पाठ का सारांश (भावार्थ)
यह पाठ भक्ति भावना और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की गहरी आस्था पर आधारित है।मीरा जी ने अपने पदों में भगवान श्रीकृष्ण को अपने आराध्य, मित्र और प्रियतम के रूप में देखा है।
पहला पद – “जागो बंसी बारे ललना”
मीरा जी भगवान श्रीकृष्ण से कहती हैं -“जागो मेरे प्यारे नंदलाल! रात्रि समाप्त हो चुकी है, भोर हो गई है और घर-घर के दरवाज़े खुल चुके हैं।”
गोपी दही मथ रही हैं और उनके कंगनों की झनकार सुनाई दे रही है।ग्वाल-बाल जय-जय का स्वर उच्चारित कर रहे हैं और श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए उत्साहित हैं।मीरा जी भगवान से निवेदन करती हैं कि वे जागें और अपने भक्तों को दर्शन दें।
भाव: यह पद प्रभु को प्रातःकालीन जगाने की प्रार्थना है, जिसमें भक्ति और स्नेह का भाव है।
दूसरा पद – “बसो मोरे नैनन में नन्दलाल”
मीरा कहती हैं कि -“हे नंदलाल! आप मेरे नेत्रों में बस जाएँ। आपकी मोहक साँवली सूरत और सुंदर मूर्ति मन को मोह लेती है।”आपके होंठ अमृत जैसे हैं और आपकी मुरली सुशोभित है। आपकी कमर पर छोटी-छोटी घँटियाँ और पैरों में नूपुर शोभित हैं।
अंत में मीरा कहती हैं –“मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत-बछल गोपाल।”अर्थात – प्रभु संतों को सुख देने वाले और भक्तों के प्रेमी हैं।
भाव: यह पद प्रेम और भक्ति के माधुर्य भाव से पूर्ण है। इसमें श्रीकृष्ण के सौंदर्य और आकर्षण का वर्णन किया गया है।
तीसरा पद – “हरि, तुम हरो जन की पीर”
मीरा भगवान से प्रार्थना करती हैं -“हे हरि! आप भक्तों के दुःख हरने वाले हैं, मेरी पीड़ा भी हर लीजिए।”आपने द्रौपदी की लाज रखी और उसका चीर बढ़ाया था।भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए नरसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु का वध किया था।मीरा कहती हैं -“मैं आपकी दासी हूँ, कृपया मुझे अपने चरण-कमलों में स्थान दीजिए।”
भाव: यह पद भक्ति, विश्वास और ईश्वर की दया को दर्शाता है।
मुख्य भाव
- मीरा के पदों में प्रेम, श्रद्धा और समर्पण की भावना है।
- वे भगवान को अपना सखा और स्वामी मानती हैं।
- श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति आत्मा और परमात्मा के मिलन की प्रतीक है।
- भगवान भक्तों के दुःख हरने वाले और दयालु हैं।

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