पाठ का सारांश (भावार्थ)
यह एक व्यंग्यात्मक रचना है, जिसमें लेखक ने अपने व्यक्तिगत अनुभव को हास्य और व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया है।लेखक बाथरूम की सीढ़ी पर फिसल जाता है और उसका पैर टूट जाता है। इसी घटना के माध्यम से वह समाज की विभिन्न मानसिकताओं और लोगों की प्रतिक्रियाओं पर हास्य-व्यंग्य करता है।
लेखक कहता है कि फिसलन तो बाथरूम में हुई, पर सजा दाहिने पैर को मिली।वह कहता है कि इस दुनिया में अक्सर अपराधी कोई होता है, सजा किसी और को मिलती है।लोग उसकी चोट पर मज़ाक करते हैं और व्यंग्य करते हैं।एक मित्र कहता है कि “तुम दूसरों पर व्यंग्य लिखते हो, इसलिए खुदा ने तुम्हें बाथरूम में गिरा दिया।”लेखक समझ नहीं पाता कि यह प्रशंसा है या आलोचना।
लेखक अपने कष्ट को भी हास्य में बदल देता है।वह बताता है कि फिसलने के बाद उसके घर पर पोर्टेबल एक्स-रे मशीन आई और उसे ऐसा लगा मानो वह वी.आई.पी. हो गया हो।मित्रों की बातें, कवियों की मज़ेदार टिप्पणियाँ, डॉक्टर का उपचार – सब कुछ उसे जीवन के अलग रंग दिखाते हैं।
तीन माह के विश्राम के दौरान लेखक बहुत-से अनुभवों से गुज़रता है -वह मित्रों की सच्ची भावना को पहचानता है, अपने भीतर दर्शन और सहनशीलता का भाव पाता है।अंत में वह कहता है कि शरीर की हड्डी टूटे तो चल जाएगा, लेकिन मन का मनोबल नहीं टूटना चाहिए।
मुख्य भाव
- यह व्यंग्य हमें सिखाता है कि जीवन में घटित घटनाओं को हँसी और धैर्य से स्वीकार करना चाहिए।
- मुश्किल समय में मनोबल बनाए रखना सबसे बड़ा साहस है।
- दूसरों पर हँसने की बजाय, खुद पर हँसना और सीखना श्रेष्ठ है।
- समाज में व्यंग्य के माध्यम से सच्चाई को प्रस्तुत करना एक कला है।

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