पाठ से
मेरी समझ से
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर के सम्मुख तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
1. “सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं” का क्या अर्थ है?
लेखक के अनुसार सज्जन लोग बिना पूछे स्वादिष्ट रसीले फल देते हैं।
लेखक फलदार वृक्षों की उदारता को मानवीय रूप में व्यक्त कर रहे हैं। (★)
लेखक का मानना था कि हरिद्वार के सभी दुकानदार बहुत सज्जन थे।
लेखक को पत्थर मारकर पके हुए फल तोड़कर खाना पसंद था।
2. “वैराग्य और भक्ति का उदय होता था” इस कथन से लेखक का कौन-सा भाव प्रकट होता है?
शारीरिक थकान और मानसिक बेचैनी
आर्थिक संतोष और मानसिक विकास
मानसिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव (★)
सामाजिक सद्भाव और पारिवारिक प्रेम
3. “पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल से बढ़कर था” इस वाक्य का सर्वाधिक उपयुक्त निष्कर्ष क्या है?
संतुष्टि में सुख होता है। (★)
सुखी लोग पत्थर पर भोजन करते हैं।
लेखक के पास सोने की थाली नहीं थी।
पत्थर पर रखा भोजन अधिक स्वादिष्ट होता है।
4. “एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया।” यह प्रसंग किस मूल्य को बढ़ावा देता है?
अंधविश्वास और लालच
मानवता और देशप्रेम
सादगी और आत्मनिर्भरता (★)
स्वच्छता और प्रकृति प्रेम (★)
5. लेखक का हरिद्वार अनुभव मुख्यतः किस प्रकार का था?
राजनीतिक
आध्यात्मिक (★)
सामाजिक
प्राकृतिक (★)
6. पत्र की भाषा का एक मुख्य लक्षण क्या है?
कठिन शब्दों का प्रयोग और बोझिलता
मुहावरों का अधिक प्रयोग
सरलता और चित्रात्मकता (★)
जटिलता और संक्षिप्तता
(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने अलग-अलग उत्तर चुने हों। अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर:
मैंने ये उत्तर चुने क्योंकि पाठ में लेखक ने हरिद्वार की प्राकृतिक सुंदरता, आध्यात्मिक अनुभव और सादगी को बहुत चित्रात्मक और भावपूर्ण ढंग से वर्णन किया है। उदाहरण के लिए, वृक्षों की तुलना सज्जनों से की गई, जो उनकी उदारता को दर्शाता है। इसी तरह, पत्थर पर भोजन का सुख संतुष्टि और प्रकृति से जुड़ाव को दिखाता है।
मिलकर करें मिलान
पाठ से चुनकर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। आपस में चर्चा कीजिए और इनके उपयुक्त संदर्भों से इनका मिलान कीजिए-
उत्तर:
क्रम | शब्द | संदर्भ |
---|---|---|
1. | हरिद्वार | यह भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यहाँ से गंगा पहाड़ों को छोड़कर मैदान में आती है। |
2. | गंगा | यह भारतवर्ष की एक प्रधान नदी है जो हिमालय से निकलकर लगभग 1560 मील पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसके अनेक नाम हैं, जैसे – भागीरथी, त्रिपथगा, अलकनंदा, मंदाकिनी, सुरनदी आदि। |
3. | भगीरथ | ये अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे। कहा जाता है कि ये घोर तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। इसीलिए गंगा का एक नाम ‘भागीरथी’ भी है। |
4. | चण्डिका | मान्यताओं के अनुसार दुर्गा का एक रूप। |
5. | भागवत | यह अठारह पुराणों में से सर्वप्रसिद्ध एक पुराण है। इसमें अधिकांश श्री कृष्ण संबंधी कथाएँ हैं। |
6. | दालचीनी | यह एक पेड़ का नाम है। यह दक्षिण भारत में बहुतायत से मिलता है। इस पेड़ की सुगंधित छाल दवा और मसाले के काम में आती है। इसे दारचीनी भी कहते हैं। |
मिलकर करें चयन
(क) पाठ से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं। प्रत्येक वाक्य के सामने दो – दो निष्कर्ष दिए गए हैं – एक सही और एक भ्रामक। अपने समूह में इन पर विचार कीजिए और उपयुक्त निष्कर्ष पर सही का चिन्ह लगाइए।
उत्तर:
क्रम | पंक्ति | निष्कर्ष | सही/भ्रामक |
---|---|---|---|
1. | पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है। | लताओं का फैलना सज्जनों की शुभ इच्छाओं की तरह सौम्यता और सुंदरता को दर्शाता है। | ✔ |
सज्जनों की शुभ इच्छाएँ लताओं के समान फैल जाती हैं। | भ्रामक | ||
2. | बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं। | वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहते हुए तपस्या करते हैं। | ✔ |
वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहने के लिए विवश हैं। | भ्रामक | ||
3. | इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं। | यहाँ के पक्षी प्रकृति में सुरक्षित अनुभव करते हैं, इसलिए वे निडर होकर कल्लोल करते हैं। | ✔ |
