पाठ का सारांश (भावार्थ)
यह पाठ भारतीय लोक संस्कृति और नर्मदा नदी के महत्व पर आधारित है।लेखक बताते हैं कि संसार की सभी प्रमुख संस्कृतियों का जन्म नदियों की गोद में हुआ है।भारतीय संस्कृति गंगा की देन है, परंतु नर्मदा को “ज्येष्ठ” कहा गया है क्योंकि यह सबसे प्राचीन है।नर्मदा का क्षेत्र सौंदर्य, संस्कृति और सभ्यता का अद्भुत संगम है।
प्राचीन समय में नर्मदा आर्यावर्त की सीमा थी – यहीं उत्तर भारत की विचारप्रधान संस्कृति और दक्षिण भारत की आचारप्रधान संस्कृति का मिलन हुआ।नर्मदा का प्रदेश सौंदर्य और धार्मिकता से परिपूर्ण है।
नर्मदा एकमात्र बड़ी नदी है जो पश्चिम दिशा में बहती है।लोककथा के अनुसार सोन नदी से उसका विवाह होने वाला था, लेकिन सोन की दासी जुहिला पर आसक्ति के कारण नर्मदा ने विवाह न करने का संकल्प लिया। इसलिए उसे “चिरकुमारी” कहा गया।नर्मदा की परिक्रमा एक अद्भुत आध्यात्मिक यात्रा है – तीन वर्ष से अधिक चलने वाली यह परिक्रमा भक्ति, त्याग और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है।
नर्मदा तट की जनजातियाँ जैसे बैगा, भील और गौंड संस्कृति से समृद्ध हैं।इनकी स्त्रियाँ गुदनों से सजी रहती हैं और लोकगीत गाती हैं।इन गीतों की रचना किसी एक व्यक्ति ने नहीं, बल्कि सैकड़ों पीढ़ियों ने मिलकर की है।लोक संस्कृति समूह की रचना होती है, जबकि नागर संस्कृति में ‘मैं’ की प्रधानता होती है।
लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता उसकी सरलता और सादगी है।नर्मदा तट पर असंख्य मंदिर, मेले, भजन-कीर्तन और लोक परंपराएँ लोक संस्कृति की पहचान हैं।होशंगाबाद और महेश्वर के घाट देश के सर्वोत्तम घाटों में गिने जाते हैं।रात में नर्मदा में दीपदान का दृश्य अत्यंत मोहक होता है।
अंत में लेखक बताते हैं कि आज मानव ने प्रकृति को वश में कर लिया है, लेकिन प्रकृति की रक्षा करना अब हमारी जिम्मेदारी है।नर्मदा को प्रदूषण से बचाना, वनों की सुरक्षा करना और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना हमारी संस्कृति की सच्ची रक्षा है।
मुख्य भाव
- नर्मदा भारतीय संस्कृति की प्राचीनतम प्रतीक है।
- लोक संस्कृति सादगी, सहयोग और सामूहिकता पर आधारित होती है।
- नदियाँ मानव जीवन और संस्कृति का आधार हैं।
- हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि संस्कृति उसी पर निर्भर है।

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