पाठ से
मेरी समझ से
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर के सम्मुख तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
(1) “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागौं पाँय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।” इस दोहे में किसके विषय में बताया गया है?
- श्रम का महत्व
- गुरु का महत्व (★)
- ज्ञान का महत्व
- भक्ति का महत्व
(2) “अति का भला न बोलना अति का भला न चूप। अति का भला न बरसना अति की भली न धूप।।” इस दोहे का मूल संदेश क्या है?
- हमेशा चुप रहने में ही हमारी भलाई है
- बारिश और धूप से बचना चाहिए
- हर परिस्थिति में संतुलन होना आवश्यक है (★)
- हमेशा मधुर वाणी बोलनी चाहिए
(3) “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं फल लागै अति दूर।।” यह दोहा किस जीवन कौशल को विकसित करने पर बल देता है?
- समय का सदुपयोग करना
- दूसरों के काम नहीं आना (★)
- परिश्रम और लगन से काम करना
- सभी के प्रति उदार रहना
(4) “ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै आपहुँ सीतल होय।।” इस दोहे के अनुसार मधुर वाणी बोलने का सबसे बड़ा लाभ क्या है?
- लोग हमारी प्रशंसा और सम्मान करने लगते हैं
- दूसरों और स्वयं को मानसिक शांति मिलती है (★)
- किसी से विवाद होने पर उसमें जीत हासिल होती है
- सुनने वालों का मन इधर-उधर भटकने लगता है
(5) “साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे साँच है ता हिरदे गुरु आप।।” इस दोहे से क्या निष्कर्ष निकाला जा सकता है?
- सत्य और झूठ में कोई अंतर नहीं होता है
- सत्य का पालन करना किसी साधना से कम नहीं है
- बाहरी परिस्थितियाँ ही जीवन में सफलता तय करती हैं
- सत्य महत्वपूर्ण जीवन मूल्य है जिससे हृदय प्रकाशित होता है (★)
(6) “निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना निर्मल करै सुभाय।।” यहाँ जीवन में किस दृष्टिकोण को अपनाने की सलाह दी गई है?
- आलोचना से बचना चाहिए
- आलोचकों को दूर रखना चाहिए
- आलोचकों को पास रखना चाहिए (★)
- आलोचकों की निंदा करनी चाहिए
(7) “साधू ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै थोथा देइ उड़ाय।।” इस दोहे में ‘सूप’ किसका प्रतीक है?
- मन की कल्पनाओं का
- सुख-सुविधाओं का
- विवेक और सूझबूझ का (★)
- कठोर और क्रोधी स्वभाव का
(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने अलग-अलग उत्तर चुने हों। अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर
मैंने ये उत्तर इसलिए चुने क्योंकि प्रत्येक दोहा एक विशेष संदेश देता है। उदाहरण के लिए, “गुरु गोविंद” दोहा गुरु के महत्व को दर्शाता है, जो हमें सही मार्ग दिखाते हैं। इसी तरह, “अति का भला” दोहा संतुलन के महत्व को बताता है। अपने मित्रों के साथ चर्चा करके मैंने समझा कि हर उत्तर दोहे के अर्थ से जुड़ा है और हमें जीवन मूल्यों को समझने में मदद करता है।
मिलकर करें मिलान
(क) पाठ से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे स्तंभ 1 में दी गई हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें स्तंभ 2 में दिए गए इनके सही अर्थ या संदर्भ से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।
उत्तर
क्रम | स्तंभ 1 | स्तंभ 2 |
---|---|---|
1. | गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय। | गुरु शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और शिष्य गुरु का आदर करते हैं। (3) |
2. | अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। | जीवन में संतुलन महत्वपूर्ण है। (4) |
3. | ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। | हमें मधुर वाणी बोलनी चाहिए जिससे मन को शांति प्राप्त हो सके। (6) |
4. | निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। | आलोचकों को अपने पास रखना चाहिए। वे हमें हमारी गलतियाँ बताते हैं। (8) |
5. | जीवन में संतुलन महत्वपूर्ण है। | अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। (2) |
6. | हमें मधुर वाणी बोलनी चाहिए जिससे मन को शांति प्राप्त हो सके। | ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। (3) |
