बीमार पड़ जाते हैं।”

अर्थ और विचार: इस पंक्ति में बच्चा यह सोचता है कि स्कूल न जाने के लिए बीमारी का बहाना बनाना एक अच्छा विचार है। वह यह निर्णय इसलिए लेता है क्योंकि उसने होमवर्क नहीं किया था और स्कूल में सजा मिलने का डर था। यह पंक्ति बच्चे की नादानी और चंचलता को दर्शाती है, जो यह सोचता है कि बीमार होने का नाटक करके वह स्कूल की जिम्मेदारियों से बच सकता है और घर पर आरामदायक समय बिता सकता है, जैसे कि सुधाकर काका को अस्पताल में साबूदाने की खीर मिली थी। बच्चे का यह विचार उसकी बचपन की मासूमियत और अल्पज्ञान को दिखाता है, जहाँ वह बीमारी को एक आकर्षक और आसान रास्ता समझता है, बिना यह सोचे कि इसके परिणाम क्या हो सकते हैं।

साझा विचार: यह पंक्ति बच्चों की उस प्रवृत्ति को उजागर करती है, जहाँ वे तात्कालिक लाभ के लिए जल्दबाजी में निर्णय लेते हैं। बच्चे ने सुधाकर काका के अस्पताल के अनुभव को देखकर बीमारी को एक मजेदार और आरामदायक स्थिति समझ लिया, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि बीमारी का नाटक करने से वह भूखा और ऊबा हुआ रहेगा। यह पंक्ति हमें सिखाती है कि हमें अपने निर्णयों के परिणामों पर विचार करना चाहिए।

(ख) “देखो! उन्होंने एक बार भी आकर नहीं पूछा कि तू क्या खाएगा? पूछते तो मैं साबूदाने की खीर ही तो माँगता। कोई ताजमहल तो नहीं माँग लेता। लेकिन नहीं! भूखे रहो !! इससे सारे विकार निकल जाएँगे। विकार निकल जाएँ बस। चाहे इस चक्कर में तुम खुद शिकार हो जाओ।”

अर्थ और विचार: इस पंक्ति में बच्चा अपनी निराशा और हताशा व्यक्त करता है, क्योंकि बीमारी का बहाना बनाने के कारण उसे न केवल भूखा रहना पड़ रहा है, बल्कि कोई उसका ध्यान भी नहीं रख रहा। वह यह सोचता है कि अगर नानीजी या नानाजी ने उससे खाने के बारे में पूछा होता, तो वह साबूदाने की खीर माँगता, जो उसे सुधाकर काका को खिलाते हुए देखकर बहुत आकर्षक लगी थी। “कोई ताजमहल तो नहीं माँग लेता” कहकर वह अपनी साधारण इच्छा को हास्यपूर्ण ढंग से व्यक्त करता है, लेकिन साथ ही वह नानाजी की उस बात पर व्यंग्य करता है कि भूखे रहने से “विकार निकल जाएँगे।” बच्चे को लगता है कि इस उपाय के चक्कर में वह खुद भूख से परेशान हो रहा है, और यह उसकी अपेक्षाओं के विपरीत है। यह पंक्ति बच्चे की भूख, निराशा और थोड़े गुस्से को दर्शाती है, साथ ही यह भी दिखाती है कि उसका बीमारी का बहाना उल्टा पड़ गया।

साझा विचार: यह पंक्ति कहानी के हास्य और विडंबना को उजागर करती है। बच्चे ने सोचा था कि बीमारी का नाटक करने से उसे आराम और स्वादिष्ट खाना मिलेगा, लेकिन उसे भूख और अकेलापन मिला। यह हमें सिखाता है कि झूठ बोलने या बहाने बनाने से अक्सर अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते और इससे नुकसान हो सकता है। बच्चे का “ताजमहल” वाला कथन उसकी मासूमियत और अतिशयोक्ति को दर्शाता है, जो कहानी को और रोचक बनाता है। यह पंक्ति हमें यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि बच्चों के मन में छोटी-छोटी चीजें कितनी बड़ी इच्छाएँ बन सकती हैं।


सोच-विचार के लिए

पाठ को एक बार फिर ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए-

(क) अस्पताल में बच्चे को कौन-कौन सी चीजें अच्छी लगीं और क्यों?

उत्तर: बच्चे को अस्पताल का माहौल बहुत अच्छा लगा। निम्नलिखित चीजें उसे विशेष रूप से पसंद आईं:

1. साफ-सुथरा और शांत वातावरण: बच्चे को अस्पताल की सफेद दीवारें, ऊँची छत, चमकता हुआ फर्श, और खिड़कियों पर हरे परदे बहुत अच्छे लगे। उसे यह माहौल शांत और सुकून देने वाला लगा क्योंकि वहाँ न ट्रैफिक का शोर था, न धूल थी, और न ही मच्छर-मक्खियाँ थीं। यह सब उसे घर या बाहर की सामान्य हलचल से अलग और आकर्षक लगा।

2.बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पास हरे-हरे पेड़: बच्चे ने देखा कि खिड़कियों के बाहर हरे पेड़ हवा में झूम रहे थे, जो उसे बहुत सुंदर और मनमोहक लगे। यह प्राकृतिक दृश्य उसे शांति और आनंद देता था।

लोगों की धीमी बातचीत: अस्पताल में लोगों के धीरे-धीरे बात करने की “धीमी-धीमी गुनगुन” उसे अच्छी लगी। यह शांति और व्यवस्था का प्रतीक था, जो उसे सामान्य जीवन की भागदौड़ से अलग और सुखद लगा।

3.साफ-सुथरे बिस्तर और खाना: बच्चे को सुधाकर काका का साफ-सुथरे बिस्तर पर लेटना और नानीजी द्वारा दी गई साबूदाने की खीर खाना बहुत आकर्षक लगा। उसने सोचा कि बीमार होने में “ठाठ” हैं, क्योंकि बीमार व्यक्ति को आराम और स्वादिष्ट खाना मिलता है।

4.क्यों अच्छी लगीं: बच्चे का यह पहला अस्पताल का अनुभव था, और वह इसे एक नई और रोमांचक जगह के रूप में देखता था। अस्पताल की स्वच्छता, शांति, और सुधाकर काका को मिलने वाला ध्यान और खाना (साबूदाने की खीर) उसे एक आदर्श और आरामदायक स्थिति लगी, जो स्कूल की जिम्मेदारियों और सजा से बचने का एक आकर्षक विकल्प प्रतीत हुआ।

(ख) कहानी के अंत में बच्चे को महसूस हुआ कि उसे स्कूल जाना चाहिए था। क्या आपको लगता है कि उसका निर्णय सही था? क्यों?

उत्तर: हाँ, बच्चे का यह महसूस करना कि उसे स्कूल जाना चाहिए था, एक सही निर्णय था। इसके निम्नलिखित कारण हैं:

1. बीमारी का बहाना उल्टा पड़ा: बच्चे ने सोचा था कि बीमारी का नाटक करके वह स्कूल की सजा से बच जाएगा और घर पर आराम और साबूदाने की खीर का आनंद लेगा। लेकिन इसके बजाय, उसे दिन भर भूखा रहना पड़ा, ऊबना पड़ा, और उसे कड़वी दवाइयाँ और काढ़ा पीना पड़ा। यह अनुभव उसे अपेक्षा से विपरीत और कष्टदायक लगा।

2.स्कूल में मजा और स्वतंत्रता: बच्चा बाद में सोचता है कि अगर वह स्कूल गया होता, तो उसे नमक-मिर्च वाले अमरूद खाने का मौका मिलता, दोस्तों के साथ समय बिताने का आनंद मिलता, और वह गली की चहल-पहल का हिस्सा बन पाता। स्कूल जाना उसे अधिक रोचक और सुखद लगने लगा।

3.झूठ के परिणाम: बच्चे को यह अहसास हुआ कि झूठ बोलकर बीमारी का बहाना बनाने से न केवल उसे शारीरिक और मानसिक कष्ट हुआ, बल्कि वह अपने दोस्तों और स्कूल की गतिविधियों से भी वंचित रह गया। उसने यह भी महसूस किया कि होमवर्क न करने की सजा स्कूल में सहन करना इस अकेलेपन और भूख से बेहतर होता।

क्यों सही था: बच्चे का यह निर्णय सही था क्योंकि यह उसके अनुभव से सीखने का परिणाम था। उसने जाना कि झूठ और बहाने बनाने से तात्कालिक लाभ की बजाय नुकसान हो सकता है। यह निर्णय उसे जिम्मेदारी और ईमानदारी की ओर ले जाता है, जो उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

(ग) जब बच्चा बीमार पड़ने का बहाना बनाकर बिस्तर पर लेटा रहा तो उसके मन में कौन-कौन से भाव आ रहे थे?