यहाँ के पक्षी नगर से डरकर इस जगह आ गए हैं इसलिए वे कल्लोल करते हैं। | भ्रामक | ||
4. | जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है। | गंगाजल की ठंडक और मिठास का अनुभव बहुत मनोहारी है। | ✔ |
गंगाजल की शीतलता और मिठास से शक्कर और बरफ बनाई जा सकती है। | भ्रामक | ||
5. | एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया। | लेखक ने गंगा के समीप बैठकर भोजन किया, जिससे उनकी प्रकृति से निकटता झलकती है। | ✔ |
लेखक ने भोजन इसलिए बनाया क्योंकि गंगा का पानी बहुत गरम था और वह पकाने में सहायक था। | भ्रामक | ||
6. | निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। | लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर प्रकाशित किया जाए। | ✔ |
लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर कहीं स्थान दिया जाए, यानी इसे पढ़ा और सँजोया जाए। | भ्रामक |
पंक्तियों पर चर्चा
पाठ से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए।
(क) “यहाँ की कुशा सबसे विलक्षण होती है जिसमें से दालचीनी, जावित्री इत्यादि की अच्छी सुगंध आती है। मानो यह प्रत्यक्ष प्रगट होता है कि यह ऐसी पुण्यभूमि है कि यहाँ की घास भी ऐसी सुगंधमय है।”
अर्थ: लेखक कहते हैं कि हरिद्वार की कुशा (पवित्र घास) में दालचीनी और जावित्री जैसी सुगंध आती है, जो इस तीर्थ की पवित्रता को दर्शाती है। यहाँ तक कि घास भी इतनी सुगंधित है, जो इस स्थान की विशेषता को प्रकट करती है।
(ख) “अहा! इनके जन्म भी धन्य हैं जिनसे अर्थी विमुख जाते ही नहीं। फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।”
अर्थ: लेखक वृक्षों की उदारता की प्रशंसा करते हैं कि वे फल, फूल, छाया, पत्ते, छाल, लकड़ी, जड़, यहाँ तक कि जलने पर भी कोयले और राख से लोगों की जरूरतें पूरी करते हैं। यह वृक्षों के निस्वार्थ स्वभाव को दर्शाता है।
सोच-विचार के लिए
पाठ को पुनः ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए।
(क) “और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ…” लेखक का यह वाक्य क्या दर्शाता है? क्या आपने कभी किसी स्थान को छोड़कर ऐसा अनुभव किया है? कब-कब?
(संकेत – किसी स्थान से लौटने के बाद भी उसी के विषय में सोचते रहना)
उत्तर: यह वाक्य दर्शाता है कि हरिद्वार की यात्रा ने लेखक के मन पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि वे शारीरिक रूप से वहाँ से लौट आए, पर उनका मन अभी भी हरिद्वार की शांति और सुंदरता में रमा हुआ है।
निजी अनुभव: हाँ, मैंने एक बार अपने गाँव की यात्रा की थी, जहाँ नदी और खेतों की हरियाली ने मुझे बहुत शांति दी। लौटने के बाद भी मैं उस शांति को याद करता हूँ।
(ख) “पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। एक पैसे को लाख करके मान लेते हैं।”
लेखक का यह कथन आज के समाज में कितना सच है? क्या अब भी ऐसे संतोषी लोग मिलते हैं? अपने विचार उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर: लेखक का यह कथन बताता है कि हरिद्वार के पंडे बहुत संतोषी हैं और थोड़े में ही खुश रहते हैं। आज के समाज में ऐसे लोग कम ही मिलते हैं, क्योंकि लोग अधिक धन और सुख-सुविधाओं के पीछे भागते हैं। हालांकि, मेरे गाँव में एक बुजुर्ग दुकानदार हैं, जो कम कीमत में सामान बेचकर भी खुश रहते हैं और ग्राहकों की मदद करते हैं।
(ग) “मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। यह स्थान भी उस क्षेत्र में टिकने योग्य ही है।”
आपके विचार से लेखक ने उस स्थान को ‘टिकने योग्य’ क्यों कहा है? उस स्थान में कौन-कौन सी विशेषताएँ होंगी जो उसे ‘टिकने योग्य’ बनाती होंगी?
उत्तर: लेखक ने उस स्थान को ‘टिकने योग्य’ इसलिए कहा क्योंकि वहाँ शीतल हवा, शांति, और प्राकृतिक सुंदरता थी। बंगला ऊँचाई पर था, जिससे चारों ओर का दृश्य दिखता होगा। साथ ही, यह हरिद्वार के पवित्र वातावरण में था, जो मन को शांति देता था।
(घ) “फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।”
इस वाक्य के माध्यम से आपको वृक्षों के महत्व के बारे में कौन-कौन सी बातें सूझ रही हैं?
उत्तर: वृक्ष बहुत उदार होते हैं। वे हमें फल, फूल, छाया, पत्ते, छाल, लकड़ी, बीज, और जड़ देते हैं। जलने पर भी उनकी राख और कोयले उपयोगी होते हैं। इससे पता चलता है कि वृक्ष जीवन के हर क्षेत्र में उपयोगी हैं और बिना कुछ माँगे सब कुछ देते हैं।
अनुमान और कल्पना से
(क) “यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है।”
कल्पना कीजिए कि आप हरिद्वार में हैं। आप वहाँ क्या-क्या करना चाहेंगे?
