पाठ का सारांश (भावार्थ)
यह पाठ हमें साहस का सही अर्थ और उसकी विभिन्न श्रेणियाँ समझाता है।
लेखक बताता है कि संसार के सभी कार्य बड़े हों या छोटे, बिना साहस के पूरे नहीं हो सकते।
अर्जुन, भीम, भीष्म, अभिमन्यु, हनीवल, नेपोलियन, शिवाजी और रणजीत सिंह जैसे सभी महान व्यक्तियों की महानता का कारण उनका अतुलनीय साहस था।
लेखक के अनुसार साहस तीन श्रेणियों का होता है —
नीच श्रेणी का साहस – ऐसा साहस जो क्रोध या स्वार्थ में किया जाए। यह चोरों या डाकुओं का साहस होता है, जो प्रशंसा योग्य नहीं है।
मध्यम श्रेणी का साहस – ऐसा साहस जो वीरों में पाया जाता है। यह निःस्वार्थ होता है, लेकिन ज्ञान की कमी के कारण अधूरा होता है। जैसे दो राजपूतों ने अकबर के सामने जान की बाजी लगाई, पर विवेक का उपयोग नहीं किया।
सर्वोच्च श्रेणी का साहस – यह साहस कर्त्तव्य, निस्वार्थता, दृढ़ता और उदारता से प्रेरित होता है। यह सच्चा और पूर्ण साहस कहलाता है।
लेखक कहता है कि सच्चा साहस वही है जिसमें मनुष्य कर्त्तव्यपरायण, स्वार्थ-त्यागी और निष्कपट हो।
बुद्धन सिंह का उदाहरण दिया गया है, जिसने अपने देश पर संकट आने पर अपने झगड़ों को भूलकर मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राणों की बाज़ी लगा दी।
ऐसा साहस ही उच्चकोटि का साहस कहलाता है।
अंत में लेखक यह संदेश देता है कि
“सत्साहस के लिए अवसर की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सच्चा साहस जीवन के हर पल में दिखाया जा सकता है।”
मुख्य भाव
- साहस ही मनुष्य को महान बनाता है।
- सच्चे साहस में कर्त्तव्यपरायणता और निस्वार्थता आवश्यक है।
- स्वार्थ और क्रोध में किया गया कार्य साहस नहीं कहलाता।
- सच्चा साहसी व्यक्ति दूसरों की भलाई के लिए अपने प्राणों तक का बलिदान दे देता है।
- साहस में केवल बल नहीं, बल्कि पवित्र हृदय, ज्ञान और चरित्र की दृढ़ता होनी चाहिए।

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