पाठ का सारांश (भावार्थ)
यह कहानी दहेज प्रथा की बुराइयों को उजागर करती है और साहसी एवं शिक्षित नारी गीता के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देती है।
गीता देवकी की इकलौती बेटी थी। उसके विवाह की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। सब खुश थे, पर गीता के मन में एक अनजाना डर था।जब दूल्हे के पिता ने कहा कि “हमें दहेज नहीं चाहिए, पर खाली हाथ भी नहीं जाना चाहिए,” तो गीता को लगा कि वे दहेज के लालची हैं। उसने अपनी माँ से यह बात कही, पर माँ ने उसकी बात को गंभीरता से नहीं लिया।
शादी के दिन दूल्हे और उसके पिता ने कार की माँग कर दी। यह सुनकर गीता ने साहस दिखाया और साफ़ कहा –
“मैं इस लड़के से शादी नहीं करूँगी।”
गीता ने अपने पिता से कहा कि दहेज माँगना कानूनी अपराध है और वह इस अन्याय के आगे नहीं झुकेगी।उसने शंभुपुरा वालों का रिश्ता दोबारा स्वीकार करने का सुझाव दिया।रघुनाथ जी ने यह प्रस्ताव मान लिया और उसी रात गीता का विवाह शंभुपुरा के युवक से हो गया।
दूल्हा और उसके पिता को अपमान का दहेज लेकर लौटना पड़ा।गीता ने समाज के सामने नई मिसाल पेश की – यह सचमुच “नई सुबह” थी।
मुख्य भाव
- दहेज प्रथा एक सामाजिक अभिशाप है।
- शिक्षित लड़की को साहसपूर्वक अन्याय का विरोध करना चाहिए।
- माता-पिता को लोकलाज से ऊपर उठकर अपनी बेटी का साथ देना चाहिए।
- सच्ची खुशी ईमानदारी और आत्मसम्मान में है, न कि धन-दौलत में।

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