उत्तर: हरिद्वार में मैं गंगा जी में स्नान करूँगा, हरि की पैड़ी पर पूजा करूँगा, चण्डिका देवी के मंदिर जाऊँगा, और गंगा तट पर टहलते हुए प्रकृति का आनंद लूँगा। मैं वहाँ की कुशा और जनेऊ भी खरीदूँगा।
(ख) “जल के छलके पास ही ठंढे-ठंढे आते थे।”
कल्पना कीजिए कि आप गंगा के तट पर हैं और पानी के छींटे आपके मुँह पर आ रहे हैं। अपने अनुभवों को अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर: गंगा के तट पर बैठा हूँ, ठंडे पानी के छींटे मेरे चेहरे पर पड़ रहे हैं। हवा शीतल और ताज़ा है, जो मन को शांति दे रही है। गंगा का कलकल बहता पानी और पक्षियों की चहचहाहट मेरे मन को खुशी से भर रही है। ऐसा लगता है जैसे सारी चिंताएँ गंगा जी में बह गईं।
(ग) “सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।”
यदि पेड़-पौधे सच में मनुष्यों की तरह व्यवहार करने लगें तो क्या होगा?
उत्तर: यदि पेड़-पौधे मनुष्यों की तरह व्यवहार करें तो वे हमसे बात करेंगे, अपनी जरूरतें बताएँगे, और शायद अपनी रक्षा के लिए आवाज़ उठाएँगे। वे हमें प्यार से फल और छाया देंगे, लेकिन अगर कोई उन्हें नुकसान पहुँचाए तो वे नाराज़ भी हो सकते हैं। इससे हमें उनकी और अधिक देखभाल करनी होगी।
(घ) “यहाँ पर श्री गंगा जी दो धारा हो गई हैं- एक का नाम नील धारा, दूसरी श्री गंगा जी ही के नाम से।”
इस पाठ में ‘गंगा’ शब्द के साथ ‘श्री’ और ‘जी’ लगाया गया है। आपके अनुसार उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा?
उत्तर: लेखक ने ‘गंगा’ के साथ ‘श्री’ और ‘जी’ इसलिए लगाया क्योंकि गंगा को वे पवित्र और देवी के रूप में मानते हैं। यह आदर और श्रद्धा दिखाने का तरीका है, जैसे हम किसी सम्मानित व्यक्ति के नाम के साथ ‘जी’ लगाते हैं।
(ङ) कल्पना कीजिए कि आप हरिद्वार एक श्रवणबाधित या दृष्टिबाधित व्यक्ति के साथ गए हैं। उसकी यात्रा को अच्छा बनाने के लिए कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर:
श्रवणबाधित व्यक्ति के लिए: मैं संकेतों और लिखित संदेशों से बात करूँगा। गंगा के पानी के स्पर्श और हवा की शीतलता का अनुभव करवाऊँगा। मंदिर की घंटियों की कंपन को महसूस करवाऊँगा।
दृष्टिबाधित व्यक्ति के लिए: मैं हरिद्वार के दृश्यों का वर्णन बोलकर सुनाऊँगा, जैसे गंगा का बहना, पर्वतों की हरियाली। उन्हें गंगा का पानी छूने और मंदिर की मूर्तियों को स्पर्श करने का मौका दूँगा।
लिखें संवाद
(क) “मेरे संग कल्लू जी मित्र भी परमानंदी थे।”
लेखक और कल्लू जी के बीच हरिद्वार यात्रा पर एक कल्पनात्मक संवाद लिखिए।
उत्तर:
- लेखक: कल्लू जी, देखो यह गंगा जी का जल कितना शीतल और स्वच्छ है!
- कल्लू जी: हाँ, हरिश्चंद्र जी, यहाँ का वातावरण तो मन को शांति देता है। क्या तुमने हरि की पैड़ी पर स्नान किया?
- लेखक: हाँ, स्नान करने से मन ऐसा निर्मल हुआ कि वर्णन नहीं कर सकता। रात को ग्रहण में स्नान का आनंद और भी खास था।
- कल्लू जी: सचमुच, यह पुण्यभूमि है। मुझे तो यहाँ की कुशा की सुगंध बहुत पसंद आई।
- लेखक: हाँ, यहाँ की हर चीज़ में पवित्रता है। चलो, गंगा तट पर भोजन बनाकर खाएँ।
(ख) “यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है।”
लेखक और प्रकृति के बीच एक कल्पनात्मक संवाद तैयार कीजिए- जैसे पर्वत बोल रहे हों।
उत्तर:
- लेखक: हे पर्वत, तुम इतने सुंदर और शांत क्यों हो?
- पर्वत: हम यहाँ गंगा जी की रक्षा के लिए खड़े हैं। हमारी हरियाली और शांति तीर्थयात्रियों को सुकून देती है।
- लेखक: तुम्हारे ऊपर ये लताएँ और वृक्ष कितने सुंदर लगते हैं!
- पर्वत: हाँ, ये मेरे आभूषण हैं। ये सज्जनों की तरह सबको फल और छाया देते हैं।
- लेखक: तुम्हें देखकर मेरा मन प्रसन्न हो गया। मैं फिर आऊँगा।
- पर्वत: आओ, हम सदा तुम्हारा स्वागत करेंगे।
‘है’ और ‘हैं’ का उपयोग
इन वाक्यों में रेखांकित शब्दों के प्रयोग पर ध्यान दीजिए-
- विशेष आश्चर्य का विषय यह है कि यहाँ केवल गंगा जी ही देवता हैं, दूसरा देवता नहीं।
- यों तो वैरागियों ने मठ मंदिर कई बना लिए हैं।
आप जानते ही हैं कि एकवचन संज्ञा शब्दों के साथ ‘है’ का प्रयोग किया जाता है और बहुवचन संज्ञा शब्दों के साथ ‘हैं’ का। सोचिए, ‘गंगा’ शब्द एकवचन है, फिर भी इसके साथ ‘हैं’ क्यों लिखा गया है?