7. | विवेकशील व्यक्ति को अच्छे और बुरे की पहचान होती है। | साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। (5) |
8. | आलोचकों को अपने पास रखना चाहिए। वे हमें हमारी गलतियाँ बताते हैं। | निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। (4) |
(ख) नीचे स्तंभ 1 में दी गई दोहों की पंक्तियों को स्तंभ 2 में दी गई उपयुक्त पंक्तियों से जोड़िए-
उत्तर
स्तंभ 1 | स्तंभ 2 |
---|---|
1. गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय। | 8. बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥ |
2. अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। | 6. अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥ |
3. ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। | 2. औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय॥ |
4. निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। | 1. बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय॥ |
5. साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। | 4. सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय॥ |
6. कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय। | 7. जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय॥ |
7. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। | 5. पंथी को छाया नहीं, फल लागै अति दूर॥ |
8. साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। | 3. जाके हिरदे साँच है, ता हिरदे गुरु आप॥ |
पंक्तियों पर चर्चा
पाठ से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए-
(क) “कबिरा मन पंछी भया भावै तहवाँ जाय। जो जैसी संगति करै सो तैसा फल पाय”
अर्थ: यह दोहा बताता है कि मनुष्य का मन एक पक्षी की तरह स्वतंत्र होता है और वह जिस संगति में रहता है, उसी के अनुसार उसका व्यवहार और फल बनता है। अच्छी संगति अच्छे परिणाम देती है, जबकि बुरी संगति बुरे परिणाम देती है।
चर्चा: मेरे समूह में हमने माना कि संगति का प्रभाव हमारे विचारों और कार्यों पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि हम मेहनती मित्रों के साथ रहें, तो हम भी मेहनत करने लगते हैं।
(ख) “साँच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप। जाके हिरदे साँच है ता हिरदे गुरु आप।।”
अर्थ: यह दोहा कहता है कि सत्य बोलना सबसे बड़ा तप है और झूठ बोलना सबसे बड़ा पाप है। जो व्यक्ति सत्यनिष्ठ है, उसके हृदय में गुरु स्वयं निवास करते हैं।
चर्चा: हमने समूह में चर्चा की कि सत्य हमें आत्मविश्वास देता है और झूठ से बचने से मन शुद्ध रहता है। उदाहरण के लिए, यदि हम परीक्षा में सत्य बोलते हैं, तो हमें डर नहीं लगता।
सोच-विचार के लिए
पाठ को पुनः ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए-
(क) “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागौं पाँय।” इस दोहे में गुरु को गोविंद (ईश्वर) से भी ऊपर स्थान दिया गया है। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने विचार लिखिए।
मैं इससे सहमत हूँ क्योंकि गुरु हमें सही मार्ग दिखाते हैं और ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता बताते हैं। बिना गुरु के मार्गदर्शन के हम भटक सकते हैं। उदाहरण के लिए, मेरे शिक्षक ने मुझे अनुशासन सिखाया, जिससे मैं बेहतर इंसान बना।
(ख) “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।” इस दोहे में कहा गया है कि सिर्फ बड़ा या संपन्न होना ही पर्याप्त नहीं है। बड़े या संपन्न होने के साथ-साथ मनुष्य में और कौन-कौन सी विशेषताएँ होनी चाहिए? अपने विचार साझा कीजिए।
बड़े होने के साथ-साथ मनुष्य में उदारता, दूसरों की मदद करने की भावना, और विनम्रता होनी चाहिए। जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा है, पर छाया और फल नहीं देता, वैसे ही व्यक्ति को सिर्फ धनवान नहीं, बल्कि दूसरों के लिए उपयोगी होना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक धनी व्यक्ति यदि दान करता है, तो वह समाज के लिए उपयोगी होता है।
