कोई नहीं पराया – सारांश
इस कविता में कवि ने मानवता, प्रेम और समानता का सुंदर संदेश दिया है। कवि कहता है कि उसका घर सारा संसार है और उसके लिए कोई भी व्यक्ति पराया नहीं है। वह जाति, धर्म और देश-काल की सीमाओं में नहीं बंधा है। कवि के अनुसार हर इंसान में ईश्वर बसता है, इसलिए मन्दिर-मस्जिद में सिर झुकाने के बजाय मनुष्य की सेवा करना ही सच्ची पूजा है। उसे अपनी मानवता पर गर्व है और वह देवत्व से अधिक मनुष्यता को श्रेष्ठ मानता है। कवि स्वर्ग की सुख-सुविधाओं को नहीं चाहता, उसे अपनी धरती ही सबसे सुंदर लगती है। वह सिखाता है कि हमें “जियो और जीने दो” के सिद्धांत पर चलना चाहिए, सभी से प्रेम बाँटना चाहिए, और ऐसा जीवन जीना चाहिए जिससे किसी को दुख न पहुँचे। कवि का संदेश है कि सच्चा सुख तभी है जब हम सबको अपना मानकर मानवता और प्रेम का विस्तार करें।

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