उत्तर: जब बच्चा बीमारी का बहाना बनाकर बिस्तर पर लेटा रहा, तो उसके मन में निम्नलिखित भाव उत्पन्न हुए:

1. उम्मीद (आशा): शुरू में बच्चे को उम्मीद थी कि उसे साबूदाने की खीर जैसा स्वादिष्ट खाना मिलेगा और वह आरामदायक समय बिताएगा, जैसा उसने सुधाकर काका को अस्पताल में देखा था। वह इस कल्पना में खोया रहा कि बीमारी में “ठाठ” हैं।

2.ऊब (बोरियत): दिन बढ़ने के साथ बच्चा बिस्तर पर लेटे-लेटे ऊबने लगा। उसे बाहर गली की चहल-पहल, चंदूभाई ड्राइक्लीनर, तेजराम की दुकान, और महेश घी वाले की गतिविधियों को देखने की तीव्र इच्छा हुई। “लेटे-लेटे पीठ दुखने लगी” से पता चलता है कि वह बोरियत और शारीरिक असहजता महसूस कर रहा था।

3.निराशा: जब उसे खाना नहीं मिला और नानीजी-नानाजी ने उसकी भूख की परवाह नहीं की, तो उसे निराशा हुई। वह सोचता है कि कोई उससे पूछे कि वह क्या खाएगा, लेकिन ऐसा न होने पर उसे अपनी योजना के गलत होने का अहसास हुआ।

4.क्रोध और जलन (ईर्ष्या): जब बच्चे ने मुन्नू को आम खाते देखा, तो उसे जलन और गुस्सा आया। वह सोचता है, “कैसे चूस रहा है। पूरी गुठली मुँह में ठूँसे। जैसे आम कभी देखे ही नहीं।” यह ईर्ष्या और गुस्सा उसकी भूख और अकेलेपन से और बढ़ गया।

5.पछतावा: दिन के अंत में बच्चे को पछतावा हुआ कि उसने बीमारी का बहाना बनाया। वह सोचता है कि स्कूल जाना बेहतर होता, जहाँ वह सजा सह लेता और दोस्तों के साथ मजे करता। वह अपने होमवर्क न करने और स्कूल न जाने के निर्णय पर दुखी और रुआँसा हो गया।

6.भय: बच्चे को यह डर भी था कि उसका झूठ पकड़ा जा सकता है। वह थर्मामीटर की माँग करता है, यह जानते हुए कि घर में कोई नहीं है जो इसे देखे, लेकिन उसे डर था कि उसका बहाना खुल न जाए।

7.भूख और लालसा: बच्चे को भूख लगी और वह खाने की चीजों (जैसे खस्ता कचौड़ी, मलाई की बर्फी, बेसन की चक्की, गोलगप्पे, और साबूदाने की खीर) के बारे में सोचता रहा। खाने की खुशबू (दाल-चावल, तली हुई हरी मिर्च, और आम) ने उसकी लालसा को और बढ़ा दिया।

8.निष्कर्ष: बच्चे के मन में उम्मीद, बोरियत, निराशा, क्रोध, जलन, पछतावा, भय, और भूख जैसे मिश्रित भाव आए, जो उसकी मासूमियत, बचपन की चंचलता, और गलत निर्णय के परिणामों को दर्शाते हैं।

(घ) कहानी में बच्चे ने सोचा था कि “ठाठ से साफ-सुथरे बिस्तर पर लेटे रहो और साबूदाने की खीर खाते रहो।” आपको क्या लगता है, असल में बीमार हो जाने और इस बच्चे की सोच में कौन-कौन सी समानताएँ और अंतर होंगे?

उत्तर:

समानताएँ:

1. आराम करने का अवसर: बच्चे की सोच और वास्तविक बीमारी में यह समानता है कि बीमार व्यक्ति को बिस्तर पर लेटकर आराम करने का मौका मिलता है। जैसे सुधाकर काका अस्पताल में साफ बिस्तर पर लेटे थे, वास्तव में भी बीमार व्यक्ति को आराम की सलाह दी जाती है।

2.विशेष खाना: बच्चे ने सोचा कि बीमारी में साबूदाने की खीर जैसे स्वादिष्ट खाने मिलते हैं। वास्तव में भी, बीमार व्यक्ति को हल्का और पौष्टिक भोजन (जैसे खिचड़ी, सूप, या साबूदाने की खीर) दिया जाता है, जो आसानी से पच सके।

3.देखभाल: बच्चे ने देखा कि सुधाकर काका को नानीजी और नर्स की देखभाल मिल रही थी। असल में भी, बीमार व्यक्ति को परिवार या चिकित्सकों से विशेष ध्यान और देखभाल मिलती है।

अंतर:

1. शारीरिक और मानसिक कष्ट: बच्चे ने बीमारी को आरामदायक और आनंददायक स्थिति समझा, लेकिन असल में बीमारी में शारीरिक दर्द, कमजोरी, और मानसिक तनाव हो सकता है, जो बच्चे की कल्पना में नहीं था।

2. स्वतंत्रता की कमी: बच्चे को लगता था कि बीमार होने में “ठाठ” हैं, लेकिन वास्तव में बीमारी व्यक्ति को बिस्तर तक सीमित कर देती है, और वह अपनी इच्छाएँ (जैसे बाहर खेलना, दोस्तों से मिलना) पूरी नहीं कर सकता। बच्चा स्वयं बिस्तर पर लेटकर ऊब गया था।

3.खाने की वास्तविकता: बच्चे ने सोचा कि उसे साबूदाने की खीर जैसे स्वादिष्ट खाने मिलेंगे, लेकिन असल में बीमार व्यक्ति को सख्त आहार प्रतिबंधों का पालन करना पड़ सकता है। बच्चे को खुद भूखा रहना पड़ा, क्योंकि नानाजी ने खाना न देने की सलाह दी थी।

4.झूठ बनाम वास्तविक बीमारी: बच्चे का बीमार होना एक बहाना था, जिसमें उसने सोचा कि वह मजे करेगा। लेकिन वास्तविक बीमारी में व्यक्ति को मजा नहीं, बल्कि असुविधा और परेशानी का सामना करना पड़ता है। बच्चे का अनुभव उसे यह सिखाता है कि उसकी कल्पना वास्तविकता से बहुत अलग थी।

5.दवाइयों का अनुभव: बच्चे ने दवाइयों और काढ़े को नजरअंदाज किया था, लेकिन उसे कड़वी दवाइयाँ और काढ़ा पीना पड़ा, जो वास्तविक बीमारी में भी आम है और आमतौर पर अप्रिय होता है।

निष्कर्ष: बच्चे की कल्पना बीमारी को एक आरामदायक और स्वादिष्ट अनुभव के रूप में देखती थी, लेकिन वास्तविकता में बीमारी कष्टदायक और सीमित करने वाली होती है। उसकी मासूम सोच ने बीमारी के सकारात्मक पहलुओं को बढ़ा-चढ़ाकर देखा, जबकि नकारात्मक पहलुओं (जैसे भूख, दवाइयाँ, और बोरियत) को अनदेखा किया।

(ङ) नानीजी और नानाजी ने बच्चे को बीमारी की दवा दी और उसे आराम करने को कहा। बच्चे को खाना नहीं दिया गया। क्या आपको लगता है कि उन्होंने सही किया? आपको ऐसा क्यों लगता है?