इसका कारण यह है कि कभी-कभी हम आदर-सम्मान प्रदर्शित करने के लिए एकवचन संज्ञा शब्दों को भी बहुवचन के रूप में प्रयोग करते हैं। इसे ‘आदरार्थ बहुवचन’ प्रयोग कहते हैं। उदाहरण के लिए-
- मेरे पिता जी सो रहे हैं।
- भारत के प्रधानमंत्री भाषण दे रहे हैं।
अब ‘आदरार्थ बहुवचन’ को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
उत्तर:
- प्रधानाचार्य जी विद्यालय में नहीं हैं, वे अभी सभा में उपस्थित हैं।
- माता-पिता हमारे जीवन के मार्गदर्शक होते हैं, हमें उनका कहना मानना चाहिए।
- मेरी बहन बाजार जा रही है, वहाँ से किताबें ले आएगी।
- बाहर फेरीवाला है। उसे बुला लाओ।
- डाकिया जी आए हैं। उन्हें भी बुला लाओ।
- आप तो बहुत दिन बाद आए हैं, आपका स्वागत है।
- डॉक्टर साहब बहुत विद्वान हैं, उनसे परामर्श लेना चाहिए।
- आपके माता-पिता कहाँ हैं? क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ?
- ये हमारे हिंदी के अध्यापक हैं, हम उनसे बहुत कुछ सीखते समझते हैं।
- बंदर पेड़ पर उछल-कूद कर रहा है।
भावों की पहचान
नीचे कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं। सोचिए कि इनमें कौन-सा भाव प्रकट हो रहा है? पहचानिए और चुनकर लिखिए-
- उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।
भाव: संतोष, शांति - चित्त में बारं बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था।
भाव: वैराग्य, भक्ति - पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं।
भाव: संतोष - हर तरफ पवित्रता और प्रसन्नता बिखरी हुई थी।
भाव: शांति, प्रसन्नता - सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।
भाव: परोपकार
काल की पहचान
“यहाँ हरि की पैड़ी नामक एक पक्का घाट है और यहीं स्नान भी होता है।”
आप जानते ही होंगे कि काल के तीन भेद होते हैं- भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल। परस्पर चर्चा करके पता लगाइए कि ऊपर दिए गए वाक्य में कौन-सा काल प्रदर्शित हो रहा है? सही पहचाना, यह वाक्य वर्तमान काल को प्रदर्शित कर रहा है।
(क) नीचे दी गई पाठ की इन पंक्तियों को पढ़कर बताइए, इनमें क्रिया कौन-से काल को प्रदर्शित कर रही है?
(भूतकाल/वर्तमान/भविष्य)
- निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। भविष्य काल
- यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है। वर्तमान काल
- वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते हैं। वर्तमान काल
- चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। भूतकाल
- मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। भूतकाल
(ख) अब इन वाक्यों के काल को अन्य कालों में बदलकर लिखिए और नए वाक्य बनाइए।
1. निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। (भविष्य काल)
- भूतकाल: निश्चय था कि आप इस पत्र को स्थानदान दे चुके हैं।
- वर्तमान काल: निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दे रहे हैं।
2. यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है। (वर्तमान काल)
- भूतकाल: यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी थी।
- भविष्य काल: यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी होगी।
3. वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते हैं। (वर्तमान काल)
- भूतकाल: वृक्ष ऐसे थे कि पत्थर मारने से फल देते थे।
- भविष्य काल: वृक्ष ऐसे होंगे कि पत्थर मारने से फल देंगे।
4. चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। (भूतकाल)
- वर्तमान काल: चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता है।
- भविष्य काल: चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होगा।
5. मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। (भूतकाल)
- वर्तमान काल: मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका हूँ।
- भविष्य काल: मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिकूँगा।
पत्र की रचना
“और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ…”
इस पंक्ति में लेखक संपादक महोदय को संबोधित करके अपनी बात लिख रहे हैं। आप जानते ही होंगे कि पत्र जिस व्यक्ति के लिए लिखा जाता है, उसे संबोधित किया जाता है। पत्र के अंत में अपना नाम लिखा जाता है ताकि पत्र पाने वाले को पता चल सके कि पत्र किसने लिखा है।
नीचे इस पत्र की कुछ विशेषताएं दी गई हैं। अपने समूह के साथ मिलकर इन विशेषताओं से जुड़े वाक्यों से इनका मिलान कीजिए –
उत्तर:
क्रम | पत्र की विशेषताएँ | पत्र से उदाहरण |
---|---|---|
1. | व्यक्तिपरकता | मुझे हरिद्वार का समाचार लिखने में बड़ा आनंद होता है… |
2. | संवादात्मकता | और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ… |
3. | स्वाभाविक शैली | यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है… |
4. | व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन | एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके… |
5. | अभिवादन या संबोधन | श्रीमान कविवचन सुधा संपादक महामहिम मित्रवरेषु! |
6. | हस्ताक्षर | आपका मित्र – यात्री |
7. | उपसंहार और निवेदन | निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। |
8. | मुख्य विषय-वस्तु | हरिद्वार की प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिकता, साधु-संन्यासियों का जीवन, गंगा स्नान आदि का अत्यंत विस्तार से वर्णन। |
शब्द से जुड़े शब्द
नीचे दिए गए स्थानों में ‘हरिद्वार’ से जुड़े शब्द अपने मन से या पाठ से चुनकर लिखिए-
उत्तर:
लेखन के अनोखे तरीके
(क) ‘हरिद्वार’ पाठ में लेखक ने हरिद्वार के अपने अनुभवों को बहुत ही साहित्यिक और कल्पनाशील भाषा में प्रस्तुत किया है जिसमें कई स्थानों पर उन्होंने तुलनात्मक वाक्यों के माध्यम से दृश्यों का वर्णन किया है।
जैसे- हरी-भरी लताओं की तुलना सज्जनों से इस प्रकार की गई है-
“पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है।”
नीचे कुछ तुलनात्मक वाक्य दिए गए हैं। पाठ में ढूंढिए की इन तुलनात्मक वाक्यों को लेखक ने किस प्रकार विशिष्ट तरीके से लिखा है यानी विशिष्टता प्रदान की है?
