कविता का सारांश (भावार्थ)
यह कविता सहनशीलता, क्षमा, दया और मनोबल जैसे मानवीय गुणों पर आधारित है।कवि ने इस कविता में भगवान राम के जीवन से प्रेरणा लेकर बताया है कि क्षमा और सहनशीलता कमजोर का नहीं, बल्कि बलवान व्यक्ति का गुण होती है।
कवि कहता है कि जब शत्रु के सामने कोई व्यक्ति झुकता है, तो लोग उसे कायर समझ लेते हैं, लेकिन सच्ची क्षमा उसी को शोभा देती है, जिसके पास शक्ति और सामर्थ्य होती है।
जैसे –“क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो।”अर्थात्, बिना शक्ति वाला विनम्र व्यक्ति नहीं, बल्कि बलवान का विनम्र होना ही सच्ची सहनशीलता है।
कवि भगवान राम के उदाहरण से बताते हैं कि राम तीन दिन तक सागर से विनती करते रहे, परंतु जब सागर ने कोई उत्तर नहीं दिया, तो राम के बाण से समुद्र काँप उठा।तब सागर स्वयं प्रकट होकर क्षमा माँगने लगा।
कवि कहते हैं कि विनम्रता उसी की शोभा बढ़ाती है, जिसके पास शक्ति भी हो।इसलिए सहनशीलता, क्षमा और दया तभी पूजनीय हैं, जब उनके पीछे बल और आत्मविश्वास हो।
मुख्य भाव
- सहनशीलता बलवान व्यक्ति का आभूषण है।
- क्षमा का अर्थ डरना नहीं, बल्कि शक्ति के साथ विनम्र रहना है।
- दया, क्षमा और त्याग वही व्यक्ति कर सकता है, जिसके पास मनोबल और सामर्थ्य हो।
- सच्ची विनम्रता वही है, जो शक्ति के साथ हो।
मुख्य संदेश
- क्षमा और सहनशीलता बलवान व्यक्ति का आभूषण हैं।
- निर्बल की क्षमा कमज़ोरी कहलाती है, पर बलवान की क्षमा महानता होती है।
- सहनशीलता, दया और विनम्रता तभी सम्माननीय हैं, जब उनके पीछे शक्ति और मनोबल हो।
- हमें जीवन में धैर्य और विनम्रता अपनानी चाहिए।

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