कवि परिचय
कबीर एक प्रसिद्ध संत कवि थे, जिनका जन्म चौदहवीं शताब्दी में काशी (वाराणसी) में हुआ माना जाता है। वे करघे पर कपड़ा बुनते हुए मन में कविता रचते थे। उनकी रचनाएँ मुख्य रूप से “कबीर ग्रंथावली” में संग्रहीत हैं। कबीर की कविताएँ जीवन की सच्चाई सिखाती हैं और अच्छा इंसान बनने की प्रेरणा देती हैं। वे भजनों की तरह गाई जाती हैं और पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाई जाती हैं।
संदर्भ: कबीर वचनावली, संपादक – अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’।
दोहे और उनके अर्थ
पाठ में दिए गए कबीर के प्रमुख दोहे निम्नलिखित हैं। प्रत्येक दोहे का सरल अर्थ समझाया गया है:
1. साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे साँच है, ता हिरदे गुरु आप।।
अर्थ: सत्य बोलना सबसे बड़ा तप है, झूठ बोलना सबसे बड़ा पाप है। जिसके हृदय में सत्य है, उसके हृदय में गुरु (ईश्वर) स्वयं निवास करते हैं।
संदेश: सत्य महत्वपूर्ण जीवन मूल्य है, जो हृदय को प्रकाशित करता है।
2. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागै अति दूर।।
अर्थ: बड़ा होना ही काफी नहीं, जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा होता है लेकिन राहगीर को छाया नहीं देता और फल बहुत ऊपर लगते हैं।
संदेश: बड़े या अमीर होने के साथ दूसरों के काम आना और उदार होना चाहिए। जीवन कौशल: दूसरों की मदद करना।
3. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
अर्थ: यदि गुरु और ईश्वर दोनों सामने खड़े हों, तो पहले किसके चरण स्पर्श करें? गुरु का धन्यवाद, क्योंकि उन्होंने ईश्वर का ज्ञान दिया।
संदेश: गुरु का महत्व ईश्वर से भी ऊपर है, क्योंकि गुरु ज्ञान देते हैं।
4. अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप ॥
अर्थ: बहुत ज्यादा बोलना या चुप रहना अच्छा नहीं; बहुत ज्यादा बारिश या धूप भी अच्छी नहीं।
संदेश: हर चीज में संतुलन जरूरी है।
5. ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहँ सीतल होय ।।
अर्थ: ऐसी मधुर वाणी बोलो कि अहंकार दूर हो जाए; इससे दूसरों और खुद को शांति मिले।
संदेश: मधुर भाषा से मानसिक शांति मिलती है। लाभ: दूसरों और स्वयं को शीतलता।
6. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।
अर्थ: आलोचकों को पास रखो, जैसे घर में झोपड़ी बनाकर; वे बिना पानी-साबुन के स्वभाव को साफ करते हैं।
संदेश: आलोचना से सुधार होता है। दृष्टिकोण: आलोचकों को पास रखना।
7. साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय ।।
अर्थ: साधु ऐसा होना चाहिए जैसे सूप (सूपड़ा), जो सार (अच्छी चीज) रखता है और थोथा (बेकार) उड़ा देता है।
संदेश: विवेकशील व्यक्ति अच्छे-बुरे की पहचान करता है। ‘सूप’ प्रतीक: विवेक और सूझबूझ का।
8. कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय। जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय।।
अर्थ: मन पक्षी जैसा है, जहाँ चाहे जाता है; जैसी संगति करे, वैसा फल मिले।
संदेश: संगति का प्रभाव विचारों और कार्यों पर पड़ता है।
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