1. वृक्षों की तुलना साधुओं से की गई है।
- वाक्य: “बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं।”
- विशिष्टता: लेखक ने वृक्षों को साधुओं से तुलना करके उनकी तपस्या और सहनशीलता को दर्शाया है। यह चित्रात्मक और आध्यात्मिक शैली में लिखा गया है।
2. गंगाजल की मिठास की तुलना चीनी से की गई है।
- वाक्य: “जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है।”
- विशिष्टता: गंगाजल की मिठास और शीतलता को चीनी के घोल और बर्फ से तुलना करके लेखक ने इसे बहुत जीवंत और स्वादिष्ट रूप में प्रस्तुत किया है।
3. हरियाली की तुलना गलीचे से की गई है।
- वाक्य: “वर्षा के कारण सब ओर हरियाली ही दिखाई पड़ती थी मानो हरे गलीचा की जात्रियों के विश्राम के हेतु बिछायत बिछी थी।”
- विशिष्टता: हरियाली को गलीचे से तुलना करके लेखक ने प्रकृति की सुंदरता और मेहमाननवाजी को चित्रित किया है।
4. नदी की धारा की तुलना राजा भगीरथ के यश (कीर्ति) से की गई है।
- वाक्य: “एक ओर त्रिभुवन पावनी श्री गंगा जी की पवित्र धारा बहती है जो राजा भगीरथ के उज्ज्वल कीर्ति की लता-सी दिखाई देती है।”
- विशिष्टता: गंगा की धारा को भगीरथ की कीर्ति की लता से तुलना करके लेखक ने गंगा की पवित्रता और भगीरथ के तप को जोड़ा है।
(ख) “मैं उस पुण्य भूमि का वर्णन करता हूँ जहाँ प्रवेश करने ही से मन शुद्ध हो जाता है।”
“पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। एक पैसे को लाख करके मान लेते हैं।”
उपर्युक्त पंक्तियों को ध्यान से देखिए, ये आज की हिंदी की तरह नहीं लिखी गई हैं। इसे लेखक ने न केवल अपनी शैली में लिखा है, अपितु इसमें प्राचीन हिंदी भाषा की छवि भी दिखाई देती है। नीचे कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं आप इन्हें आज की हिंदी में लिखिए।
1. “इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं।”
आज की हिंदी: इन वृक्षों पर कई रंगों के पक्षी चहचहाते हैं और शहर के शिकारियों से बिना डरे शोर मचाते हैं।
2. “वर्षा के कारण सब ओर हरियाली ही दृष्टि पड़ती थी मानो हरे गलीचा की जात्रियों के विश्राम के हेतु बिछायत बिछी थी।”
आज की हिंदी: बारिश के कारण चारों ओर हरियाली ही दिखाई देती थी, जैसे यात्रियों के आराम के लिए हरा कालीन बिछा हो।
3. “यह ऐसा निर्मल तीर्थ है कि इच्छा क्रोध की खानि जो मनुष्य हैं सो वहाँ रहते ही नहीं।”
आज की हिंदी: यह इतना पवित्र तीर्थ है कि इच्छा और क्रोध से भरे लोग वहाँ टिकते ही नहीं।
4.“मेरा तो चित्त वहाँ जाते ही ऐसा प्रसन्न और निर्मल हुआ कि वर्णन के बाहर है।”
आज की हिंदी: मेरा मन वहाँ जाते ही इतना खुश और शुद्ध हुआ कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
5.”यहाँ रात्रि को ग्रहण हुआ और हम लोगों ने ग्रहण में बड़े आनंदपूर्वक स्नान किया और दिन में श्री भागवत का पारायण भी किया।”
आज की हिंदी: यहाँ रात को ग्रहण हुआ और हमने बड़े आनंद से स्नान किया, साथ ही दिन में श्री भागवत का पाठ भी किया।
6.”उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।”
आज की हिंदी: उस समय पत्थर पर खाए भोजन का सुख सोने की थाली के भोजन से कहीं बेहतर था।
7. “निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा।”
आज की हिंदी: मुझे विश्वास है कि आप इस पत्र को प्रकाशित करेंगे।
(ग) इस रचना में हरिश्चंद्र जी ने कहीं-कहीं प्राचीन वर्तनी का प्रयोग किया है, जैसे- शिखर के लिए शिषर, यात्रियों के लिए जात्रियों। ऐसे शब्दों की सूची बनाइए। आप इन शब्दों को कैसे लिखते हैं? कक्षा में चर्चा कीजिए।
प्राचीन वर्तनी | आज की वर्तनी |
---|---|
शिषर | शिखर |
जात्रियों | यात्रियों |
बिछायत | बिछाया |
मनोर्थ | मनोरथ |
दृष्टि पड़ती | दिखाई देती |
पाठ से आगे
आपकी बात
1. “मैंने गंगा जी के तट पर रसोई करके… भोजन किया।” क्या आपने कभी खुले वातावरण में या प्रकृति के पास भोजन किया किया है? वह अनुभव घर के खाने से कैसे भिन्न था?
