मत बाँधो – सारांश
यह अध्याय महादेवी वर्मा की कविता “मत बाँधो” पर आधारित है। इसमें कवयित्री ने सपनों की स्वतंत्रता और उनकी महत्ता को सरल लेकिन गहन शब्दों में व्यक्त किया है। कविता का मुख्य संदेश यह है कि हमें अपने या दूसरों के सपनों को कभी रोकना या बाँधना नहीं चाहिए। जैसे पक्षी अपने पंखों से आकाश में उड़ता है, वैसे ही सपने भी हमें ऊँचाइयों तक ले जाते हैं। यदि किसी बीज को धूल में दबा दिया जाए तो वह अंकुरित होकर वृक्ष नहीं बन सकता, उसी तरह यदि सपनों को दबा दिया जाए तो वे कभी वास्तविकता में बदल नहीं पाएँगे। कवयित्री कहती हैं कि सपने केवल कल्पना नहीं हैं, बल्कि वे हमें नई दिशा दिखाते हैं, प्रेरणा देते हैं और जीवन को सुंदर बनाने का मार्ग बताते हैं।
कविता में उदाहरण देकर समझाया गया है कि सपनों का आरोहण (ऊपर उठना) और अवरोहण (धरती पर आना) दोनों आवश्यक हैं, क्योंकि सपने पहले हमारी आँखों और विचारों में जन्म लेते हैं और फिर कर्म के माध्यम से धरती पर साकार होते हैं। यदि हम सपनों को उड़ने से रोकेंगे तो वे समाज को समृद्ध और बेहतर बनाने की क्षमता खो देंगे। इसलिए कवयित्री आग्रह करती हैं कि “इन सपनों के पंख न काटो, इन सपनों की गति मत बाँधो।”
इस प्रकार यह कविता हमें सिखाती है कि सपने देखना और उन्हें पूरा करने की स्वतंत्रता हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है, क्योंकि यही सपने जीवन और समाज को नई ऊँचाइयों तक ले जाते हैं।
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