एक टोकरी भर मिट्टी – सारांश
इस कहानी में एक गरीब, अनाथ वृद्धा रहती है, जिसकी छोटी-सी झोंपड़ी एक ज़मींदार के महल के पास थी। ज़मींदार अपने महल का अहाता बढ़ाकर झोंपड़ी की ज़मीन पर कब्ज़ा करना चाहता था। उसने वृद्धा से झोंपड़ी खाली करने को कहा, परंतु वृद्धा का इस घर से गहरा लगाव था। यही उसका जीवन भर का सहारा था क्योंकि उसका पति, बेटा और बहू सब उसी झोंपड़ी में मर गए थे, और अब उसकी पोती ही उसका एकमात्र सहारा थी।
ज़मींदार ने अदालत के जरिए झोंपड़ी पर कब्ज़ा कर लिया और वृद्धा को निकाल दिया। बेचारी वृद्धा अपनी पोती के साथ पास ही कहीं रहने लगी। पोती अपने घर से इतना प्यार करती थी कि उसने खाना-पीना छोड़ दिया। तब वृद्धा ने ज़मींदार से विनती की कि झोंपड़ी से थोड़ी-सी मिट्टी लेने दे, ताकि उससे चूल्हा बनाकर पोती को यकीन दिला सके कि वही अपने घर का खाना खा रही है।
ज़मींदार ने अनुमति दे दी। वृद्धा ने झोंपड़ी से मिट्टी भरकर टोकरी उठाई और ज़मींदार से कहा कि वह टोकरी को ज़रा हाथ लगा दें ताकि वह सिर पर रख सके। ज़मींदार ने जैसे ही टोकरी उठाने की कोशिश की, वह हिल भी न सकी। तब वृद्धा ने कहा कि जब आपसे एक टोकरी मिट्टी नहीं उठाई जाती तो पूरी झोंपड़ी की मिट्टी का बोझ आप जीवन भर कैसे उठा पाएँगे? यह सुनकर ज़मींदार को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने वृद्धा से क्षमा माँगी और झोंपड़ी वापस लौटा दी।
यह कहानी हमें सिखाती है कि लालच और अहंकार से कभी सच्ची खुशी नहीं मिलती। इंसान को दया, न्याय और मानवीयता को हमेशा प्राथमिकता देनी चाहिए।
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