उत्तर: नानीजी और नानाजी ने बच्चे को दवा देकर और खाना न देकर जो किया, वह उस स्थिति में आंशिक रूप से सही था, लेकिन पूरी तरह उचित नहीं कहा जा सकता।

क्यों सही था:

1. बीमारी पर विश्वास: नानीजी और नानाजी ने बच्चे की बात (सिरदर्द, पेट दर्द, और बुखार) पर विश्वास किया और उसकी देखभाल करने की कोशिश की। नानाजी ने उसका माथा छूकर, पेट देखकर, और नब्ज़ जांचकर उसकी स्थिति का आकलन किया, जो एक जिम्मेदार देखभाल का हिस्सा है।

2. दवा और आराम: उन्होंने बच्चे को दवा (पुड़िया) और काढ़ा दिया, जो बीमारी के लक्षणों को ठीक करने के लिए सामान्य उपाय हैं। आराम करने की सलाह भी बीमारी में उचित होती है, क्योंकि यह शरीर को ठीक होने में मदद करता है।

3. पारंपरिक धारणा: नानाजी का यह कहना कि “भूखे रहने से सारे विकार निकल जाएँगे” एक पारंपरिक धारणा को दर्शाता है, जो कुछ बीमारियों (विशेष रूप से पेट से संबंधित) में हल्का भोजन या उपवास की सलाह देती है। यह उस समय के हिसाब से सामान्य प्रथा हो सकती थी।

क्यों पूरी तरह सही नहीं था:

1. बच्चे की ज़रूरतों की अनदेखी: बच्चे को दिन भर भूखा रखना और उसकी भूख की शिकायत को अनसुना करना उचित नहीं था, खासकर जब वह बच्चा है और भूख उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति को प्रभावित कर सकती है। उसे हल्का भोजन (जैसे साबूदाने की खीर या फल) देना बेहतर होता।

2. झूठ का संदेह: नानाजी को बच्चे की बीमारी पर संदेह था (“बुखार तो नहीं है”), लेकिन उन्होंने थर्मामीटर से जाँच नहीं की (क्योंकि वह उपलब्ध नहीं था)। फिर भी, उन्होंने बच्चे की बात को गंभीरता से लिया, लेकिन उसकी भूख और ऊब को नजरअंदाज किया, जो बच्चे के लिए कष्टदायक रहा।

3. बच्चे की मानसिक स्थिति: बच्चा पहले से ही ऊब और निराशा में था, और भूख ने उसकी परेशानी को बढ़ा दिया। नानीजी और नानाजी ने उसका मनोबल बढ़ाने या उसका ध्यान बँटाने की कोशिश नहीं की, जो बच्चे की देखभाल में महत्वपूर्ण हो सकता था।

मेरा विचार: नानीजी और नानाजी का इरादा बच्चे की देखभाल करना था, और उनकी पारंपरिक सोच के आधार पर उन्होंने वही किया जो उन्हें सही लगा। हालांकि, बच्चे की भूख और भावनात्मक स्थिति पर अधिक ध्यान देना चाहिए था। एक हल्का भोजन देना और उससे बातचीत करके उसकी ऊब कम करने की कोशिश करना बेहतर होता। बच्चे की उम्र और उसकी मासूमियत को देखते हुए, उनकी सख्ती (खाना न देना) ने बच्चे को और परेशान किया, जिससे उसे अपनी गलती का अहसास तो हुआ, लेकिन यह अनुभव उसके लिए अनावश्यक रूप से कठिन हो गया।


अनुमान और कल्पना से

(क) कहानी के अंत में बच्चा नानाजी और नानीजी को सब कुछ सच-सच बताने का निर्णय कर लेता तो कहानी में आगे क्या होता?

उत्तर: यदि बच्चा नानाजी और नानीजी को सच बता देता कि उसने बीमारी का बहाना बनाया था ताकि स्कूल न जाना पड़े, तो कहानी में निम्नलिखित घटनाएँ हो सकती थीं:

1. नानाजी और नानीजी की प्रतिक्रिया: नानाजी और नानीजी पहले तो बच्चे के झूठ पर नाराज़ हो सकते थे, लेकिन उनकी देखभाल करने वाली प्रकृति को देखते हुए, वे उसे प्यार से समझाते। नानीजी शायद हल्की डाँट के साथ कहतीं, “झूठ बोलना अच्छी बात नहीं है, बेटा। अगर होमवर्क नहीं किया, तो सच बोलकर देखते, हम कुछ रास्ता निकालते।” नानाजी उसे यह सलाह दे सकते थे कि जिम्मेदारियों से भागने के बजाय उनका सामना करना चाहिए।

2. दिन का बदलना: सच बताने के बाद बच्चे को भूखा नहीं रहना पड़ता। नानीजी उसे साबूदाने की खीर या हल्का भोजन (जैसे दाल-चावल या फल) दे सकती थीं, जिससे उसकी भूख मिटती और वह खुश महसूस करता। बच्चा बिस्तर पर लेटे रहने की मजबूरी से मुक्त हो जाता और शायद नानीजी उसे घर में कुछ हल्का काम (जैसे किताबें व्यवस्थित करना) या खेलने की इजाज़त देतीं, जिससे उसकी ऊब कम होती।

3. सोच और अनुभव में बदलाव: सच बोलने से बच्चे को राहत मिलती और उसका मन हल्का हो जाता। उसे यह अहसास होता कि झूठ बोलने से ज्यादा अच्छा है सच बोलना, क्योंकि इससे न केवल परेशानी कम होती है, बल्कि परिवार का विश्वास भी मिलता है। वह नानाजी और नानीजी की सलाह से प्रेरित होकर भविष्य में होमवर्क समय पर करने और स्कूल जाने का संकल्प लेता। उसका अनुभव सकारात्मक हो जाता, और वह अपनी गलती से सीखता कि ईमानदारी सबसे अच्छा रास्ता है।

4. दिन का अंत: बच्चा शायद शाम को दोस्तों के साथ गली में खेलने जाता और स्कूल न जाने के पछतावे से मुक्त हो जाता। उसका दिन मस्ती और सीख से भरा होता, और वह रात को खुशी-खुशी सोता, यह सोचकर कि अगले दिन वह स्कूल जाएगा और होमवर्क पूरा करेगा।

 निष्कर्ष: सच बोलने से बच्चे का दिन अधिक सुखद और शिक्षाप्रद हो जाता। उसकी सोच में परिपक्वता आती, और वह झूठ के बजाय सच बोलने का महत्व समझता।

(ख) कहानी में बच्चे की नानीजी के स्थान पर आप हैं। आप सारे नाटक को समझ गए हैं लेकिन चाहते हैं कि बच्चा सारी बात आपको स्वयं बता दे। अब आप क्या करेंगे?

उत्तर: नानीजी की जगह पर मैं एक मनोरंजक और प्यार भरी योजना बनाता ताकि बच्चा बिना डर के सच बोल दे:

1. प्यार से बातचीत शुरू करना: मैं बच्चे के पास बैठता और उससे प्यार से पूछता, “बेटा, तुझे आज स्कूल में क्या-क्या मज़ा आता है? कोई दोस्त की बात बता, या कोई खेल?” इससे बच्चा सहज महसूस करता और स्कूल की बातें सोचने लगता। फिर मैं धीरे से कहता, “आज तो तू बीमार था, लेकिन स्कूल में शायद कुछ मज़ेदार हुआ होगा, ना? तुझे जाना चाहिए था कि नहीं?”