उत्तर: हाँ, मैंने एक बार पार्क में पिकनिक के दौरान खाना खाया था। खुली हवा, पेड़ों की छाया, और पक्षियों की आवाज़ ने उस अनुभव को बहुत खास बनाया। घर के खाने से यह अलग था क्योंकि प्रकृति के बीच खाना खाने से मन को शांति और ताजगी मिली।
2. “उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।” आपके जीवन में ऐसा ऐसा कोई क्षण क्षण आया, जब किसी सामान्य-सी वस्तु ने आपको गहरा सुख दिया हो? उसके बारे में बताइए।
उत्तर: एक बार मैंने अपने दोस्त के साथ साइकिल चलाते हुए रास्ते में एक साधारण चाय की दुकान पर चाय पी। उस चाय का स्वाद और दोस्त के साथ हँसी-मजाक ने मुझे बहुत खुशी दी।
3. “हर तरफ पवित्रता और प्रसन्नता बिखरी हुई थी।” आपको किस स्थान पर पवित्रता और प्रसन्नता का अनुभव होता है? क्या कोई ऐसा स्थान है जहाँ जाते ही मन शांत हो गया हो? उस स्थान की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
उत्तर: मुझे अपने गाँव के मंदिर में बहुत शांति मिलती है। वहाँ की शांत हवा, फूलों की सुगंध, और घंटियों की आवाज़ मुझे बहुत अच्छी लगती है।
4. पाठ में वर्णित है, यहाँ के वृक्ष “फल, फूल, गंध… जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।” क्या आपके जीवन में कोई पेड़, फूल या प्राकृतिक वस्तु है जिससे आप विशेष जुड़ाव महसूस करते हैं? क्यों?
उत्तर: मेरे घर के पास एक आम का पेड़ है। मुझे उसकी छाया और फल बहुत पसंद हैं। गर्मियों में उसकी छाया में बैठना और आम खाना मुझे बहुत खुशी देता है।
स्वास्थ्य और योग
“चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था।”
अनेक लोग आज भी मन की शांति, स्वास्थ्य लाभ और भक्ति के लिए तीर्थ और पर्वतीय स्थानों की यात्रा करते हैं। मन की शांति और स्वास्थ्य के लिए हमारे देश में हजारों वर्षों से योग भी किया जाता रहा है।
(क) 5 मिनट ध्यान लगाकर या मौन बैठकर अपने आस-पास की ध्वनियों को सुनिए, अपनी श्वास पर ध्यान दीजिए तथा ध्यान को केंद्रित करने का प्रयास कीजिए। इस अनुभव के विषय में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर: मैंने 5 मिनट तक शांत बैठकर ध्यान लगाया। मैंने पक्षियों की चहचहाहट, हवा की सरसराहट, और दूर से आती बच्चों की आवाज़ें सुनीं। अपनी साँसों पर ध्यान केंद्रित करने से मेरा मन शांत हुआ और मैं तनावमुक्त महसूस करने लगा। यह अनुभव मुझे बहुत सुकून देने वाला लगा।
(ख) अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में अपने विद्यालय के कार्यक्रमों को बताने के लिए एक ‘सूचना’ लिखिए जिसे सूचना-पट पर लगाया जा सके।
उत्तर:
सूचना
दिनांक:
विषय: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम
प्रिय विद्यार्थियों,
आपको सूचित किया जाता है कि हमारे विद्यालय में 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा। इस अवसर पर सुबह 7 बजे से 8 बजे तक योग सत्र आयोजित होगा, जिसमें सभी विद्यार्थी भाग लेंगे। कृपया अपने योग मैट और आरामदायक कपड़े साथ लाएँ। योग के बाद एक छोटा व्याख्यान भी होगा।
प्रधानाचार्य
सज्जन वृक्ष
“सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।”
आप जानते ही हैं कि पेड़-पौधे हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। किंतु हमारे ही कार्यों के कारण वे कम होते जा रहे हैं। आइए, पेड़-पौधों को अपना मित्र बनाएँ।
(क) एक पौधा लगाइए और उसकी देखभाल कीजिए ताकि वह कुछ वर्षों में बड़ा पेड़ बन सके। उसे एक नाम दीजिए और उसका मित्र बनिए।
उत्तर: मैंने एक नीम का पौधा लगाया और उसका नाम ‘हरा’ रखा। मैं उसे रोज़ पानी देता हूँ और उसकी मिट्टी की देखभाल करता हूँ। वह मेरा मित्र है क्योंकि वह मुझे छाया और ताज़ी हवा देता है।
