तीर्थ-यात्रा – सारांश
इस कहानी में माँ के प्रेम, त्याग और मानवता की भावना का सुंदर चित्रण किया गया है। कहानी की नायिका लाजवंती अपने बेटे हेमराज से बहुत प्यार करती है। जब हेमराज को तेज़ बुखार हो जाता है, तो लाजवंती चिंतित हो उठती है। वैद्य की दवा से भी जब कोई असर नहीं होता, तो वह देवी मंदिर में जाकर आँसू बहाकर प्रार्थना करती है और मनौती माँगती है कि यदि उसका बेटा ठीक हो जाए तो वह तीर्थ-यात्रा करेगी। उसकी श्रद्धा और परिश्रम से हेमराज स्वस्थ हो जाता है। पति रामलाल खुशी से तीर्थ-यात्रा की तैयारी करने को कहता है। यात्रा से पहले की रात लाजवंती अपने घर में उत्सव जैसा माहौल देखती है, तभी उसे अपनी पड़ोसिन हरो के रोने की आवाज़ सुनाई देती है। पता चलता है कि हरो की बेटी की शादी में पैसे की कमी है और वह बहुत दुखी है। लाजवंती अपने संचित तीर्थ के पैसे उसे दे देती है ताकि उसकी बेटी का विवाह अच्छे से हो सके। वह समझ जाती है कि सच्ची तीर्थ-यात्रा मंदिर जाकर नहीं, बल्कि जरूरतमंद की मदद करने में है। कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा धर्म और आनंद त्याग और दूसरों की सेवा में है, न कि केवल पूजा या यात्राओं में।

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