नहीं होना बीमार – सारांश
यह कहानी “नहीं होना बीमार” स्वयं प्रकाश द्वारा लिखी गई एक मजेदार और शिक्षाप्रद कहानी है, जो एक बच्चे की नटखट सोच और बीमारी का बहाना बनाने की घटना को बयान करती है। कहानी में एक बच्चा, जिसका नाम स्पष्ट नहीं है, अपनी नानी के साथ पड़ोसी सुधाकर काका को देखने अस्पताल जाता है। यह उसका अस्पताल का पहला अनुभव है, जहाँ उसे साफ-सुथरा माहौल, हरे पेड़, शांति और सुधाकर काका को मिलने वाली साबुदाने की खीर बहुत अच्छी लगती है। बच्चा सोचता है कि बीमार होना कितना अच्छा है, क्योंकि इसमें आराम मिलता है और स्वादिष्ट खीर खाने को मिलती है। एक दिन, जब उसे स्कूल जाने का मन नहीं होता और होमवर्क भी नहीं किया होता, वह सजा से बचने के लिए बीमारी का बहाना बनाता है। वह कहता है कि उसे सिरदर्द, पेट दर्द और बुखार है। नानी और नानाजी उसकी बात मान लेते हैं, लेकिन थर्मामीटर नहीं मिलता। नानाजी उसे कड़वी दवा और काढ़ा पिलाते हैं और खाना न देने की सलाह देते हैं। बच्चा दिनभर रजाई में लेटा रहता है, लेकिन उसे भूख लगती है और वह बाहर की चहल-पहल, जैसे चंदुभाई की साइकिल की दुकान, तेजराम की दुकान और गली की रौनक, देखने को तरसता है। उसे अपने भाई मुन्नू को आम खाते देखकर जलन होती है, क्योंकि उसे कुछ नहीं मिलता। दिन के अंत में उसे अपनी गलती का एहसास होता है कि स्कूल न जाने का बहाना बनाना गलत था, क्योंकि स्कूल में दोस्तों के साथ मस्ती करना और नमक-मिर्च वाले अमरूद खाना कहीं बेहतर होता। वह तय करता है कि अब वह कभी बीमारी का बहाना नहीं बनाएगा। यह कहानी बच्चों को सिखाती है कि झूठ बोलने और बहाने बनाने से नुकसान ही होता है और मेहनत व ईमानदारी से काम करना बेहतर है। लेखक ने इसे रोचक और हास्यपूर्ण तरीके से लिखा है, जिसमें बच्चे की सोच और भावनाओं को खूबसूरती से दर्शाया गया है।
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