(ख) उसके बारे में अपनी दैनंदिनी में नियमित रूप से लिखिए।
उदाहरण: आज मैंने हरा को पानी दिया। उसकी पत्तियाँ हरी और चमकदार हो रही हैं। मुझे उसकी देखभाल करके बहुत खुशी मिलती है।
अपने शब्द
“शीतल वायु… स्पर्श ही से पावन करता हुआ संचार करता है।”
आइए, एक रोचक गतिविधि करते हैं। ‘शीतल’ शब्द को केंद्र में रखिए और उसके चारों ओर ये चार बातें लिखिए-
उत्तर:
- अर्थ: ठंडा, सुकून देने वाला
- विपरीतार्थक शब्द: गर्म, उष्ण
- समानार्थी शब्द: ठंडा, सुहाना
- वाक्य प्रयोग: गंगा का शीतल जल मुझे बहुत सुकून देता है।
यात्रा के व्यय की गणना
इस पत्र में आपने हरिद्वार की एक यात्रा का वर्णन पढ़ा है। मान लीजिए कि आपको अपने मित्रों या अभिभावकों के साथ अपनी रुचि के किसी स्थान की यात्रा करनी है। उस स्थान को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) मान लीजिए कि यात्रा के लिए आपको ₹1000 दिए गए हैं। यात्रा, खाना आदि सब मिलाकर एक व्यय विवरण बनाइए।
उत्तर:
- यात्रा (बस किराया): ₹400
- भोजन: ₹300
- स्मृति चिह्न: ₹100
- अन्य खर्च (पानी, प्रवेश शुल्क): ₹100
- बचत: ₹100
(ख) मान लीजिए कि आप इस यात्रा में एक छोटी वस्तु (स्मृति चिह्न) खरीदना चाहते हैं। आप क्या खरीदेंगे और क्यों?
(संकेत – सोचिए, क्या वह आवश्यक है? बजट कैसे संभालेंगे?)
उत्तर: मैं एक छोटी गंगा माता की मूर्ति खरीदूँगा। यह मेरी यात्रा की याद दिलाएगी और मेरे लिए आध्यात्मिक महत्व रखती है। मैं इसे अपने बजट में ₹100 में खरीद लूँगा।
यात्रा सबके लिए
(क) कल्पना कीजिए कि कुछ मित्रों का समूह एक यात्रा पर जा रहा है। आप या टूरिस्ट गाइड हैं। आप इन सबकी यात्रा को सुविधाजनक बनाने के के लिए किन-किन बातों का ध्यान ध्यान रखेंगे?
उपर्युक्त चित्र में सबकी अलग-अलग आवश्यकताएँ हो सकती हैं। इन्हें ध्यान में रखते हुए सोचिए कि वहाँ पहुँचने, घूमने, भोजन आदि में आप कैसे सहायता करेंगे?
उत्तर:
✅ 1. यात्रा की योजना (Planning)
- यात्रा से पहले सभी सदस्यों को यात्रा का कार्यक्रम (itinerary) समझाऊँगा।
- आने-जाने के साधनों, ठहरने की व्यवस्था, भोजन आदि की जानकारी दूँगा।
- मार्ग, मौसम और स्थान से जुड़ी आवश्यक जानकारी साझा करूँगा।
✅ 2. विशेष आवश्यकताओं का ध्यान
- यदि किसी यात्री को विशेष ज़रूरतें हैं (जैसे – दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित, वृद्धजन), तो उनके अनुसार अलग-अलग सहायता की व्यवस्था करूँगा।
- व्हीलचेयर, संकेत भाषा, श्रव्य गाइड आदि की तैयारी रखूँगा।
✅ 3. सुरक्षा का ध्यान
- सभी को आपातकालीन नंबर, स्थान की सीमाएँ और सावधानियों के बारे में बताऊँगा।
- समूह को एक साथ रखने का प्रयास करूँगा, ताकि कोई खो न जाए।
✅ 4. भोजन और पानी की व्यवस्था
- शुद्ध और पौष्टिक भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित करूँगा।
- सभी के लिए पीने का साफ पानी उपलब्ध रहेगा।
✅ 5. भाषा और जानकारी
जिन स्थानों की यात्रा की जा रही है, वहाँ के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक महत्व की जानकारी सरल भाषा में दूँगा।
✅ 6. स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण
- समूह को पर्यावरण का महत्व समझाते हुए साफ-सफाई बनाए रखने के लिए प्रेरित करूँगा।
- कचरा ना फैलाएँ, धरोहरों को नुक़सान न पहुँचाएँ – यह समझाऊँगा।
✅ 7. यात्रा को आनंददायक बनाना
- मनोरंजन के लिए बीच-बीच में रोचक किस्से, लोककथाएँ या गीत साझा करूँगा।
- बच्चों, युवाओं और वृद्धों – सभी को शामिल करते हुए गतिविधियाँ करवाऊँगा।
(ख) अपने किसी मित्र के साथ बिना बोले संवाद कीजिए। – संकेतों से। अब सोचिए कि यात्रा में श्रवणबाधित व्यक्ति के लिए क्या-क्या आवश्यक होगा?