(ग) “ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोय।” क्या आप मानते हैं कि शब्दों का प्रभाव केवल दूसरों पर ही नहीं स्वयं पर भी पड़ता है? आपके बोले गए शब्दों ने आपके या किसी अन्य के स्वभाव या मनोदशा को कैसे परिवर्तित किया? उदाहरण सहित बताइए।
हाँ, मैं मानता हूँ कि शब्दों का प्रभाव दूसरों और स्वयं दोनों पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, एक बार मैंने अपने दोस्त को गुस्से में कठोर शब्द कहे, जिससे वह दुखी हुआ और मुझे भी बाद में पछतावा हुआ। फिर मैंने माफी माँगी और मधुर शब्दों से बात की, जिससे हम दोनों को शांति मिली।
(ङ) “जो जैसी संगति करै सो तैसा फल पाय।।” हमारे विचारों और कार्यों पर संगति का क्या प्रभाव पड़ता है? उदाहरण सहित बताइए।
संगति हमारे विचारों और कार्यों को बहुत प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, यदि हम मेहनती और सकारात्मक मित्रों के साथ रहते हैं, तो हम भी मेहनत और सकारात्मक सोच अपनाते हैं। मेरे एक मित्र ने मुझे किताबें पढ़ने की आदत डाली, जिससे मेरे अंक बेहतर हुए।
दोहे की रचना
“अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।”
इन दोनों पंक्तियों पर ध्यान दीजिए। इन दोनों पंक्तियों के दो-दो भाग दिखाई दे रहे हैं। इन चारों भागों का पहला शब्द है ‘अति’। इस कारण इस दोहे में एक विशेष प्रभाव उत्पन्न हो गया है। आप ध्यान देंगे तो इस कविता में आपको ऐसी कई विशेषताएँ दिखाई देंगी, जैसे- दोहों की प्रत्येक पंक्ति को बोलने में एक-समान समय लगता है। अपने-अपने समूह में मिलकर पाठ में दिए गए दोहों की विशेषताओं की सूची बनाइए।
(क) दोहों की उन पंक्तियों को चुनकर लिखिए जिनमें –
(1) एक ही अक्षर क्षर से प्रारंभ होने वाले (जैसे- राजा, रस्सी, रात) दो या दो से अधिक शब्द एक साथ आए हैं।
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। (साँच, झूठ)
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। (बड़ा, पेड़)
(2) एक शब्द एक साथ दो बार आया है। (जैसे- बार-बार)
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय। (गुरु, गोविंद)
अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। (अति, अति)
(3) लगभग एक जैसे शब्द, जिनमें केवल एक मात्रा भर का अंतर है (जैसे जल, जाल) एक ही पंक्ति में आए हैं।
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। (साँच, झूठ)
(4) एक ही पंक्ति में I में विपरीतार्थक शब्दों (जैसे— अच्छा-बु अच्छा-बुरा) का प्रयोग किया गया है।
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। (साँच, झूठ)
अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। (बोलना, चूप)
(5) किसी की तुलना किसी अन्य से की गई है। (जैसे दूध जैसा सफेद)
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। (बड़ा व्यक्ति, खजूर का पेड़)
साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। (साधू, सूप)
(6) किसी को कोई अन्य नाम दे दिया गया है। (जैसे- मुख चंद्र है)
कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय। (मन, पंछी)
(7) किसी शब्द की वर्तनी थोड़ी अलग है। (जैसे- ‘चुप’ के स्थान पर ‘चूप’)
अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। (चूप, सामान्यतः चुप)
(8) उदाहरण द्वारा कही गई बात को समझाया गया है।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। (खजूर के पेड़ का उदाहरण)
साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। (सूप का उदाहरण)
(ख) अपने समूह की सूची को कक्षा में सबके साथ साझा कीजिए।
हमने अपनी सूची कक्षा में साझा की और पाया कि सभी दोहों में विशेष शब्दों और उदाहरणों का उपयोग कबीर ने बहुत प्रभावी ढंग से किया है। प्रत्येक दोहा एक गहरा संदेश देता है और भाषा की सुंदरता को दर्शाता है।
अनुमान और कल्पना से
अपने समूह में मिलकर चर्चा कीजिए-
(क) “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागौं पाँय।”
यदि आपके सामने यह स्थिति होती तो आप क्या निर्णय लेते और क्यों?
