बोध-कथाएँ – सारांश
इस पाठ में दो छोटी लेकिन शिक्षाप्रद बोधकथाएँ दी गई हैं, जिनसे हमें मानवीय संवेदना और कर्तव्य भावना की प्रेरणा मिलती है। पहली कहानी “मेरे साथ भी हो सकता है” में बताया गया है कि एक युवक को सड़क पर ट्रक टक्कर मार देता है और वह घायल होकर गिर जाता है। लोग केवल तमाशा देखते हैं, पर कोई उसकी मदद नहीं करता, क्योंकि सभी को पुलिस और कोर्ट के झंझट का डर होता है। तभी एक विद्यार्थी आगे बढ़कर उसकी सहायता करने की कोशिश करता है, लेकिन उसका रूमाल छोटा पड़ जाता है। तभी एक माँ जैसी भावना रखने वाली प्रौढ़ महिला आती है और बिना झिझक अपनी साड़ी का टुकड़ा फाड़कर युवक के सिर पर बाँधने के लिए देती है। वह कहती है — “यह भी किसी माँ का बेटा है।” यह कहानी सिखाती है कि इंसान को दूसरों के दुःख में मदद करनी चाहिए, क्योंकि जो किसी के साथ हुआ है, वह हमारे साथ भी हो सकता है। यह बोधकथा हमें करुणा, संवेदना और निःस्वार्थ सेवा का सच्चा संदेश देती है।

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