तीन बुद्धिमान – सारांश
यह कहानी तीन भाइयों की है, जिनके पिता बहुत गरीब थे। पिता ने अपने बेटों को सलाह दी कि वे पैसे के बजाय पैनी नजर और तेज बुद्धि को अपना धन बनाएं। पिता के देहांत के बाद, तीनों भाई दुनिया देखने निकल पड़े। रास्ते में उन्हें कई मुश्किलें आईं, जैसे भूख, थकान और पैरों में छाले, लेकिन वे चलते रहे।
चालीस दिन की यात्रा के बाद, वे एक बड़े शहर के पास पहुंचे। रास्ते में उन्होंने सड़क पर कुछ निशान देखे और अपनी तेज नजर से अनुमान लगाया कि वहां से एक बड़ा ऊंट गुजरा है, जो एक आंख से नहीं देखता था और उस पर एक महिला और बच्चा सवार था।
जब एक घुड़सवार से उनकी मुलाकात हुई, तो उसने बताया कि उसका ऊंट खो गया है। भाइयों ने ऊंट के बारे में सही-सही बताया, जिससे घुड़सवार को शक हुआ कि उन्होंने ऊंट चुराया है। वह उन्हें राजा के पास ले गया और चोरी का इल्जाम लगाया।
राजा ने भाइयों से पूछा कि उन्होंने ऊंट को बिना देखे उसके बारे में इतना कुछ कैसे बताया। भाइयों ने बताया कि उन्होंने रास्ते के निशानों को ध्यान से देखा था। सबसे बड़े भाई ने ऊंट के बड़े निशान देखे, मझले भाई ने देखा कि सड़क की एक तरफ की घास चरी गई थी, जिससे पता चला कि ऊंट एक आंख से नहीं देखता। छोटे भाई ने ऊंट के घुटने टिकाने और औरत-बच्चे के पैरों के निशान देखे।
राजा ने उनकी बुद्धिमानी की परीक्षा लेने के लिए एक पेटी मंगवाई और पूछा कि उसमें क्या है। भाइयों ने सही अनुमान लगाया कि पेटी में एक कच्चा अनार है। सबसे बड़े भाई ने पेटी की हल्कापन और गोल वस्तु की आवाज सुनी, मझले भाई ने अनार के पेड़ों को देखकर अनुमान लगाया, और छोटे भाई ने कहा कि इस मौसम में अनार कच्चे ही होंगे।
राजा उनकी बुद्धिमानी से बहुत प्रभावित हुआ और समझ गया कि वे चोर नहीं हैं। उसने ऊंट के मालिक को भाइयों के बताए रास्ते पर ऊंट ढूंढने को कहा और भाइयों की खूब मेहमाननवाजी की। राजा ने उन्हें अपने दरबार में रख लिया, क्योंकि उनकी तेज बुद्धि और पैनी नजर अनमोल थी।
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