Summary For All Chapters – Hindi Class 8
स्वदेश (कविता) – सारांश
इस अध्याय “स्वदेश” में कवि गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ ने देशप्रेम की भावना को बहुत सुंदर और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। कवि कहते हैं कि जिस हृदय में अपने देश के प्रति प्रेम नहीं है, वह हृदय वास्तव में पत्थर के समान है। ऐसा जीवन जिसमें जोश, उमंग और साहस न हो, उसका कोई महत्व नहीं होता। देश की मिट्टी, जल, अन्न और वातावरण ही हमें जीवन देते हैं, इसलिए हमें अपने स्वदेश से गहरा लगाव होना चाहिए। कवि बताते हैं कि जिसने साहस छोड़ दिया वह कभी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकता। मनुष्य के पास अपनी प्रगति और देश की उन्नति के लिए आवश्यक शक्ति और साधन मौजूद हैं, बस उन्हें सही दिशा में लगाना ज़रूरी है। इस कविता में यह भी कहा गया है कि हमारा देश अनमोल खजानों और ज्ञान-संपदा से भरा हुआ है, जिस पर पूरा विश्व मोहित है। इसलिए जो व्यक्ति अपने देश से प्रेम नहीं करता, वह धरती पर बोझ समान है।
इस रचना का मुख्य उद्देश्य हमें यह संदेश देना है कि सच्चा जीवन वही है जिसमें स्वदेश-प्रेम और त्याग की भावना हो। कवि के अनुसार देशप्रेम केवल देश की सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें देश के संसाधनों का संरक्षण, समाज की भलाई और राष्ट्रीय एकता भी शामिल है। इस प्रकार यह कविता हमें प्रेरित करती है कि हम अपने देश को सर्वोपरि मानें, उसके लिए साहस और उत्साह से काम करें और हर परिस्थिति में अपने स्वदेश का गौरव बनाए रखें।
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