मैं गुरु के चरणों में प्रणाम करता क्योंकि गुरु ही हमें ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता दिखाते हैं। मेरे शिक्षक ने मुझे सही-गलत का ज्ञान दिया, जिससे मैं बेहतर निर्णय ले सका।
यदि संसार में कोई गुरु या शिक्षक न होता तो क्या होता?
बिना गुरु के लोग भटक जाते, सही-गलत का ज्ञान नहीं होता, और समाज में अज्ञानता बढ़ जाती। उदाहरण के लिए, बिना शिक्षक के हमें गणित या विज्ञान समझने में कठिनाई होती।
(ख) “अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।”
यदि कोई व्यक्ति बहुत अधिक बोलता है या बहुत चुप रहता है तो उसके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
बहुत अधिक बोलने से लोग उसे गंभीरता से नहीं लेते, और बहुत चुप रहने से वह अपनी बात व्यक्त नहीं कर पाता। दोनों ही स्थिति में संतुलन की कमी से रिश्ते खराब हो सकते हैं।
यदि वर्षा आवश्यकता से अधिक या कम हो तो क्या परिणाम हो सकते हैं?
अधिक वर्षा से बाढ़ आ सकती है, और कम वर्षा से सूखा पड़ सकता है, जिससे फसलें नष्ट हो सकती हैं।
आवश्यकता से अधिक मोबाइल या मल्टीमीडिया का प्रयोग करने से क्या परिणाम हो सकते हैं?
अधिक मोबाइल उपयोग से समय बर्बाद होता है, आँखें खराब हो सकती हैं, और पढ़ाई में ध्यान कम लगता है।
(ग) “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।”
झूठ बोलने पर आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
झूठ बोलने से लोग हम पर भरोसा नहीं करते, और हमें पछतावा होता है। उदाहरण के लिए, यदि मैं होमवर्क न करने का झूठ बोलूँ, तो शिक्षक को पता चलने पर सजा मिल सकती है।
कल्पना कीजिए कि आपके शिक्षक ने आपके किसी गलत उत्तर के लिए अंक दे दिए हैं, ऐसी परिस्थिति में आप क्या करेंगे?
मैं शिक्षक को सत्य बताऊँगा और गलती सुधारने की कोशिश करूँगा, क्योंकि सत्य बोलने से मन शांत रहता है।
(घ) “ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।”
यदि सभी मनुष्य अपनी वाणी को मधुर और शांति देने वाली बना लें तो लोगों में क्या परिवर्तन आ सकते हैं?
लोग एक-दूसरे से प्रेम और सम्मान से बात करेंगे, जिससे झगड़े कम होंगे और समाज में शांति बढ़ेगी।
क्या कोई ऐसी परिस्थिति हो सकती है जहाँ कटु वचन बोलना आवश्यक हो? अनुमान अनुमान लगाइए।
हाँ, यदि कोई गलत काम कर रहा हो, तो उसे रोकने के लिए कठोर शब्द बोलना पड़ सकता है। जैसे, यदि कोई नियम तोड़ रहा हो, तो उसे चेतावनी देना जरूरी है।
(ङ) “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।”
यदि कोई व्यक्ति अपने बड़े होने का अहंकार रखता हो तो आप इस दोहे का उपयोग करते हुए उसे ‘बड़े होने या संपन्न होने’ का क्या अर्थ बताएँगे या समझाएँगे?
मैं कहूँगा कि बड़ा होना सिर्फ धन या पद से नहीं, बल्कि दूसरों की मदद करने और उदार होने से होता है। जैसे खजूर का पेड़ ऊँचा है, पर बेकार है, वैसे ही व्यक्ति को उपयोगी होना चाहिए।
खजूर, नारियल आदि ऊँचे वृक्ष अनुपयोगी नहीं होते हैं। वे किस प्रकार से उपयोगी हो सकते हैं? बताइए।
खजूर के फल खाए जाते हैं, और नारियल का पानी, तेल और गूदा उपयोगी होता है। ये पेड़ भोजन, छाया और अन्य संसाधन प्रदान करते हैं।
आप अपनी कक्षा का कक्षा नायक या नायिका (मॉनीटर) चुनने के लिए किसी विद्यार्थी की किन-किन विशेषताओं पर ध्यान देंगे?