2.साबूदाने की खीर का लालच: मैं बच्चे को कहता, “मैं साबूदाने की खीर बनाने जा रही हूँ। अगर तू मुझे सच-सच बताए कि तुझे क्या परेशान कर रहा है, तो तुझे सबसे पहले खीर दूँगी!” बच्चा, जो खीर के लिए तरस रहा था, इस लालच में शायद सच बोल देता।

3.हल्का मज़ाक और कहानी: मैं बच्चे को एक छोटी कहानी सुनाता, जैसे, “जब मैं छोटी थी, मैंने भी एक बार स्कूल न जाने के लिए बहाना बनाया था, लेकिन बाद में मुझे बहुत पछतावा हुआ। तूने कभी ऐसा किया है?” यह कहकर मैं बच्चे को अपनी बात कहने के लिए प्रोत्साहित करता, बिना उसे डाँटे।

4. विश्वास का माहौल बनाना: मैं बच्चे को आश्वासन देता कि सच बोलने से कोई डाँट नहीं पड़ेगी। उदाहरण के लिए, “बेटा, अगर कुछ गलती हुई हो, तो बता दे। हम सब गलतियाँ करते हैं, लेकिन सच बोलने से सब ठीक हो जाता है।” इससे बच्चे का डर कम होता और वह सच बोलने को तैयार होता।

5. खेल-खेल में सवाल: मैं बच्चे से कहता, “चल, एक खेल खेलते हैं। तू मुझे तीन बातें बता-एक सच, एक झूठ, और एक मज़ेदार। फिर मैं अनुमान लगाऊँगी कि कौन सी सच है!” इस खेल में बच्चा मज़े-मज़े में अपनी बीमारी का बहाना सच बोल देता।

निष्कर्ष: यह योजना बच्चे को डराए बिना, प्यार और मज़े के साथ सच बोलने के लिए प्रेरित करती। खीर का लालच और कहानी या खेल का उपयोग बच्चे की मासूमियत को ध्यान में रखते हुए उसे सहज बनाता, और वह स्वयं अपनी गलती स्वीकार कर लेता।

(ग) कहानी में बच्चे के स्थान पर आप हैं और घर में अकेले हैं। अब आप ऊबने से बचने के लिए क्या-क्या करेंगे?

उत्तर: यदि मैं बच्चे की जगह होता और घर में अकेला होता, तो ऊबने से बचने के लिए निम्नलिखित चीजें करता:

1. किताबें पढ़ना: मैं घर में उपलब्ध कहानी की किताबें या कॉमिक्स (जैसे चाचा चौधरी या पंचतंत्र की कहानियाँ) पढ़ता। इससे मेरा मनोरंजन होता और समय कट जाता।

2. चित्र बनाना या रंग भरना: मैं कागज़ और पेंसिल लेकर गली की चहल-पहल, जैसे चंदूभाई ड्राइक्लीनर की दुकान या तेजराम की दुकान का चित्र बनाता। अगर रंग उपलब्ध होते, तो उनसे चित्रों में रंग भरता।

3.खुद से खेल खेलना: मैं अकेले खेलने के लिए कुछ आविष्कार करता, जैसे कागज़ के हवाई जहाज़ बनाना और उन्हें उड़ाना, या घर की छोटी-छोटी चीजों (जैसे बटन या सिक्कों) से कोई खेल बनाना।

4. सपनों की दुनिया में खोना: मैं बिस्तर पर लेटकर कल्पना करता कि मैं एक सुपरहीरो हूँ या किसी जंगल में साहसिक यात्रा पर हूँ। इससे मेरी ऊब कम होती और मैं मज़ेदार कहानियाँ बनाता।

5. घर की छोटी खोज: मैं बिस्तर से उठकर घर में कुछ खोजबीन करता, जैसे पुरानी किताबें, नानीजी की अलमारी में छिपे पुराने खिलौने, या कोई दिलचस्प चीज जो मुझे नई लगे।

6.खाने की तलाश: अगर भूख लगती, तो मैं रसोई में चुपके से कुछ हल्का खाना (जैसे बिस्किट या फल) ढूँढता, बशर्ते नानीजी की इजाज़त हो।

7. खिड़की से बाहर देखना: मैं खिड़की के पास बैठकर गली की गतिविधियाँ देखता, जैसे चिड़ियों को तारों पर बैठते हुए गिनता या तेजराम की दुकान पर आने-जाने वालों को देखता।

निष्कर्ष: ये गतिविधियाँ मेरी ऊब को दूर करतीं और दिन को मज़ेदार बनातीं। मैं अपनी रचनात्मकता और कल्पना का उपयोग करके समय का सदुपयोग करता, बिना नानाजी-नानीजी को परेशान किए।

(घ) कहानी के अंत में बच्चे को लगा कि उसे स्कूल जाना चाहिए था। कल्पना कीजिए, अगर वह स्कूल जाता तो उसका दिन कैसा होता? अगले दिन जब वह स्कूल गया होगा तो उसने क्या-क्या किया होगा?

उत्तर:

अगर बच्चा स्कूल जाता, तो उसका दिन कैसा होता:

1. स्कूल का मज़ा: बच्चा स्कूल में अपने दोस्तों के साथ मस्ती करता। वह शायद सुबह की प्रार्थना सभा में गाना गाता, और कक्षा में अपने दोस्तों के साथ हँसी-मज़ाक करता। होमवर्क न करने की सजा शायद उसे मिलती, जैसे कुछ देर बाहर खड़े रहना या अतिरिक्त काम करना, लेकिन वह इसे हल्के में लेता और दोस्तों के साथ हँसता।

2.खाने का आनंद: दोपहर के समय वह अपने दोस्तों के साथ टिफिन शेयर करता और स्कूल के बाहर ठेले पर नमक-मिर्च वाले अमरूद खाता, जैसा कि उसने सोचा था। यह उसे बहुत मज़ेदार लगता और वह भूखा नहीं रहता।

3.खेल और गतिविधियाँ: स्कूल में खेल के समय वह अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट या कबड्डी खेलता। वह गली की चहल-पहल की तरह स्कूल के मैदान में दौड़ता और मस्ती करता, जिससे उसका दिन ऊर्जा और उत्साह से भरा होता।

4. सीख और अनुभव: कक्षा में वह कुछ नया सीखता, जैसे कोई नई कहानी या गणित का सवाल। सजा के बावजूद, वह स्कूल की गतिविधियों में हिस्सा लेता और अपने शिक्षकों से कुछ नया सीखता। दिन के अंत में वह खुश और संतुष्ट महसूस करता।

अगले दिन स्कूल में क्या-क्या किया होगा:

1. होमवर्क पूरा करना: बच्चे ने पिछले दिन की गलती से सीख लिया था, इसलिए वह अगले दिन होमवर्क पूरा करके स्कूल गया होगा। इससे वह सजा से बचा और आत्मविश्वास से भरा रहा।

2.दोस्तों को अनुभव बताना: वह अपने दोस्तों को हँसते हुए बताया होगा कि कैसे उसने बीमारी का बहाना बनाया और भूखा रह गया। यह कहानी दोस्तों के बीच हँसी-मज़ाक का कारण बनी होगी।

3.स्कूल की गतिविधियों में हिस्सा लेना: वह कक्षा में ध्यान से पढ़ाई करता, और खेल के समय दोस्तों के साथ और मज़े करता। शायद वह शिक्षक से होमवर्क की कॉपी माँगकर पिछले दिन का काम पूरा करता।

4.खाने का आनंद: वह अपने टिफिन में नानीजी द्वारा दी गई खीर या कोई और स्वादिष्ट चीज़ लाता और दोस्तों के साथ बाँटता। स्कूल के बाहर वह फिर से अमरूद या कोई और नाश्ता खाता।

5. सीख का प्रभाव: बच्चा स्कूल में अधिक जिम्मेदार और उत्साही रहता। वह समझ गया था कि स्कूल जाना और अपनी जिम्मेदारियाँ निभाना ज़्यादा मज़ेदार और फायदेमंद है।

निष्कर्ष: स्कूल जाने से बच्चे का दिन मज़ेदार, सामाजिक, और शिक्षाप्रद होता। अगले दिन वह अपनी गलती से सीखकर अधिक जिम्मेदारी और उत्साह के साथ स्कूल जाता, जिससे उसका अनुभव सकारात्मक रहता।

(ङ) कहानी में नानाजी और नानीजी ने बच्चे की बीमारी ठीक करने के लिए उसे दवाई दी और खाने के लिए कुछ नहीं दिया। अगर आप नानीजी या नानाजी की जगह होते तो क्या-क्या करते?

