पाठ का सारांश (भावार्थ)
जल के बिना जीवन संभव नहीं है। यह प्रकृति का अनमोल उपहार है, जिसे देवताओं का वरदान कहा गया है। गंगाजल को अमृत और गंगा को पतित-पावनी कहा गया है। इसलिए जल का संरक्षण करना हम सबका कर्तव्य है, ताकि वर्तमान और आने वाली पीढ़ियाँ सुखी व समृद्ध रह सकें।
जल-संरक्षण का अर्थ है – जल को व्यर्थ बहने से रोकना, उसे संचित और सुरक्षित रखना। यदि हम सब मिलकर सचेत हों और जल बचाने के उपाय करें, तो जल की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
हम आवश्यकता से अधिक जल निकालकर भू-जल भंडार को खाली कर रहे हैं, जिससे भविष्य में जल संकट बढ़ेगा। यदि हम थोड़े से श्रम और धन से इस जल को संरक्षित करें, तो यह धरती के लिए उपकार होगा।
राजस्थान में पारम्परिक विधियों से जल-संरक्षण होने से वहाँ की स्थिति पूरी तरह बदल गई है – कुएँ भर गए, हरियाली लौट आई और फसलें अच्छी होने लगीं। इसी प्रकार अन्य राज्यों में भी जल बचाने का कार्य किया जा रहा है।
गुजरात में वैज्ञानिक तकनीक ‘रिमोट सेंसिंग’ की सहायता से यह पता लगाया जाता है कि किस स्थान पर जल इकट्ठा किया जा सकता है। इस तकनीक से धरती की आंतरिक बनावट की जानकारी मिलती है और यह समझ आता है कि कहाँ जल संचित किया जा सकता है।
आज जल संकट बढ़ता जा रहा है, इसलिए हमें जल बचाने के लिए जागरूक होना होगा। यदि हमने ध्यान नहीं दिया, तो धरती सूख जाएगी और हमें कहना पड़ेगा – “सूखी धरती, प्यासे लोग।”
मुख्य भाव
- जल जीवन का आधार है।
- इसका संरक्षण हर व्यक्ति का कर्तव्य है।
- जल-संरक्षण से धरती पर हरियाली और जीवन बना रहता है।
- पारंपरिक और वैज्ञानिक तकनीकों दोनों से जल बचाया जा सकता है।
- जल का विवेकपूर्ण उपयोग करना ही सच्ची देश-सेवा है।

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