मैं अनुशासित, मेहनती, मददगार, और सभी के साथ मधुर व्यवहार करने वाले विद्यार्थी को चुनूँगा।
(च) “निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।”
यदि कोई आपकी गलतियों को बताता रहे तो आपको उससे क्या लाभ होगा?
आलोचना से हमें अपनी कमियाँ पता चलती हैं, जिससे हम सुधार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, मेरे दोस्त ने बताया कि मैं जल्दी गुस्सा हो जाता हूँ, तो मैंने उस आदत को सुधारा।
यदि समाज में कोई भी एक-दूसरे की गलतियाँ न बताए तो क्या होगा?
लोग अपनी गलतियाँ नहीं सुधार पाएँगे, और समाज में गलत कार्य बढ़ जाएँगे।
(छ) “साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।”
कल्पना कीजिए कि आपके पास ‘सूप’ जैसी विशेषता है तो आपके जीवन में कौन-कौन से परिवर्तन आएँगे?
मैं अच्छे-बुरे में अंतर कर पाऊँगा, सही निर्णय लूँगा, और बेकार चीजों को छोड़ दूँगा। इससे मेरा जीवन व्यवस्थित और शांत होगा।
यदि हम बिना सोचे-समझे हर बात को स्वीकार कर लें तो उसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
हम गलत राह पर जा सकते हैं और धोखा खा सकते हैं। उदाहरण के लिए, गलत जानकारी मानने से पढ़ाई में नुकसान हो सकता है।
(ज) “कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।”
यदि मन एक पंछी की तरह उड़ सकता तो आप उसे कहाँ ले जाना चाहते और क्यों?
मैं अपने मन को प्रकृति के बीच ले जाना चाहूँगा, जैसे पहाड़ों या जंगल में, क्योंकि वहाँ शांति और प्रेरणा मिलती है।
संगति का हमारे जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ सकता है?
अच्छी संगति हमें सकारात्मक बनाती है, जबकि बुरी संगति गलत आदतें डाल सकती है। उदाहरण के लिए, मेहनती दोस्तों के साथ रहने से मैं भी मेहनत करने लगा।
वाद-विवाद
“अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।”
(क) इस दोहे का आज के समय में क्या महत्व है? इसके बारे में कक्षा में एक वाद-विवाद गतिविधि का आयोजन कीजिए। एक समूह के साथी इसके पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करेंगे और दूसरे समूह के साथी इसके विपक्ष में बोलेंगे। एक तीसरा समूह निर्णायक बन सकता है।
उत्तर
पक्ष: वाणी पर संयम रखना आज के समय में बहुत जरूरी है। सोशल मीडिया पर लोग बिना सोचे कुछ भी बोल देते हैं, जिससे विवाद होते हैं। संतुलित बोलचाल से रिश्ते बेहतर होते हैं।
विपक्ष: अत्यधिक चुप रहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि अपनी बात न कहने से गलतफहमियाँ बढ़ सकती हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई गलत बात हो रही हो, तो चुप रहना गलत है।
निष्कर्ष: दोनों पक्षों से यह स्पष्ट है कि संतुलन सबसे महत्वपूर्ण है। न अधिक बोलना चाहिए, न ही पूरी तरह चुप रहना चाहिए।
(ख) पक्ष और विपक्ष के समूह अपने-अपने मत के लिए तर्क प्रस्तुत करेंगे, जैसे-
पक्ष – वाणी पर संयम रखना आवश्यक है।
- संतुलित बोलचाल से लोग हमारी बात को गंभीरता से लेते हैं।
- अनावश्यक बोलना समय और ऊर्जा की बर्बादी है।
विपक्ष – अत्यधिक चुप रहना भी उचित नहीं है।
- चुप रहने से हम अपनी राय व्यक्त नहीं कर पाते।
- कुछ परिस्थितियों में बोलना जरूरी है, जैसे गलत को रोकने के लिए।
(ग) पक्ष और विपक्ष में प्रस्तुत तर्कों की सूची अपनी लेखन-पुस्तिका में लिख लीजिए।