उत्तर: नानीजी या नानाजी की जगह मैं बच्चे की देखभाल इस तरह करता ताकि वह स्वस्थ और खुश रहे, साथ ही उसका झूठ भी सामने आ सके:

1. सावधानी से जाँच: मैं बच्चे का माथा, नब्ज़, और पेट जाँचता, और अगर थर्मामीटर उपलब्ध होता, तो उससे बुखार जाँचता। अगर मुझे संदेह होता कि बच्चा बहाना बना रहा है, तो मैं उससे प्यार से सवाल करता, जैसे, “बेटा, सच बताओ, स्कूल में कुछ हुआ है क्या?”

2.हल्का भोजन देना: भले ही बच्चा बीमार होता, मैं उसे पूरी तरह भूखा नहीं रखता। मैं उसे हल्का और पौष्टिक भोजन, जैसे साबूदाने की खीर, सूप, या फल, देता ताकि उसकी भूख मिटे और वह कमज़ोर न महसूस करे। मैं नर्स की तरह पहले यह सुनिश्चित करता कि खाना देना सुरक्षित है।

3.बच्चे का मन बहलाना: ऊब से बचाने के लिए मैं बच्चे से बातचीत करता, उसे कहानियाँ सुनाता, या कोई छोटा खेल खेलने को कहता, जैसे पहेलियाँ बुझाना। मैं उसे बिस्तर पर ही कोई किताब पढ़ने को देता या रेडियो पर गाने सुनने की इजाज़त देता।

4.झूठ पकड़ने की कोशिश: मैं बच्चे को सच बोलने के लिए प्रोत्साहित करता, जैसे कहता, “अगर तू सच बताएगा, तो मैं तुझे कुछ खास बनाऊँगा।” मैं उसे डाँटने के बजाय यह विश्वास दिलाता कि सच बोलने से कोई सजा नहीं मिलेगी।

5.शिक्षा और प्रेम: अगर बच्चा सच बोल देता कि उसने बहाना बनाया, तो मैं उसे प्यार से समझाता कि होमवर्क न करने की सजा से डरने की ज़रूरत नहीं है। मैं उसे अगले दिन होमवर्क पूरा करने में मदद करने का वादा करता और कहता कि स्कूल जाना मज़ेदार है।

6. स्वास्थ्य पर ध्यान: अगर बच्चा वाकई बीमार होता, तो मैं उसे दवा और काढ़ा देता, लेकिन साथ ही उसका मनोबल बढ़ाने के लिए उससे बात करता और उसे बताता कि जल्दी ठीक होने के लिए क्या करना चाहिए। मैं उसे थोड़ा बाहर की हवा लेने की इजाज़त भी देता, अगर वह बेहतर महसूस करता।

निष्कर्ष: मैं बच्चे की शारीरिक और भावनात्मक ज़रूरतों का ध्यान रखता, उसे प्यार और समझदारी से सच बोलने के लिए प्रोत्साहित करता, और उसकी ऊब और भूख को कम करने की कोशिश करता। इससे बच्चा न केवल स्वस्थ रहता, बल्कि अपनी गलती से भी सीखता।


कहानी की रचना

(क) इस पाठ को एक बार फिर से पढ़िए और अपने समूह में मिलकर इस पाठ की अन्य विशेषताओं की सूची बनाइए। अपने समूह की सूची को कक्षा में सबके साथ साझा कीजिए।

उत्तर: लेखक स्वयं प्रकाश ने कहानी “नहीं होना बीमार” को रोचक और सरस बनाने के लिए कई साहित्यिक और कथात्मक विशेषताओं का उपयोग किया है। निम्नलिखित विशेषताओं की सूची इस कहानी की रचनात्मकता और आकर्षण को दर्शाती है:

1. चित्रात्मक भाषा (वर्णनात्मक शैली): लेखक ने अस्पताल, घर, और गली के दृश्यों का विस्तृत और जीवंत वर्णन किया है, जिससे पाठक के सामने दृश्य जीवंत हो उठते हैं। उदाहरण: “बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पास हरे-हरे पेड़ झूम रहे थे। न ट्रैफिक का शोरगुल, न धूल, न मच्छर-मक्खी…। सिर्फ लोगों के धीरे-धीरे बातचीत करने की धीमी-धीमी गुनगुन।”

2. बच्चे की मासूम नजरिया: कहानी बच्चे के दृष्टिकोण से लिखी गई है, जो उसकी नादानी, उत्सुकता, और कल्पनाशीलता को उजागर करती है। यह पाठक को बच्चे के मनोभावों से जोड़ता है। उदाहरण: बच्चे का यह सोचना कि बीमारी में “ठाठ” हैं क्योंकि साफ बिस्तर और साबूदाने की खीर मिलती है।

3.हास्य और व्यंग्य: लेखक ने बच्चे की मासूम सोच और उसके गलत निर्णयों के परिणामों को हास्यपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है, जो कहानी को मनोरंजक बनाता है। उदाहरण: “कोई ताजमहल तो नहीं माँग लेता। लेकिन नहीं! भूखे रहो!! इससे सारे विकार निकल जाएँगे।”

4.बच्चे की आंतरिक बातचीत (मनन): बच्चे के मन में चलने वाली बातें और स्वयं से संवाद कहानी को गहराई देते हैं। यह पाठक को बच्चे की भावनाओं और विचारों से जोड़ता है। उदाहरण: बच्चे का गली की चहल-पहल और खाने की चीजों के बारे में सोचना।

5.वास्तविकता और कल्पना का मिश्रण: लेखक ने बच्चे की कल्पना (जैसे बीमारी में मज़े करना) और वास्तविकता (भूख और ऊब) के बीच अंतर को प्रभावी ढंग से दिखाया है, जो कहानी को शिक्षाप्रद बनाता है। उदाहरण: बच्चे की露

6.जीवन से जुड़े अनुभव: कहानी में बच्चे के रोज़मर्रा के अनुभव, जैसे स्कूल न जाना, होमवर्क, और गली की गतिविधियाँ, पाठक को अपने बचपन से जोड़ते हैं। यह कहानी को प्रासंगिक और सार्वभौमिक बनाता है।

7.संवादों का स्वाभाविक उपयोग: कहानी में संवाद, जैसे नानीजी और नानाजी के साथ बच्चे की बातचीत, सरल और स्वाभाविक हैं, जो पात्रों को जीवंत बनाते हैं। उदाहरण: “बुखार आ गया।” मैने कराहते हुए कहा।

8.नैतिक शिक्षा: कहानी हल्के-फुल्के अंदाज़ में यह सिखाती है कि झूठ और बहाने बनाने से नुकसान हो सकता है, और ईमानदारी व जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण: बच्चे का अंत में पछतावा कि स्कूल जाना चाहिए था।

साझा करने के लिए: यह सूची कक्षा में साझा करने पर बच्चों को लेखन की तकनीकों और कहानी की रोचकता को समझने में मदद करेगी। यह सूची लेखक की रचनात्मकता और बच्चे की मासूमियत को रेखांकित करती है, जो कहानी को मनोरंजक और शिक्षाप्रद बनाती है।

(ख) कहानी में से निम्नलिखित के लिए उदाहरण खोजकर लिखिए:

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उत्तर:-

विशेष बिंदुकहानी में से उदाहरण
बच्चे द्वारा पिछली बातों को याद किया जाना“क्या ठाठ हैं बीमारों के की। मैंने सोचा… ठाठ से साफ-सुथरे बिस्तर पर लेटे रहो और साबुदाने की खीर खाते रहो।” (पेज 2) बच्चा सुधाकर काका के अस्पताल के अनुभव को याद करता है और उसे आकर्षक मानता है।
हास्य यानी हँसी-मजाक का उपयोग किया जाना“देखो! उन्होंने एक बार भी आकर नहीं पूछा कि तू क्या खाएगा? पूछते तो मैं साबुदाने की खीर ही तो माँगता। कोई ताजमहल तो नहीं माँग लेता।” (पेज 8) बच्चे का अतिशयोक्तिपूर्ण और मासूम अंदाज़ हास्य पैदा करता है।
बच्चे द्वारा सोचने के तरीके में बदलाव आना“क्या मुसीबत है। पड़े रहो! आखिर कब तक कोई पड़ा रह सकता है? इससे तो स्कूल चला जाता तो ही ठीक रहता।” (पेज 6) बच्चा शुरू में बीमारी को मज़ेदार समझता है, लेकिन बाद में उसे स्कूल जाना बेहतर लगता है।
कहानी में किसी का किसी बात से अनजान होना“बुखार तो नहीं है।” नानाजी बोले। (पेज 4) नानाजी को बच्चे के झूठे बहाने का पता नहीं है, और वे उसकी बीमारी को गंभीरता से लेते हैं।
बच्चे द्वारा स्वयं से बातें किया जाना“मुझे बड़ी तेज इच्छा हुई कि इसी समय बाहर निकलकर दिन की रोशनी में अपनी गली की चहल-पहल देखू। देखा जाए कि चंदूभाई ड्राइक्लीनर क्या कर रहे हैं? तेजराम की दुकान पर कितने ग्राहक बैठे हैं?” (पेज 5) बच्चा अकेले लेटे-लेटे अपने मन में गली की गतिविधियों के बारे में सोचता है।

विश्लेषण:

पिछली बातों को याद करना: बच्चा सुधाकर काका के अस्पताल अनुभव को याद करता है, जो उसकी बीमारी के बहाने का आधार बनता है। यह उसकी मासूम कल्पना को दर्शाता है।

  • हास्य का उपयोग: बच्चे की अतिशयोक्ति और नादानी (जैसे ताजमहल वाला कथन) पाठक को हँसाती है और कहानी को हल्का-फुल्का बनाती है।
  • सोच में बदलाव: बच्चे की सोच शुरू में बीमारी को मज़ेदार मानती है, लेकिन भूख और ऊब के बाद वह स्कूल को बेहतर समझता है, जो उसकी परिपक्वता को दिखाता है।
  • अनजान होना: नानाजी और नानीजी का बच्चे के झूठ से अनजान रहना कहानी में तनाव और हास्य पैदा करता है।
  • स्वयं से बातें: बच्चे का अकेले में गली, खाने, और स्कूल के बारे में सोचना उसकी चंचल और जिज्ञासु प्रकृति को दर्शाता है, जो कहानी को जीवंत बनाता है।

समस्या और समाधान

(क) बच्चे के सामने क्या समस्या थी? उसने उस समस्या का क्या समाधान निकाला?

समस्या: बच्चे का स्कूल जाने का मन नहीं था क्योंकि उसने होमवर्क नहीं किया था, और उसे डर था कि स्कूल में सजा मिलेगी। (“कुछ रोज बाद एक दिन मेरा स्कूल जाने का मन नहीं किया। मैंने होमवर्क नहीं किया था। स्कूल जाता तो जरूर सजा मिलती।”)

समाधान: बच्चे ने स्कूल से छुट्टी लेने के लिए बीमारी का बहाना बनाया। उसने नानीजी से कहा कि उसे सिरदर्द, पेट दर्द, और बुखार है, ताकि उसे स्कूल न जाना पड़े और वह घर पर रहकर आराम कर सके। (“मैंने सोचा बीमार पड़ने के लिए आज का दिन बिलकुल ठीक रहेगा। चलो बीमार पड़ जाते हैं।” और “मेरे सिर में दर्द हो रहा है। पेट भी दुख रहा है और मुझे बुखार भी है।”)

(ख) नानीजी-नानाजी के सामने क्या समस्या थी? उन्होंने उस समस्या का क्या समाधान निकाला?

समस्या: नानीजी और नानाजी के सामने यह समस्या थी कि बच्चा बीमार होने का दावा कर रहा था, और उन्हें यह सुनिश्चित करना था कि वह वास्तव में बीमार है या नहीं, साथ ही उसकी देखभाल करनी थी। (“नानीजी उठाने आई तो मैंने कहा, ‘मैं आज बीमार हूँ।'” और “नानीजी भी आ गई। ‘क्या हुआ?’, नानीजी ने पूछा।”)

समाधान: नानीजी और नानाजी ने बच्चे की बात पर भरोसा किया और उसकी देखभाल शुरू की। नानाजी ने बच्चे का माथा छूकर, पेट देखकर, और नब्ज़ जांचकर उसकी स्थिति का आकलन किया। उन्होंने बच्चे को दवा (पुड़िया) और काढ़े जैसी चाय दी, और उसे खाना न देकर आराम करने की सलाह दी। (“नानाजी ने रजाई हटाकर मेरा माथा छुआ। पेट देखा और नब्ज़ देखने लगे।” और “ले, पुड़िया खा ले।” … “आज इसे कुछ खाने को मत देना। आराम करने दो। शाम को देखेंगे।”) इस तरह, उन्होंने बच्चे की कथित बीमारी का इलाज करने और उसे ठीक करने की कोशिश की, यह मानते हुए कि भूखे रहने से उसके शरीर के विकार निकल जाएंगे।


शब्द से जुड़े शब्द

नीचे दिए गए स्थानों में ‘बीमार’ से जुड़े शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए- Capture3

उत्तर:-

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खोजबीन

(क) कहानी में सर्दी के मौसम की घटनाएँ बताई गई हैं।

  • “लेकिन मुन्नू भूखा चूस रहा था। आम! इस मौसम में। जरूर बंबई वाले चाचाजी ने भेजे होंगे।” यह वाक्य सर्दी के मौसम की ओर इशारा करता है, क्योंकि आम आमतौर पर गर्मी के मौसम में होते हैं, और बच्चे का आश्चर्य (“इस मौसम में”) यह दर्शाता है कि यह सर्दी का समय है, जब आम असामान्य हैं।

(ख) बच्चे को बहाना बनाने के परिणाम का आभास हो गया।

  • “इसके बाद स्कूल से छुट्टी मारने के लिए मैंने बीमारी का बहाना कभी नहीं बनाया।” यह वाक्य दर्शाता है कि बच्चे को अपने बहाने के नकारात्मक परिणाम (भूखा रहना, ऊबना, और स्कूल की मस्ती से वंचित रहना) का आभास हो गया, जिसके कारण उसने भविष्य में ऐसा न करने का निर्णय लिया।
  • “क्या मुसीबत है। पड़े रहो! आखिर कब तक कोई पड़ा रह सकता है? इससे तो स्कूल चला जाता तो ही ठीक रहता। सजा मिली तो मिल जाती।” यह वाक्य दिखाता है कि बच्चे को अपने बहाने के परिणाम का एहसास हो रहा है, क्योंकि उसे बिस्तर पर पड़े रहने से ऊब और परेशानी हो रही है, और वह सोचता है कि स्कूल जाना बेहतर होता।

(ग) बच्चे को खाना-पीना बहुत प्रिय है।

  • “आज क्या खाना बना होगा? खुशबू तो दाल-चावल की आ रही है। अरहर की दाल में हींग-जीरे का बघार और ऊपर से बारीक कटा हरा धनिया और आधा चम्मच देसी घी। फिर उसमें उन्होंने नींबू निचोड़ा होगा।” यह वाक्य बच्चे की खाने के प्रति रुचि को दर्शाता है, क्योंकि वह भूखा होने के बावजूद खाने की खुशबू और स्वाद का विस्तार से वर्णन करता है।
  • “लेकिन भूख के कारण ठीक से नींद भी नहीं आ रही थी। और आँख जरा लगती की तो खाने ही खाने की चीजें दिखाई देतीं। गरमागरम खस्ता कचौड़ी… माँ की बर्फी… बेसन की चक्की… गोलगप्पे। और सबसे ऊपर साबुदाने की खीर।” यह वाक्य बच्चे की खाने के प्रति गहरी चाह को दिखाता है, क्योंकि वह भूखा होने पर विभिन्न व्यंजनों की कल्पना करता है।

