मीरा पदावली – सारांश
इस पाठ में भक्त कवयित्री मीराबाई के भक्ति-भाव से भरे तीन पद संकलित हैं, जिनमें उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अपार प्रेम, भक्ति और श्रद्धा को व्यक्त किया है। पहले पद में मीरा बंसीवाले कृष्ण को जगाने के लिए भोर के सुंदर दृश्य का वर्णन करती हैं। वह कहती हैं कि रात बीत गई है, घरों के दरवाज़े खुल चुके हैं, गोपियाँ दही मथ रही हैं और उनके कंगनों की झनकार से वातावरण मधुर हो गया है। वह प्रेमपूर्वक कृष्ण से उठने का आग्रह करती हैं क्योंकि सब लोग उनके दर्शन के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं। दूसरे पद में मीरा श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का मनोहारी चित्र प्रस्तुत करती हैं। वह कहती हैं कि नंदलाल की साँवली, मोहक मूर्ति उनके नयनों में बस गई है — उनके होंठों पर मधुर बंसी शोभित है और उनके गले में बैजन्ती की माला है। तीसरे पद में मीरा भगवान से प्रार्थना करती हैं कि वे अपने भक्तों का दुख हरें, जैसे उन्होंने द्रौपदी की लाज बचाई थी और हिरण्यकशिपु का वध कर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी। मीरा स्वयं को ‘दासी मीरा’ कहकर भगवान के चरणों में समर्पित करती हैं। इन पदों से मीरा की अटूट श्रद्धा, भक्ति और ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना झलकती है। यह पाठ हमें भक्ति, प्रेम और निस्वार्थ समर्पण का संदेश देता है।

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