ऊपर दिए गए तर्क मेरी लेखन-पुस्तिका में लिखे गए हैं।
शब्द से जुड़े शब्द
नीचे दिए गए स्थानों में कबीर से जुड़े शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए और अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए-
उत्तर
चर्चा: इन शब्दों से कबीर के दोहों का गहरा अर्थ समझ में आता है। जैसे, “साँच” और “झूठ” सत्य और असत्य के महत्व को दर्शाते हैं।
दोहे और कहावतें
“कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।
जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय।।”
इस दोहे को पढ़कर ऐसा लगता है कि यह बात तो हमने पहले भी अनेक बार सुनी है। यह दोहा इतना अधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय है कि इसकी दूसरी पंक्ति लोगों के बीच कहावत- ‘जैसा संग वैसा रंग’ (व्यक्ति जिस संगति में रहता है, वैसा ही उसका व्यवहार और स्वभाव बन जाता है।) की तरह प्रयुक्त होती है। कहावतें ऐसे वाक्य होते हैं जिन्हें लोग अपनी बात को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए प्रयोग करते हैं। इसमें सामान्यतः जीवन के गहरे अनुभव को सरल और संक्षेप में बता दिया जाता है।
अब आप ऐसी अन्य कहावतों का प्रयोग करते हुए अपने मन से कुछ वाक्य बनाकर लिखिए।
उत्तर
- जैसा बोए वैसा काटे: मेहनत से पढ़ाई करने वाला विद्यार्थी अच्छे अंक पाता है।
- जैसा संग वैसा रंग: अच्छे मित्रों के साथ रहने से मेरा व्यवहार सकारात्मक हो गया।
- मुँह में राम, बगल में छूरी: कुछ लोग मीठा बोलते हैं, पर मन में बुराई रखते हैं।
- नौ दिन चले अढ़ाई कोस: धीमा काम करने से लक्ष्य प्राप्ति में देरी होती है।
सबकी प्रस्तुति
पाठ के किसी एक दोहे को चुनकर अपने समूह के साथ मिलकर भिन्न-भिन्न प्रकार से कक्षा के सामने प्रस्तुत कीजिए। उदाहरण के लिए-
- गायन करना, जैसे लोकगीत शैली में।
- भाव-नृत्य प्रस्तुति।
- कविता पाठ करना।
- संगीत के साथ प्रस्तुत करना।
- अभिनय करना, जैसे एक दोस्त गुस्से में आकर कुछ गलत कह देता है लेकिन दूसरा दोस्त उसे समझाता है कि मधुर भाषा का कितना प्रभाव पड़ता है। (ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।)
उत्तर
चुना गया दोहा: “ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।”
प्रस्तुति:
- गायन: हमने इस दोहे को लोकगीत शैली में गाया।
- अभिनय: एक दोस्त ने गुस्से में कठोर शब्द बोले, और दूसरा दोस्त उसे मधुर वाणी का महत्व समझाता है।
- कविता पाठ: हमने दोहे को भावपूर्ण ढंग से पढ़ा।
- संगीत: हमने हारमोनियम के साथ दोहा प्रस्तुत किया।
पाठ से आगे
आपकी बात
(क) “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय।” क्या आपके जीवन में कोई ऐसा व्यक्ति है जिसने आपको सही दिशा दिखाने में सहायता की हो? उस व्यक्ति के बारे में बताइए।
उत्तर
मेरे गणित शिक्षक ने मुझे सही दिशा दिखाई। जब मैं गणित में कमजोर था, उन्होंने मुझे आसान तरीके से समझाया और प्रोत्साहन दिया, जिससे मेरे अंक बेहतर हुए।
(ख) “निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।” क्या कभी किसी ने आपकी कमियों या गलतियों के विषय में बताया है जिनमें आपको सुधार करने का अवसर मिला हो? उस अनुभव को साझा कीजिए।
उत्तर मेरे दोस्त ने बताया कि मैं जल्दी गुस्सा हो जाता हूँ। उसकी आलोचना से मैंने अपने गुस्से पर नियंत्रण करना सीखा और अब शांत रहने की कोशिश करता हूँ।
