परिचय
शीर्षक: तरुण के स्वप्न
लेखक: नेताजी सुभाषचंद्र बोस
प्रकाशन: यह पाठ नेताजी के 29 दिसंबर, 1929 को मेदिनीपुर जिला युवक-सम्मेलन में दिए गए भाषण का अंश है।
मुख्य विषय: नेताजी का स्वप्न एक स्वाधीन, समृद्ध और समान समाज व राष्ट्र का निर्माण करना था, जिसे वे युवाओं को सौंपना चाहते थे।
उद्देश्य: युवाओं को प्रेरित करना कि वे इस स्वप्न को साकार करने के लिए कार्य करें।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस का परिचय
जन्म: कटक, उड़ीसा (वर्तमान ओड़िशा)।
उपनाम: नेताजी।
योगदान:
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका।
- आजाद हिंद फौज का गठन और नेतृत्व।
- नारे: “दिल्ली चलो”, “जय हिंद”, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा”।
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष, कई बार जेल।
लेखन: उनकी पुस्तक ‘द इंडियन स्ट्रगल’ और उनके भाषण, पत्र आदि भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित।
पाठ का सार
नेताजी का स्वप्न:
- एक स्वाधीन, समृद्ध और सर्वांगीण समाज।
- व्यक्ति हर दृष्टि से स्वतंत्र हो, सामाजिक दबाव से मुक्त हो।
- समाज में जातिभेद, आर्थिक असमानता, और लैंगिक भेदभाव न हो।
- नारी को पुरुषों के समान अधिकार और अवसर प्राप्त हों।
- प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा और उन्नति का समान अवसर मिले।
- श्रम और कर्म की मर्यादा हो, आलस्य के लिए कोई स्थान न हो।
- राष्ट्र विदेशी प्रभाव से मुक्त हो और भारतवासियों के अभाव को दूर करे।
प्रेरणा का स्रोत: नेताजी का यह स्वप्न उनकी शक्ति और आनंद का आधार था। वे इसे युवाओं को सौंपना चाहते थे।
आह्वान: नेताजी ने युवाओं से इस स्वप्न को स्वीकार करने और इसे साकार करने के लिए त्याग, संघर्ष और समर्पण की अपील की।
मुख्य बिंदु
1. स्वप्न की प्रेरणा:
- नेताजी का स्वप्न स्वर्गीय देशबंधु चित्तरंजन दास से प्रेरित था।
- यह स्वप्न उनकी दिनचर्या, विचार और कार्यों का आधार था।
2. आदर्श समाज की विशेषताएँ:
- स्वतंत्रता: व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दबावों से मुक्त हो।
- समानता: नारी-पुरुष समान अधिकारों का उपयोग करें।
- शिक्षा: सभी को समान शिक्षा और उन्नति के अवसर।
- श्रम: कर्म और मेहनत को सम्मान, आलस्य के लिए कोई स्थान नहीं।
3. राष्ट्र का स्वरूप:
- विदेशी प्रभाव से मुक्त।
- भारतवासियों के अभाव को दूर करने वाला।
- विश्व में आदर्श समाज और राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त।
4. युवाओं को संदेश:
- नेताजी ने युवाओं को यह स्वप्न उपहार के रूप में दिया।
- इसे साकार करने के लिए हर संकट को सहने और त्याग करने की प्रेरणा दी।
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