Notes For All Chapters Hindi Vasant Class 8
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
व्याख्या – कबीरदास जी प्रस्तुत दोहे में कहते हैं कि साधु की जाति हमें नहीं पूछना चाहिए। उसकी जाति पूछ कर या जानकार कोई लाभ नहीं होगा। साधु से केवल ज्ञान ग्रहण करना चाहिए। उसके दिए गए ज्ञान ही मानवता के लिए लाभप्रद होते हैं। जिस प्रकार तलवार की धार महत्वपूर्ण होती है। तलवार खरीदते समय म्यान का रंगरूप देखने की आवश्कता नहीं होती है ,उसकी धार और मजबूती महत्वपूर्ण होती है ,उसी प्रकार साधु का ज्ञान महतवपूर्ण है न की उसकी जाति।
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए,वही एक की एक।
व्याख्या – कबीरदास जी प्रस्तुत पंक्तियों में कहते हैं कि हमें बुराई का जबाब बुराई के रूप में नहीं देना चाहिए। यदि हमें कोई गाली देता है तो उसके उत्तर में गाली नहीं देनी चाहिए। यदि वह व्यक्ति हमारी बुराई कर रहा है ,तो हमें उसका उत्तर नहीं देना चाहिए। प्रति उत्तर में मामला बढ़ता है। बुराई का उत्तर बुराई से नहीं दिया जा सकता है। भलमनसाहत ही किसी अपशब्द का उत्तर है।
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।
व्याख्या – कबीरदास ने प्रस्तुत दोहे में धार्मिक आडंबरों पर करार प्रहार किया है। उनका मानना है कि धर्म के पाखंडों में माला फेरना या ईश्वर का जाप महत्वपूर्ण नहीं है। माला अपनी उँगलियाँ में फेरते रहते हैं ,जीभ द्वारा नाम स्मरण करते रहते हैं।लेकिन हमारा मन ईश्वर के प्रति समर्पित न होकर दशों दिशाओं में भटकता रहता है। ईश्वर में यदि मन नहीं लगा है ,तो सारा आडम्बर व्यर्थ है। ईश्वर की प्राप्ति सहजता से होती है ,आडम्बरों से नहीं।
कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।
व्याख्या – कबीरदास जी प्रस्तुत दोहे में कमजोर व्यक्तियों को न सताने की बात कह रहे हैं। घास को हमलोग अपने पैरों से रौंदते रहते हैं ,उसे तुच्छ और बेकार समझते है। जब यही घास का तिनका आँखों में गिर जाता है ,तो हमें कष्ट हो जाता है। इस प्रकार हमें समाज के कमजोर व्यक्तियों को कष्ट नहीं देना चाहिए। उन्हें भी यथोचित सम्मान देना चाहिए,अन्यथा वे हमारा हाल घास के तिनकों की तरह आँखों में पड़कर कर देंगे।
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।
व्याख्या – कबीरदास जी प्रस्तुत दोहे में कहते हैं कि इस संसार में कोई किसी का बैरी नहीं है। यह मनुष्य का अहंकार ही है ,जो उसे किसी का शत्रु बनाता है। मनुष्य को चाहिए कि वह मन को शीतल व शांत बनाये रखें ,जिससे वह अपने अहंकार को खत्म कर सके। अहंकार विहीन मनुष्य के सब मित्र बन जाते हैं ,उसका कोई शत्रु नहीं रहता है। अतः अपना अहंकार त्यागकर सभी के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए।
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