लोक संस्कृति और नर्मदा – सारांश
इस पाठ में लेखक ने नर्मदा नदी के साथ जुड़ी भारतीय लोक संस्कृति और उसके महत्व का सुंदर वर्णन किया है। लेखक बताते हैं कि सभी प्रमुख संस्कृतियाँ नदियों के किनारे विकसित हुईं, और भारतीय संस्कृति मूलतः आरण्यक (वनों से जुड़ी) संस्कृति है। नर्मदा तट पर अनेक ऋषियों के आश्रम रहे, जहाँ तपस्या और शिक्षा का केंद्र था। नर्मदा केवल एक नदी नहीं, बल्कि उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक कड़ी है। इसकी पवित्रता का प्रमाण यह है कि भक्तजन इसकी सवा तीन वर्ष की परिक्रमा करते हैं, जो साहस, भक्ति और निस्वार्थ भाव का प्रतीक है। नर्मदा तट पर बसे गोंड, भील और बैगा जनजातियों का जीवन सरल, कलात्मक और गीत-नृत्य से भरा हुआ है। उनके लोकगीत पीढ़ियों से मिलकर बने हैं, जो लोक संस्कृति की पहचान हैं। लोक संस्कृति की विशेषता उसकी सादगी और स्वाभाविकता है, जबकि नागर (शहरी) संस्कृति में कृत्रिमता होती है। नर्मदा के घाट, मंदिर, मेले और दीपदान जैसे अनुष्ठान इस लोक संस्कृति के प्रतीक हैं। अंत में लेखक बताते हैं कि मनुष्य ने प्रकृति को बहुत बदला है, इसलिए अब संस्कृति का कर्त्तव्य है कि वह प्रकृति की रक्षा करे और नर्मदा को प्रदूषण तथा विनाश से बचाए। यह पाठ हमें सिखाता है कि लोक संस्कृति, प्रकृति और मानव जीवन का संबंध गहरा और अटूट है।

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