पाठ का सारांश (भावार्थ)
यह एक देशभक्ति और वीरता से भरपूर एकांकी है। इसमें कित्तूर की वीरांगना रानी चेन्नम्मा के साहस, स्वाभिमान और देशप्रेम का चित्रण किया गया है।
अंग्रेज़ों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत के कई राज्यों को अपनी नीति से हड़प लिया था।जब कम्पनी सरकार ने कित्तूर पर भी अधिकार करने की योजना बनाई, तब रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों की दासता स्वीकार करने से इंकार कर दिया।
पहला दृश्य
कित्तूर के दरबार में अंग्रेज़ों द्वारा राज्य हड़पने की अफवाह से रानी चिंतित हैं।दरबान मल्लप्पा शेट्टी के आने की सूचना देता है।मल्लप्पा अंग्रेज़ों का फ़रमान लाता है जिसमें लिखा है किरानी के गोद लिए पुत्र को गद्दी का उत्तराधिकारी नहीं माना जाएगा और राज्य कम्पनी सरकार के अधीन होगा।
यह सुनकर रानी क्रोध से फ़रमान फाड़ देती हैं और कहती हैं –
“अंग्रेज़ों ने समझा कि एक असहाय नारी को डरा देंगे, पर वे नहीं जानते कि समय आने पर नारी प्रलय कर सकती है।”
रानी घोषणा करती हैं कि वे दासता की अपेक्षा युद्ध में मरना पसंद करेंगी।सेनानायक सिद्दप्पा और रायण्णा युद्ध की तैयारी का आश्वासन देते हैं।रानी कहती हैं कि वे विदेशी हस्तक्षेप को कभी स्वीकार नहीं करेंगी।
दूसरा दृश्य
मल्लप्पा अंग्रेज़ों के सेनापति थेकरे से मिलकर रानी का संदेश सुनाता है।थेकरे क्रोधित होकर पाँच सौ सैनिकों के साथ कित्तूर पर आक्रमण करता है।रानी के आदेश से किले के फाटक बंद कर दिए जाते हैं।थेकरे धमकी देता है, पर रानी निर्भय होकर कहती हैं –
“ऐसी गीदड़ भभकियाँ हम बहुत सुन चुके हैं, अब हमारी तोपें आग उगलेंगी।”
भयंकर युद्ध शुरू होता है। रानी के अचूक निशाने से थेकरे मारा जाता है।रायण्णा उसका सिर किले की दीवार पर टाँग देता है। अंग्रेज़ सैनिक भाग जाते हैं।
रानी सैनिकों को उत्साहित करते हुए कहती हैं कि अंग्रेज़ फिर हमला करेंगे और सभी को तैयार रहना होगा।
तीसरा दृश्य
कुछ समय बाद चैपलिन दो हज़ार सैनिकों के साथ फिर आक्रमण करता है।इस बार उसके साथ मल्लप्पा शेट्टी भी होता है।वह चैपलिन को किले का गुप्त रास्ता बता देता है।अंग्रेज़ सैनिक उस रास्ते से अंदर घुसते हैं और रानी को पकड़ लेते हैं।
चैपलिन रानी को कोठरी में बंद करने का आदेश देता है और मल्लप्पा को इनाम का वादा करता है।रानी क्रोधित होकर कहती हैं –
“तू देशद्रोही है, ऐसे लोगों ने ही भारत माता को दासता में जकड़ा है।”
मल्लप्पा अपने इनाम की बात करता है, तब रानी कहती हैं –
“तुझे जागीर चाहिए न!” और वह कटार से मल्लप्पा को मार देती हैं।
रानी अंग्रेज़ों से कहती हैं –
“अब चाहे मुझे फाँसी दे दो, मैं शांति से मर सकूँगी।”

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