कविता का सार (भावार्थ)
कवि कहता है कि जब वह भगवान को जंगलों और बगीचों में खोज रहा था, तब भगवान गरीबों और दुखियों के बीच थे।कवि उन्हें गीतों और भजनों में बुला रहा था, पर भगवान दुखी लोगों की सहायता में लगे थे।कवि समझता है कि केवल पूजा या भजन से नहीं, बल्कि अच्छे कर्मों और सेवा से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है।वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसे ऐसा बल मिले कि वह दुख में हार न माने और सुख में भगवान को न भूले।
मुख्य भाव
- ईश्वर हर जगह है – फूल, हवा, आकाश, प्रकाश और मन में।
- भगवान को पाने के लिए कर्म, सेवा और प्रेम का मार्ग अपनाना चाहिए।
- सुख-दुख दोनों स्थितियों में भगवान को याद रखना चाहिए।
महत्वपूर्ण पंक्तियाँ और उनके भाव
- “तू रूप है किरन में, सौन्दर्य है सुमन में” – भगवान हर सुंदर चीज़ में बसे हैं।
- “तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में” – ईश्वर हवा और आकाश के समान सर्वत्र हैं।
- “दुख में न हार मानूँ, सुख में तुझे न भूलूँ” – कवि चाहता है कि वह हर परिस्थिति में भगवान को याद रखे।
- “मैं था तुझे बुलाता संगीत में, भजन में” – कवि भजन और संगीत में भगवान को ढूँढता है।
- “बेबस दुखी जनों के तू बीच में खड़ा था” – भगवान दुखियों की सहायता करने वालों में हैं।

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