(ग) “कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय।” क्या आपने कभी अनुभव किया है कि आपकी संगति (जैसे- मित्र) आपके विचारों और आदतों या व्यवहारों को प्रभावित करती है? अपने अनुभव साझा कीजिए।
उत्तर हाँ, मेरे मित्रों ने मुझे किताबें पढ़ने की आदत डाली। पहले मैं समय बर्बाद करता था, लेकिन उनकी संगति से मैं अब नियमित पढ़ाई करता हूँ।
सृजन
(क) “साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।”
इस दोहे पर आधारित एक कहानी लिखिए जिसमें किसी व्यक्ति ने कठिन परिस्थितियों में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा। (संकेत- किसी खेल में आपकी टीम द्वारा नियमों के उल्लंघन का आपके द्वारा विरोध किया जाना।)
उत्तर: एक बार एक स्कूल में खेल प्रतियोगिता थी। राहुल ने दौड़ में हिस्सा लिया, लेकिन वह गलत रास्ते से दौड़ा और जीत गया। जब शिक्षक ने पूछा, तो उसने सत्य बोला कि उसने गलती की। शिक्षक ने उसकी ईमानदारी की प्रशंसा की और उसे दूसरा मौका दिया। राहुल ने फिर मेहनत की और सही तरीके से जीत हासिल की। इससे उसे समझ आया कि सत्य बोलना सबसे बड़ा तप है।
(ख) “गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय।”
इस दोहे को ध्यान में रखते हुए अपने किसी प्रेरणादायक शिक्षक से साक्षात्कार कीजिए और उनके योगदान पर एक निबंध लिखिए।
निबंध: मेरे हिंदी शिक्षक श्री रमेश शर्मा मेरे लिए प्रेरणास्रोत हैं। मैंने उनसे साक्षात्कार लिया, जिसमें उन्होंने बताया कि शिक्षक का कर्तव्य बच्चों को सही मार्ग दिखाना है। उन्होंने मुझे कबीर के दोहों का अर्थ समझाया और अनुशासन सिखाया। एक बार जब मैं कक्षा में ध्यान नहीं दे रहा था, उन्होंने मुझे प्यार से समझाया और प्रोत्साहित किया। उनके मार्गदर्शन से मैंने हिंदी में अच्छे अंक प्राप्त किए। कबीर के दोहे की तरह, मेरे शिक्षक ने मुझे सत्य और नैतिकता का मार्ग दिखाया।
कबीर हमारे समय में
(क) कल्पना कीजिए कि कबीर आज के समय में आ गए हैं। वे आज किन-किन विषयों पर कविता लिख सकते हैं? उन विषयों की सूची बनाइए।
उत्तर:
विषय:
- सोशल मीडिया का दुरुपयोग
- पर्यावरण प्रदूषण
- शिक्षा में नैतिकता की कमी
- सामाजिक एकता
- तकनीक का अति उपयोग
(ख) इन विषयों पर आप भी दो-दो पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
1. सोशल मीडिया का दुरुपयोग:
- फेसबुक, ट्विटर मन को भटकाए, सत्य से दूर ले जाए।
- मधुर बानी से जोड़ो दिल, झूठी खबर न फैलाए।
2. पर्यावरण प्रदूषण:
- पेड़ कटे, धरती रोए, जीवन का आधार खोए।
- हरियाली को अपनाओ, प्रदूषण से धरती बचाओ।
3. शिक्षा में नैतिकता की कमी:
- पढ़ाई में सत्य भूल न जाना, नैतिकता का पाठ पढ़ाना।
- विद्या विनय दे सच्चा ज्ञान, बनाए मनुष्य महान।
4. सामाजिक एकता:
- जात-पात का भेद मिटाओ, सबको गले लगाओ।
- एकता से बल मिले सदा, समाज बने सुखी सदा।
5. तकनीक का अति उपयोग:
- मोबाइल में डूबा मन, खोया जीवन का सुख-चैन।
- संतुलन रख समय बिताओ, सच्चाई का पाठ पढ़ाओ।
साइबर सुरक्षा और दोहे
नीचे दिए गए प्रश्नों पर कक्षा में विचार-विमर्श कीजिए और साझा कीजिए-
(क) “अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप।” इंटरनेट पर अनावश्यक सूचनाएँ साझा करने के क्या-क्या संकट हो सकते हैं?
