शंकराचार्य मध्यप्रदेश में – सारांश
इस पाठ में आदि शंकराचार्य के जीवन, शिक्षा, साधना और उनके भारत एकीकरण के महान कार्य का वर्णन किया गया है। शंकराचार्य का जन्म सन् 780 ईस्वी में केरल के कालड़ी ग्राम में हुआ था। वे बचपन से ही असाधारण बुद्धिमान थे और बहुत कम उम्र में ही शास्त्रों के ज्ञाता बन गए। आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने संन्यास लेने का निश्चय किया और गुरु की खोज में निकल पड़े। यात्रा करते हुए वे अमरकण्टक और नर्मदा तट पर स्थित ओंकारेश्वर पहुँचे, जहाँ उन्होंने गुरु गोविन्दपाद से वेदान्त की शिक्षा प्राप्त की। यहीं उन्होंने ‘नर्मदाष्टक’ की रचना की और योग में भी निपुणता हासिल की। गुरु के आदेश पर शंकराचार्य लोककल्याण के लिए भ्रमण करने निकले और वैदिक धर्म के पुनरुत्थान का कार्य प्रारंभ किया। उन्होंने काशी में कुमारिल भट्ट से भेंट की और उनके सुझाव पर मण्डन मिश्र से माहिष्मती (महेश्वर) में शास्त्रार्थ किया, जिसमें मण्डन मिश्र पराजित हुए और उनके शिष्य बनकर सुरेश्वराचार्य कहलाए। उज्जैन में शंकराचार्य ने कापालिकों के असत्य मतों को परास्त किया और समाज को एकता, सदाचार व सच्चे धर्म का संदेश दिया। उन्होंने चार प्रमुख पीठों — बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम् — की स्थापना की, जिससे भारत की एकता मजबूत हुई। केवल 32 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने समाज सुधार और धार्मिक पुनर्जागरण का महान कार्य किया। शंकराचार्य का जीवन हमें ज्ञान, सत्य, एकता और त्याग की प्रेरणा देता है।

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