लेखक परिचय: भीष्म साहनी (1915-2003)
- हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक, जिन्होंने कहानियों और उपन्यासों में देश-विभाजन और मानवीय मूल्यों को चित्रित किया।
- प्रसिद्ध उपन्यास ‘तमस’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त।
- बच्चों के लिए ‘गुलेल का खेल’ जैसी कहानियाँ लिखीं।
- भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित।
पाठ का सारांश
‘दो गौरैया’ एक हल्की-फुल्की, हास्य और मानवीय संवेदनाओं से भरी कहानी है। यह एक छोटे से परिवार (माँ, पिताजी, और लेखक) के घर की घटना पर आधारित है, जिसे पिताजी ‘सराय’ कहते हैं क्योंकि वहाँ तरह-तरह के जीव-जंतु और पक्षी आते-जाते रहते हैं। कहानी का केंद्र दो गौरैया हैं, जो घर में घुसकर पंखे के गोले में घोंसला बनाती हैं। पिताजी उन्हें निकालने की कोशिश करते हैं, लेकिन गौरैया बार-बार लौट आती हैं। माँ पिताजी के प्रयासों पर हँसती और व्यंग्य करती हैं। अंत में, जब घोंसले में नन्हीं गौरैया बच्चों की चीं-चीं सुनाई देती है, पिताजी का मन बदल जाता है और वे उन्हें रहने देते हैं। यह कहानी जीवों के प्रति दया, परिवार के महत्व और हार न मानने की भावना को दर्शाती है।
मुख्य बिंदु
घर का वर्णन:
- परिवार: माँ, पिताजी, और लेखक (बच्चा)।
- घर को पिताजी ‘सराय’ कहते हैं क्योंकि यहाँ तरह-तरह के जीव-जंतु (चूहे, बिल्ली, चमगादड़, कबूतर, छिपकलियाँ, बरें, चींटियाँ) और पक्षी (तोते, कौवे, गौरैया) आते-जाते हैं।
- आँगन में आम का पेड़, जिस पर पक्षी डेरा डालते हैं।
- चूहे रात में धमा-चौकड़ी मचाते, बिल्ली दूध पीने आती, चमगादड़ कसरत करते, कबूतर ‘गुटर गूँ’ करते।
दो गौरैया की कहानी:
- दो गौरैया घर में घुसती हैं और पंखे के गोले में घोंसला बनाती हैं।
- पिताजी उन्हें निकालने की कोशिश करते हैं (ताली बजाकर, लाठी से, दरवाजे बंद करके)।
- गौरैया बार-बार लौट आती हैं (दरवाजे के नीचे, टूटे रोशनदान से)।
- माँ पिताजी के प्रयासों पर हँसती और व्यंग्य करती हैं, जैसे: “चूहों को तो निकाल नहीं पाए, अब चिड़ियों को निकालेंगे!”
- अंत में, घोंसले में नन्हीं गौरैया बच्चों की आवाज सुनकर पिताजी घोंसला तोड़ने से रुक जाते हैं।
- माँ दरवाजे खोल देती हैं, गौरैया अपने बच्चों को चुग्गा देती हैं, और पिताजी मुसकराते हैं।
हास्य और व्यंग्य:
माँ का व्यंग्य (जैसे, पिताजी के नाचने पर हँसना) कहानी को रोचक बनाता है।
पिताजी का गुस्सा और उनके असफल प्रयास हास्य उत्पन्न करते हैं।
संदेश:
जीवों के प्रति दया और सहानुभूति।
परिवार और घर का महत्व (गौरैया अपने बच्चों के लिए बार-बार लौटती हैं)।
दृढ़ता और हार न मानना (गौरैया और पिताजी दोनों)।
हास्य और व्यंग्य से जीवन की गंभीर बातें कहना।
पात्रों का परिचय
पिताजी:
- स्वभाव: गुस्सैल, जिद्दी, लेकिन अंत में दयालु।
- कार्य: घर को साफ रखना चाहते हैं, गौरैया को निकालने की कोशिश करते हैं।
- बदलाव: बच्चों को देखकर उनका मन नरम पड़ता है।
माँ:
- स्वभाव: हँसमुख, व्यंग्यपूर्ण, संवेदनशील।
- कार्य: पिताजी के प्रयासों पर हँसती हैं, गौरैया को निकालने में मदद नहीं करतीं।
- दृष्टिकोण: गौरैया को रहने देना चाहती हैं, खासकर अंडे देने के बाद।
लेखक (बच्चा):
- कहानी का वर्णनकर्ता।
- जीवों और गौरैया की हरकतों का निरीक्षण करता है।
- नन्हीं गौरैया बच्चों को देखकर अवाक् रह जाता है।
दो गौरैया:
- दृढ़ और परिवारप्रेमी।
- बार-बार लौटकर घोंसला बनाती हैं।
- अपने बच्चों को चुग्गा देती हैं।
अन्य जीव:
- चूहे: रात में भागदौड़ करते, एक अँगीठी के पीछे बैठता (शायद बूढ़ा), दूसरा बाथरूम की टंकी पर।
- बिल्ली: दूध पीने आती, “फिर आऊँगी” कहकर चली जाती।
- चमगादड़: कमरों में कसरत करते।
- कबूतर: ‘गुटर गूँ’ की आवाज निकालते।
- छिपकलियाँ, बरें, चींटियाँ: घर में मौजूद।
महत्वपूर्ण पंक्तियाँ और उनके अर्थ
- “पिताजी कहते हैं कि यह घर सराय बना हुआ है।”
अर्थ: घर में कई जीव-जंतु और पक्षी आते-जाते हैं, जैसे सराय में यात्री।
महत्व: घर की जीवंतता और विविधता को दर्शाता है। - “वह शोर मचता है कि कानों के पर्दे फट जाएँ, पर लोग कहते हैं कि पक्षी गा रहे हैं!”
अर्थ: पक्षियों की चहचहाहट को पिताजी शोर मानते हैं, पर लोग इसे संगीत कहते हैं।
महत्व: दृष्टिकोण का अंतर दिखाता है। - “अब तो ये नहीं उड़ेंगी। पहले इन्हें उड़ा देते, तो उड़ जातीं।”
अर्थ: गौरैया ने घोंसला बना लिया, अब वे बच्चों के कारण नहीं जाएँगी।
महत्व: परिवार के प्रति गौरैया की निष्ठा। - “किसी को सचमुच बाहर निकालना हो, तो उसका घर तोड़ देना चाहिए।”
अर्थ: पिताजी गुस्से में घोंसला तोड़ने की बात कहते हैं।
महत्व: गुस्से में लिए गए निर्णयों की गलती को दर्शाता है। - “कमरे में फिर से शोर होने लगा था, पर अबकी बार पिताजी उनकी ओर देख-देखकर केवल मुसकराते रहे।”
अर्थ: पिताजी का मन बदल जाता है, वे गौरैया को स्वीकार करते हैं।
महत्व: दया और स्वीकृति का संदेश।
शब्दार्थ
सराय: यात्रियों के ठहरने का स्थान।
निरीक्षण: जाँच-पड़ताल करना।
धमा-चौकड़ी: शोर और भागदौड़।
गुटर गूँ: कबूतर की आवाज।
मल्हार: वर्षा से जुड़ा शास्त्रीय राग।
अवाक्: स्तब्ध, चुप।
सहसा: अचानक।
झालर: सजावट के लिए लटकने वाली चीजें।
व्यंग्य: उपहास या चुटकीली बात।
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