उत्तर: अनावश्यक सूचनाएँ साझा करने से गोपनीयता भंग हो सकती है, साइबर ठगी का खतरा बढ़ता है, और गलत जानकारी फैलने से समाज में भ्रम हो सकता है। उदाहरण के लिए, निजी जानकारी साझा करने से हैकर्स धोखा दे सकते हैं।
(ख) “साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।” ‘ किसी भी वेबसाइट, ईमेल या मीडिया पर उपलब्ध जानकारी को ‘सूप’ की तरह छानने की आवश्यकता क्यों है? है? कैसे तय करें कि कौन-सी सूचना उपयोगी है और कौन-सी हानिकारक?
उत्तर:
आवश्यकता: हर जानकारी सही नहीं होती। गलत जानकारी से धोखा हो सकता है या समय बर्बाद हो सकता है। सूप की तरह छानने से हम सही और उपयोगी जानकारी चुन सकते हैं।
तरीका: जानकारी की सत्यता जाँचने के लिए विश्वसनीय स्रोत, जैसे सरकारी वेबसाइट या शिक्षक की सलाह, लें। यदि कोई ईमेल संदिग्ध लगे, तो उसे न खोलें।
आज के समय में
नीचे कुछ घटनाएँ दी गई हैं। इन्हें पढ़कर आपको कबीर के कौन-से दोहे याद आते हैं? घटनाओं के नीचे दिए गए रिक्त स्थान पर उन दोहों को लिखिए-
1. अमित का मन पढ़ाई में नहीं लगता था और वह गलत संगति में चला गया। कुछ समय बाद जब उसके अंक कम आए तो उसे समझ में आया – “संगति का असर जीवन पर पड़ता है।”
उत्तर:
दोहा: कबिरा मन पंछी भया, भावै तहवाँ जाय। जो जैसी संगति करै, सो तैसा फल पाय।।
2. एक विद्यार्थी इंटरनेट पर लगातार सूचनाएँ खोज रहा था। उसके पिता ने कहा- “हर जानकारी सही नहीं होती, सही बातों को चुनो और बेकार छोड़ दो।”
उत्तर:
दोहा: साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय। सार सार को गहि रहै, थोथा देइ उड़ाय।।
3. आपका एक मित्र आपकी किसी गलत बात पर आपकी आलोचना करता है। आप पहले परेशान होते हैं, लेकिन फिर आपने सोचा – “आलोचना मुझे सुधरने का मौका देती है, मुझे इन बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए। इसे सकारात्मक रूप से लेना चाहिए।”
उत्तर:
दोहा: निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करै सुभाय।।
4. रीमा ने अपने गुस्से में सहकर्मी को बुरा-भला कह दिया, जिससे वातावरण बिगड़ गया। बाद में उसने समझा कि अगर वह शांति से बात करती तो समस्या हल हो जाती।
उत्तर:
दोहा: ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को सीतल करै, आपहुँ सीतल होय।।
5. कक्षा में मोहन ने बहुत अधिक बोलकर सबको परेशान कर दिया, जबकि रमेश बिल्कुल चुप रहा। गुरुजी ने कहा – “बोलचाल में संतुलन आवश्यक है, न अधिक बोलो, न अधिक चुप रहो।”
उत्तर:
दोहा: अति का भला न बोलना, अति का भला न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
6. सुरेश को जब ‘प्रतिभा सम्मान’ मिला तो उसने कहा – “इसमें मेरे परिश्रम के साथ मेरे गुरुजनों का मार्गदर्शन भी सम्मिलित है।”
उत्तर:
दोहा: गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागौं पाँय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।
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