उत्तर: बिना बोले संवाद करने के लिए हम इशारों, हावभाव, चेहरे के भाव और हाथों की गतिविधियों का प्रयोग कर सकते हैं। यह “संकेत भाषा” कहलाती है।
(ग) यात्रा करते हुए ऐतिहासिक धरोहरों या भवनों की सुरक्षा के लिए आप किन किन बातों का ध्यान रखेंगे?
उत्तर:
- कचरा न फैलाएँ।
- दीवारों पर कुछ न लिखें।
- ऐतिहासिक वस्तुओं को छूने से बचें।
- गाइड के निर्देशों का पालन करें।
आज की पहेली
पाठ में से शब्द खोजिए और नीचे दिए गए रिक्त स्थानों में लिखिए-
- एक मसाले का नाम: दालचीनी
- कपास से जुड़ा एक शब्द: जनेऊ
- जहाँ स्नान होता है: हरि की पैड़ी
- वृक्ष के किसी अंग का नाम: पत्ते
- एक नगर या तीर्थ का नाम: हरिद्वार
- व्यापार से जुड़ा स्थान: दुकानें
- एक नदी का नाम: गंगा
- एक पर्वत का नाम: विल्वपर्वत
- एक धार्मिक ग्रंथ का नाम: भागवत
झरोखे से
भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखे एक और पत्र का एक अंश नीचे दिया गया है। इसे पढ़िए और आपस में विचार कीजिए।
उत्तर:
भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखे गए इस पत्र के अंश में यह स्पष्ट होता है कि वे प्रकृति के प्रति अत्यंत संवेदनशील और सजग व्यक्ति थे। हरिद्वार के मार्ग में उन्होंने जो देखा, उसका उन्होंने सजीव और संवेदनात्मक चित्र प्रस्तुत किया है।
- वृक्ष और पक्षियों का मनोहारी दृश्य – उन्होंने पीले रंग के सुंदर पक्षी और विशेष रूप से बया पक्षी का उल्लेख किया है, जिनके घोंसले काँटे वाले बबूल के पेड़ पर लटकते हुए पाए गए। यह दृश्य उन्हें बहुत ही आकर्षक और चमत्कारी लगा।
- बया की शिल्पविद्या की प्रशंसा – वे बया पक्षियों की घोंसला बनाने की कलात्मक कुशलता की बहुत प्रशंसा करते हैं और मानते हैं कि उनके घोंसलों से उनकी प्रतिभा झलकती है।
- प्रकृति के गूढ़ संकेतों की ओर ध्यान – वे इस बात पर भी विचार करते हैं कि बया जैसे पक्षी काँटों वाले वृक्षों पर घर क्यों बनाते हैं, जो इस बात को दर्शाता है कि वे सुरक्षा और विवेकपूर्ण चुनाव करते हैं।
- आगे के स्थानों का संकेत – अंत में वे बताते हैं कि वे आगे ज्वालापुर, कनखल और हरिद्वार पहुँचेंगे और उनका वर्णन अगले पत्रों में करेंगे। इससे यह स्पष्ट होता है कि वे यात्रा को चरणबद्ध ढंग से वर्णित करना चाहते हैं।
खोजबीन के लिए
भारतेंदु हरिश्चंद्र का एक प्रसिद्ध नाटक है- अंधेर नगरी। इसे पुस्तकालय या इंटरनेट से ढूँढ़कर पढ़िए और अपने सहपाठियों के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा रचित नाटक “अंधेर नगरी” हिंदी साहित्य का एक प्रसिद्ध सामाजिक-राजनीतिक व्यंग्य नाटक है। इस नाटक के माध्यम से लेखक ने उस समय की न्याय-व्यवस्था, मूर्ख शासक, अंधभक्त जनता, और भ्रष्टाचार पर तीखा व्यंग्य किया है।
✦ संक्षिप्त कथानक (सारांश):
यह नाटक एक गुरू और दो चेलों की कथा के साथ शुरू होता है। गुरू अपने दो शिष्यों को यह सीख देने के लिए शहर की ओर भेजता है कि सही निर्णय कैसे लिया जाए।
शहर का नाम है – अंधेर नगरी, जहाँ सब कुछ “टके सेर” बिकता है – चाहे वह सब्ज़ी हो या मिठाई। यह बात एक शिष्य को अच्छी लगती है और वह वहीं रह जाता है, लेकिन गुरू चेतावनी देते हैं – “जहाँ टके सेर भाजी, वहाँ बैरियों की राजी।”
इस नगरी का राजा न्यायप्रिय नहीं, बल्कि मूर्ख है। जब एक दीवार गिरती है तो उसका दोष एक के बाद एक कई लोगों पर डाला जाता है, और अंत में एक निर्दोष कसाई को फाँसी की सज़ा दी जाती है।
जब कसाई को फाँसी दी जा रही होती है, तभी गुरूजी आकर युक्ति से राजा को यह विश्वास दिला देते हैं कि अगला जनम उसी को मिलेगा जो अब फाँसी पर चढ़ेगा। राजा लोभवश स्वयं फाँसी पर चढ़ जाता है।
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