कविता का सारांश (भावार्थ)
कवि ने इस कविता में मानवता, प्यार और सर्वभौमिक भाईचारे का संदेश दिया है।कवि कहता है कि उसका घर सारा संसार है – कोई भी मनुष्य उसके लिए पराया नहीं है।वह जाति-पाँति, धर्म या देश की सीमाओं में नहीं बँधा है।कवि के अनुसार सच्चा धर्म मानवता है और उसका आराध्य (भगवान) मनुष्य है।
कवि कहता है कि उसे अपने मनुजत्व (मनुष्यता) पर गर्व है, न कि देवत्व पर।वह स्वर्ग के सुखों की बजाय अपनी धरती को अधिक सुकुमार (सुंदर) मानता है।वह यह भी कहता है कि हमें जियो और जीने दो की भावना रखनी चाहिए।सभी के साथ प्रेम बाँटना, दूसरों के दुःख में सहभागी बनना और किसी को तकलीफ़ न देना – यही सच्ची मानवता है।कवि अंत में कहता है कि हमारा सुख केवल हमारा नहीं, बल्कि पूरे जग का होना चाहिए।
मुख्य भाव
- सच्चा धर्म मानवता है।
- जाति, धर्म, और देश के भेदभाव से ऊपर उठकर सभी को अपना समझना चाहिए।
- हमें प्यार बाँटना, दूसरों का सम्मान करना और सबके सुख-दुःख में साथ रहना चाहिए।
- इस संसार में कोई भी व्यक्ति पराया नहीं है – सब हमारे अपने हैं।

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