बिरजू महाराज से साक्षत्कार- सारांश
यह पाठ पंडित बिरजू महाराज के जीवन और कथक नृत्य के बारे में एक साक्षात्कार है, जिसमें बच्चों ने उनसे कई सवाल पूछे। बिरजू महाराज एक प्रसिद्ध कथक नर्तक हैं, जिन्हें यह कला अपने परिवार से विरासत में मिली। उनके पिता अच्छन महाराज, चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज उनके गुरु थे। बचपन में उन्होंने आर्थिक तंगी का सामना किया, जब उनके पिता के देहांत के बाद परिवार की हालत खराब हो गई थी। उनकी माँ ने बहुत साथ दिया और उन्हें हमेशा नृत्य का अभ्यास करने के लिए प्रेरित किया। बिरजू महाराज ने बताया कि कथक की शुरुआत प्राचीन समय में मंदिरों से हुई, जब कथावाचक कहानियाँ नृत्य और संगीत के माध्यम से सुनाते थे। लखनऊ, जयपुर और बनारस घरानों ने कथक को अलग-अलग शैलियों में विकसित किया। उन्होंने कथक में नए प्रयोग किए, जैसे भाव-भंगिमाओं को शामिल करना और आधुनिक कवियों की रचनाओं को नृत्य में पेश करना।
बिरजू महाराज ने बताया कि नृत्य सीखने के लिए संगीत और लय की समझ जरूरी है, क्योंकि लय नृत्य को सुंदर बनाती है और जीवन में संतुलन सिखाती है। वे न केवल नृत्य करते हैं, बल्कि गाना, तबला बजाना और चित्रकारी जैसे कई कामों में भी रुचि रखते हैं। उन्होंने बच्चों को सलाह दी कि संगीत और नृत्य सीखना एक खेल की तरह है, जो मन को शांति और अनुशासन देता है। उन्होंने यह भी कहा कि लड़कियों को भी कला सीखनी चाहिए, क्योंकि यह एक ऐसा खजाना है जो जीवन में हमेशा काम आता है।
इसके अलावा, पाठ में सुधा चंद्रन की प्रेरक कहानी भी है, जिन्होंने एक दुर्घटना में अपना पैर खोने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और कृत्रिम पैर के साथ नृत्य सीखकर मशहूर नृत्यांगना बनीं। उनकी कहानी सिखाती है कि मेहनत और हिम्मत से कोई भी मुश्किल पार की जा सकती है। पाठ में यह भी बताया गया है कि शास्त्रीय नृत्य (जैसे कथक, भरतनाट्यम, कथकली) और लोक नृत्य में अंतर है। शास्त्रीय नृत्य में नियम और प्रशिक्षण महत्वपूर्ण होते हैं, जबकि लोक नृत्य सामूहिक और उत्सवों से जुड़े होते हैं। यह पाठ बच्चों को कला की गहराई और मेहनत की अहमियत समझाता है।
Leave a Reply