(घ) बच्चे को स्कूल जाना अच्छा लगता है।

  • “कितना मजा आता जब ठेले पर जाकर नमक-मिर्च लगे अमरूद खाते कटर-कटर।” यह वाक्य दर्शाता है कि बच्चे को स्कूल जाने में मजा आता है, क्योंकि वह स्कूल के आसपास ठेले पर अमरूद खाने की मस्ती को याद करता है, जो स्कूल जाने से जुड़ा है।
  • “सारे बच्चे हल्ला मचाते हुए आंगन में खेल रहे होंगे और मैं बिस्तर में पड़ा झख मार रहा हूँगा। अक्लमंद! और बनें बीमार।” यह वाक्य दिखाता है कि बच्चे को स्कूल जाना पसंद है, क्योंकि वह स्कूल के दोस्तों के साथ खेलने की मस्ती को याद करता है और बीमारी का बहाना बनाने पर पछताता है।

चेहरों पर मुस्कान, मुँह में पानी

(क) इस कहानी में अनेक रोचक घटनाएँ हैं जिन्हें पढ़कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। इस कहानी में किन बातों को पढ़कर आपके चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी? उन्हें रेखांकित कीजिए।

निम्नलिखित वाक्य और घटनाएँ पढ़कर चेहरे पर मुस्कान आ सकती है, क्योंकि ये हास्यपूर्ण, मासूम, या बच्चे की नादानी को दर्शाते हैं:

  • “क्या ठाठ हैं बीमारों के की। मैंने सोचा… ठाठ से साफ-सुथरे बिस्तर पर लेटे रहो और साबुदाने की खीर खाते रहो। काश सुधाकर काका की जगह मैं होता। मैं कब बीमार पड़ेगा।” यह वाक्य हास्यपूर्ण है क्योंकि बच्चा बीमारी को एक शानदार अनुभव समझता है, जिसमें उसे साबुदाने की खीर और आराम मिलेगा, जो उसकी मासूम सोच को दर्शाता है।
  • “मुझे पता था घर में कोई नहीं है। थर्मामीटर लगा भी लिया तो देखेगा कौन? पर खुद को बीमार साबित करने के लिए यह चाल अच्छी थी।” बच्चे की यह चालाकी और उसका खुद से बात करना मुस्कान लाता है, क्योंकि वह अपनी योजना को लेकर बहुत गंभीर है, लेकिन उसकी मासूमियत साफ झलकती है।
  • “लेकिन मुन्नू भूखा चूस रहा था। आम! इस मौसम में। जरूर बंबई वाले चाचाजी ने भेजे होंगे। कैसे चूस रहा है। पूरी गुठली मुँह में ठूँसे। जैसे आम कभी देखे न हों। भुक्कड़ कहीं का। पूरा हाथ औ’ साला रहा है।” यह वर्णन हास्यपूर्ण है, क्योंकि बच्चा मुन्नू को आम खाते हुए देखकर जलन के साथ-साथ उसकी हरकतों का मज़ेदार वर्णन करता है, जैसे “भुक्कड़ कहीं का” और “पूरा हाथ औ’ साला रहा है,” जो एक मज़ेदार दृश्य बनाता है।
  • “सारे बच्चे हल्ला मचाते हुए आंगन में खेल रहे होंगे और मैं बिस्तर में पड़ा झख मार रहा हूँगा। अक्लमंद! और बनें बीमार।” बच्चे का खुद को “अक्लमंद” कहकर तंज कसना और अपनी गलती पर पछताना मुस्कान लाता है, क्योंकि यह उसकी नादानी और पछतावे को मज़ेदार तरीके से दिखाता है।

(ख) इस कहानी में किन वाक्यों को पढ़कर आपके मुँह में पानी आ गया था? उन्हें रेखांकित कीजिए।

निम्नलिखित वाक्य पढ़कर मुँह में पानी आ सकता है, क्योंकि इनमें खाने का स्वादिष्ट और लुभावना वर्णन है:

  • “आज क्या खाना बना होगा? खुशबू तो दाल-चावल की आ रही है। अरहर की दाल में हींग-जीरे का बघार और ऊपर से बारीक कटा हरा धनिया और आधा चम्मच देसी घी। फिर उसमें उन्होंने नींबू निचोड़ा होगा।” यह वाक्य अरहर की दाल और चावल के स्वादिष्ट संयोजन का विस्तृत वर्णन करता है, जिसमें हींग-जीरे का बघार, हरा धनिया, देसी घी, और नींबू का स्वाद शामिल है, जो बहुत लुभावना है।
  • “लेकिन खुशबू तो किसी और चीज की है। क्या हरी मिर्च तली गई है? उसे दाल-चावल में मसलकर खा रहे हैं।” तली हुई हरी मिर्च को दाल-चावल के साथ मसलकर खाने का वर्णन मुँह में पानी ला सकता है, क्योंकि यह एक चटपटा और स्वादिष्ट संयोजन है।
  • “लेकिन भूख के कारण ठीके से नींद भी नहीं आ रही थी। और आँख जरा लगती की तो खाने ही खाने की चीजें दिखाई देतीं। गरमागरम खस्ता कचौड़ी… माँ की बर्फी… बेसन की चक्की… गोलगप्पे। और सबसे ऊपर साबुदाने की खीर।” इस वाक्य में बच्चा भूख के कारण कई स्वादिष्ट चीजों की कल्पना करता है, जैसे गरमागरम खस्ता कचौड़ी, माँ की बर्फी, बेसन की चक्की, गोलगप्पे, और साबुदाने की खीर, जो सभी बहुत लुभावने व्यंजन हैं और मुँह में पानी ला सकते हैं।
  • “कितना मजा आता जब ठेले पर जाकर नमक-मिर्च लगे अमरूद खाते कटर-कटर।” नमक-मिर्च लगे अमरूद का कटर-कटर खाने का वर्णन मुँह में पानी ला सकता है, क्योंकि यह एक तीखा और ताज़ा स्वाद वाला स्नैक है, जो बच्चों को बहुत पसंद होता है।

विराम चिह्न

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उत्तर:-

विराम चिह्नकहाँ प्रयोग किया जाता हैउदाहरण (कहानी से)
पूर्ण विराम (।)वाक्य के अंत में प्रयोग किया जाता है ताकि यह दर्शाया जाए कि वाक्य पूर्ण हो गया है। यह विचार की पूर्णता को दर्शाता है।“अस्पताल में भर्ती थे।” (पेज 1)”में आज बीमार हूँ।” (पेज 3)
अल्प विराम (,)वाक्य में छोटे-छोटे खंडों को अलग करने, सूची बनाने, या वाक्य को स्पष्ट करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह वाक्य के बीच में रुकावट या जोड़ को दर्शाता है।“सफेद दीवारें, ऊँची छत, खिड़कियों पर हरे परदे और फर्श एकदम चमकता हुआ।” (पेज 1)”न टूफिक का शोरगुल, न धूल, न मच्छर-मक्खी…” (पेज 1)
प्रश्नवाचक चिह्न (?)प्रश्न पूछने वाले वाक्यों के अंत में प्रयोग किया जाता है।“क्या हुआ?” (नानीजी ने पूछा, पेज 4)”क्या हो गया?” (पेज 3)
विस्मयादिबोधक चिह्न (!)आश्चर्य, उत्साह, दुख, या किसी तीव्र भावना को व्यक्त करने वाले वाक्यों के अंत में प्रयोग किया जाता है।“देखें!” (नानाजी ने कहा, पेज 4)”भूखे रहो!!” (पेज 8)
उद्धरण चिह्न (” “)किसी के कथन या संवाद को हूबहू दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह संवाद को मुख्य पाठ से अलग करता है।“मेरे सिर में दर्द हो रहा है। पेट भी दुख रहा है और मुझे बुखार भी है।” (पेज 3)”आपको पता नहीं चल रहा। थर्मामीटर लगाकर देखिए।” (पेज 4)

बहाने

(क) कहानी में बच्चे ने बीमारी का बहाना बनाया ताकि उसे स्कूल न जाना पड़े। क्या आपने कभी किसी कारण से बहाना बनाया है? यदि हाँ, तो उसके बारे में बताइए। उस समय आपके मन में कौन-कौन से भाव आ-जा रहे थे? आप कैसा अनुभव कर रहे थे?

