कविता का परिचय
- शीर्षक: मत बाँधो
- कवयित्री: महादेवी वर्मा
- मुख्य विषय: सपनों की स्वतंत्रता और उनकी रचनात्मक शक्ति
- प्रमुख संदेश: सपनों को बाधित न करें, उन्हें स्वतंत्रता दें ताकि वे ऊँचाइयों तक पहुँच सकें और समाज को बेहतर बनाने में योगदान दे सकें।
- काव्य शैली: छायावादी, जिसमें भावनात्मक और प्रतीकात्मक शैली का उपयोग किया गया है।
- प्रमुख प्रतीक: सपनों के पंख, सौरभ, बीज, अग्नि, धुआँ, स्वर्ग, शिल्प आदि।
कवयित्री का परिचय
नाम: महादेवी वर्मा
जन्म स्थान: फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश
योगदान:
- हिंदी साहित्य की सुप्रसिद्ध छायावादी कवयित्री।
- छोटी उम्र से कविता लेखन शुरू किया।
- बच्चों के लिए रचनाएँ: बारहमासा, आज खरीदेंगे हम ज्वाला, अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी आदि।
- गद्य रचनाएँ: मेरा परिवार, अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी।
- कविता संग्रह: नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, दीपशिखा।
- अन्य प्रतिभाएँ: चित्रकार, संपादक (चाँद पत्रिका)।
- पुरस्कार: भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार।
कविता का सार
- कविता मत बाँधो सपनों की स्वतंत्रता और उनकी रचनात्मक शक्ति पर आधारित है।
- कवयित्री कहती हैं कि सपनों को रोकना या उनकी गति को बाँधना उचित नहीं है, क्योंकि सपने मनुष्य को प्रेरणा देते हैं और समाज को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
- सपनों को पंखों, सौरभ (खुशबू), और बीज जैसे प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया गया है, जो उनकी स्वतंत्रता, उड़ान और विकास की संभावनाओं को दर्शाते हैं।
- कविता में यह संदेश है कि सपनों को स्वतंत्र छोड़ने से वे न केवल व्यक्तिगत विकास में सहायक होते हैं, बल्कि समाज को सुंदर और समृद्ध बनाने का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं।
कविता का भावार्थ
सपनों की स्वतंत्रता:
- सपनों को पंखों की तरह बताया गया है, जो उड़ान भरकर नई ऊँचाइयों तक ले जाते हैं।
- पंक्ति: “इन सपनों के पंख न काटो, इन सपनों की गति मत बाँधो!”
- अर्थ: सपनों को सीमित न करें, उन्हें स्वतंत्र छोड़ें।
सौरभ और बीज का प्रतीक:
- पंक्ति: “सौरभ उड़ जाता है नभ में, फिर वह लौट कहाँ आता है?”
- अर्थ: खुशबू की तरह सपने भी मुक्त होने पर फैलते हैं और वापस नहीं लौटते।
- पंक्ति: “बीज धूलि में गिर जाता जो, वह नभ में कब उड़ पाता है?”
- अर्थ: यदि सपनों को दबाया जाए, तो वे विकसित नहीं हो पाते, जैसे धूल में दबा बीज पौधा नहीं बन पाता।
आरोहण और अवरोहण:
- पंक्ति: “इसका आरोहण मत रोको, इसका अवरोहण मत बाँधो!”
- अर्थ: सपनों को ऊपर उठने (आरोहण) और वास्तविकता में बदलने (अवरोहण) की स्वतंत्रता देनी चाहिए।
स्वर्ग बनाने का शिल्प:
- पंक्ति: “स्वर्ग बनाने का फिर कोई शिल्प, भूमि को सिखलायेगा!”
- अर्थ: स्वतंत्र सपने समाज को सुंदर और सुखद बनाने की कला सिखाते हैं।
कविता की विशेषताएँ
- प्रतीकात्मकता: सपनों को पंख, सौरभ, बीज, और धुआँ जैसे प्रतीकों से दर्शाया गया है।
- विपरीतार्थक शब्दों का प्रयोग: जैसे आरोहण और अवरोहण।
- समानार्थी शब्द: नभ और गगन।
- संबोधन शैली: “मत बाँधो”, “पंख न काटो” जैसे संबोधनों का प्रयोग।
- प्रश्नवाचक शैली: “वह नभ में कब उड़ पाता है?” जैसे प्रश्नों से विचार को गहराई दी गई।
- शब्द-चित्र: सौरभ, बीज, अग्नि, धुआँ आदि के माध्यम से चित्रात्मक प्रभाव पैदा किया गया।
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