कविता का परिचय
शीर्षक: आदमी का अनुपात
कवि: गिरिजा कुमार माथुर
मुख्य विषय: कविता में मानव और ब्रह्मांड के बीच अनुपात को दर्शाया गया है, जो मानव की लघुता और ब्रह्मांड की विशालता को उजागर करता है। साथ ही, यह मानव की नकारात्मक प्रवृत्तियों जैसे ईर्ष्या, अहंकार, स्वार्थ और घृणा पर व्यंग्य करता है।
कवि का परिचय:
- जन्म: मध्य प्रदेश के अशोक नगर में (1919-1994)।
- पिता: देवीचरण माथुर (कवि)।
- कार्य: आकाशवाणी में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य। कविताओं के अलावा नाटक, गीत, कहानी और निबंध भी लिखे।
- प्रमुख कृतियाँ: मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, मैं वक्त के हूँ सामने।
- प्रसिद्ध गीत: ‘होंगे कामयाब’ (भावांतर)।
कविता का सार
- कविता मानव के छोटेपन को ब्रह्मांड की विशालता के सामने रखती है।
- यह एक क्रमबद्ध ढंग से कमरे से लेकर ब्रह्मांड तक का विस्तार दर्शाती है।
- मानव की नकारात्मक भावनाएँ (ईर्ष्या, अहं, स्वार्थ, घृणा) और दूसरों पर शासन करने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है।
- कविता यह संदेश देती है कि मानव अपनी सीमाओं को भूलकर अहंकारी हो जाता है और स्वयं को दूसरों का स्वामी समझता है।
कविता की प्रमुख पंक्तियाँ और अर्थ
“दो व्यक्ति कमरे में / कमरे से छोटे”
अर्थ: मानव की तुलना में कमरा बड़ा है, जो मानव की लघुता को दर्शाता है।
“अनगिन नक्षत्रों में / पृथ्वी एक छोटी / करोड़ों में एक ही”
अर्थ: ब्रह्मांड में अनगिनत तारे और ग्रह हैं, जिनमें पृथ्वी बहुत छोटी और अनोखी है।
“संख्यातीत शंख सी दीवारें उठाता है / अपने को दूजे का स्वामी बताता है”
अर्थ: मानव अपनी नकारात्मक भावनाओं के कारण कृत्रिम दीवारें (सीमाएँ) बनाता है और दूसरों पर शासन करने की कोशिश करता है।
“देशों की कौन कहे / एक कमरे में / दो दुनिया रचाता है”
अर्थ: मानव छोटे से स्थान में भी मतभेद और अलगाव की भावना से दो अलग-अलग दुनियाएँ बना लेता है।
कविता की विशेषताएँ
- संरचना: छोटी-छोटी पंक्तियाँ, सरल भाषा, और अधिकतर पंक्तियों का अंत ‘में’ शब्द से।
- विराम चिह्न: निदेशक चिह्न (–) का प्रयोग ठहराव और विचार को जोर देने के लिए।
- शैली: व्यंग्यात्मक और चिंतनशील।
- प्रतीक: ‘दीवारें’ मानव द्वारा बनाई गई मानसिक और सामाजिक बाधाओं का प्रतीक।
- विशेषण और विशेष्य: जैसे ‘पृथ्वी एक छोटी’ में ‘छोटी’ विशेषण और ‘पृथ्वी’ विशेष्य है।
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