उत्तर: हाँ, मैंने भी एक बार स्कूल से छुट्टी लेने के लिए बहाना बनाया था। उदाहरण के लिए, एक बार मैंने स्कूल नहीं जाने के लिए कहा कि मुझे सिरदर्द है, क्योंकि मैंने एक परीक्षा की तैयारी नहीं की थी। उस समय मेरे मन में कई भाव आए:

  • डर: मुझे डर था कि कहीं मेरा बहाना पकड़ा न जाए, जैसे कहानी में बच्चे को थर्मामीटर न मिलने पर डर था कि उसका झूठ पकड़ा जाएगा।
  • अपराधबोध: मुझे थोड़ा अपराधबोध हुआ कि मैं सच नहीं बोल रहा था, जैसा कि कहानी में बच्चे को बाद में अपनी गलती का एहसास हुआ।
  • उत्साह: शुरू में थोड़ा उत्साह था कि शायद मैं स्कूल से बच जाऊँ और दिन आराम से बिताऊँ, जैसा बच्चे ने साबुदाने की खीर और आराम की कल्पना की थी।
  • निराशा: जब मुझे दिनभर घर में अकेले रहना पड़ा और कुछ मजेदार नहीं हुआ, तो निराशा हुई, जैसा कि बच्चे को भूख और ऊब के कारण हुआ।

अनुभव: शुरू में बहाना बनाकर खुशी हुई, लेकिन बाद में जब मुझे अकेलापन और बोरियत महसूस हुई, तो लगा कि स्कूल जाना बेहतर होता। यह अनुभव कहानी में बच्चे के अनुभव से मिलता-जुलता था, जहाँ उसे भूख और अकेलेपन ने परेशान किया।

(ख) आमतौर पर बनाए जाने वाले बहानों की एक सूची बनाइए।

उत्तर: आमतौर पर लोग निम्नलिखित बहाने बनाते हैं:

1. बीमारी का बहाना: “मुझे बुखार है” या “मेरा पेट दुख रहा है” (जैसा कि कहानी में बच्चे ने कहा, “मेरे सिर में दर्द हो रहा है। पेट भी दुख रहा है और मुझे बुखार भी है।” – पेज 3)।

2.पारिवारिक कारण: “मुझे घर पर कुछ जरूरी काम है” या “रिश्तेदार आ रहे हैं।”

3.परिवहन की समस्या: “बस छूट गई” या “मुझे सवारी नहीं मिली।”

4.मौसम का बहाना: “बारिश बहुत तेज है, इसलिए नहीं आ सका।”

5.तकनीकी समस्या: “मेरा फोन खराब हो गया” या “इंटरनेट काम नहीं कर रहा।”

6.थकान या नींद: “मैं बहुत  बहुत थक गया था।”

7.अन्य व्यक्तिगत कारण: “मुझे देर हो गई” या “मैं भूल गया था।”

(ग) बहाने क्यों बनाने पड़ते हैं? बहाने न बनाने पड़ें, इसके लिए हम क्या-क्या कर सकते हैं?

उत्तर: बहाने क्यों बनाने पड़ते हैं? लोग बहाने इसलिए बनाते हैं क्योंकि:

1. जिम्मेदारी से बचना: जैसे कहानी में बच्चे ने होमवर्क न करने के कारण स्कूल जाने से बचने के लिए बीमारी का बहाना बनाया (पेज 2: “मैंने होमवर्क नहीं किया था। स्कूल जाता तो जरूर सजा मिलती।”)।

2.दबाव या डर: सजा, शर्मिंदगी, या असफलता के डर से लोग बहाने बनाते हैं।

3.आलस्य या अनिच्छा: कोई काम करने का मन न होने पर, जैसे बच्चे का स्कूल न जाने का मन न होना (पेज 2: “मेरा स्कूल जाने का मन नहीं किया।”)।

4.सामाजिक अपेक्षाएँ: किसी को निराश न करने के लिए या सामाजिक दबाव के कारण।

5. समय की कमी: किसी कार्य को पूरा न कर पाने के लिए, जैसे समय पर प्रोजेक्ट न देना।

बहाने न बनाने पड़ें, इसके लिए हम क्या-क्या कर सकते हैं?

1. ईमानदारी: सच बोलने की आदत डालें, भले ही वह मुश्किल हो। इससे विश्वास बढ़ता है।

2.समय प्रबंधन: काम को समय पर पूरा करने की योजना बनाएँ, जैसे होमवर्क पहले करना (कहानी में बच्चे ने होमवर्क नहीं किया, जिससे बहाना बनाना पड़ा)।

3.जिम्मेदारी लेना: अपनी गलतियों को स्वीकार करें और सुधार के लिए कदम उठाएँ।

4.खुलकर बात करना: अपनी परेशानी या अनिच्छा को स्पष्ट रूप से बताएँ ताकि बहाने की जरूरत न पड़े।

5. आत्मविश्वास: अपनी कमियों को स्वीकार करने और उन पर काम करने का आत्मविश्वास रखें।


घर का सामान

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उत्तर:-

जो खोजने पर भी नहीं मिलती हैंजो कोई माँगकर ले जाते हैंजो आप किसी से माँगकर लाते हैं
रिमोटथर्मामीटरकिताबें
चाबियाँपेनछाता
मोज़ेकैंचीचार्जर

आज की पहेली

पहेलीउत्तर
रोटी जैसा होता है ये, पर आलू से भरा-भरा घी-तेल साथी हैं इसके, दही-चटनी से हरा-भराआलू पराठा
दाल-चावल का मेल है यह तो, भारत भर में तुम इसे पाओ, दक्षिण में ये खूब है बनता, चटनी-सांभर संग-संग खाओ, गोल-तिकोना इसका आकार, गरम-गरम तुम इसे बनाओ, कौन-सा व्यंजन होता है यह, बोलो बोलो नाम बताओ।इडली
नाश्ते का यह बड़ा है खास, महाराष्ट्र में इसका वास, मिर्च-मसाले से भरपूर, संग बटाटा भी मशहूर, चटपटी चटनी लगी किसे? बूझो नाम तो खाएँ इसे !वड़ा पाव
बेसन से बने चौकोर या गोल, गुजरात में बड़ा है बोल। खाने में नर्म, पानी भरे, धनिया मिर्ची संग सजे।ढोकला
गोल-गोल पानी से भरके, चटनी सोंठ संग इसे खाओ उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम, गली-मुहल्लों में भी पाओ। खट्टी-मीठी, तीखी हाय, खाना तो इसे हर कोई चाहे !पानी पूरी
हरे साग संग मुझको पाओ, मक्खन के संग मुझको खाओ। आटा मेरा हल्का पीला, स्वाद मेरा है बड़ा रंगीला।मक्के की रोटी
आग में पकती हूँ, सोंधा-सा स्वाद, साथ में खाओ चूरमा, बन जाए फिर बात, गरम दाल से मुझको प्यार, राजस्थान का मैं उपहार।बाजरे की रोटी
गोल-गोल और श्वेत रंग का रस से भरा हुआ हूँ खूब। मीठी दुनिया का महाराजा चाशनी मीठी डूब-डूब।रसगुल्ला

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