तरुण के स्वप्न – सारांश
इस पाठ में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के उन महान सपनों और विचारों का वर्णन है जिन्हें उन्होंने देश के युवाओं के सामने रखा। वे ऐसा समाज और राष्ट्र बनाना चाहते थे जो पूरी तरह स्वतंत्र, समृद्ध और न्यायपूर्ण हो। उनके अनुसार समाज में किसी भी प्रकार का जातिभेद या ऊँच-नीच का भेदभाव न हो। स्त्रियों और पुरुषों को समान अधिकार मिले और दोनों राष्ट्र निर्माण में बराबरी से भाग लें। प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा और उन्नति का अवसर मिले, ताकि कोई भी पिछड़ा न रह जाए। समाज में आलस्य और अकर्मण्यता के लिए कोई स्थान न हो, बल्कि श्रम और कर्म की प्रतिष्ठा हो।
नेताजी का सपना था कि भारत आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से इतना मजबूत बने कि उस पर किसी विदेशी प्रभाव का असर न हो। वे चाहते थे कि भारत केवल अपने नागरिकों की गरीबी दूर न करे, बल्कि पूरे विश्व के सामने आदर्श राष्ट्र के रूप में स्थापित हो। इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने युवाओं को आगे आने का आह्वान किया। उनके अनुसार यह सपना त्याग, संघर्ष और बलिदान से ही पूरा हो सकता है, और इसके लिए प्राणों की आहुति भी देनी पड़े तो वह मृत्यु स्वर्ग के समान होगी।
नेताजी ने युवाओं से कहा कि उनके पास देने के लिए कोई भौतिक वस्तु नहीं है, परंतु यह सपना है जो उन्हें शक्ति और आनंद देता है। यह सपना ही उनके जीवन को सार्थक बनाता है और यही वे युवाओं को उपहारस्वरूप देते हैं। इस प्रकार नेताजी ने युवाओं को राष्ट्र निर्माण और समाज सुधार की जिम्मेदारी सौंपते हुए उन्हें अपने आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा दी।
Leave a Reply